सफल कृषि व्यवसाय के लिए सरकारों का सहयोग और किसानों का जागरूक होना बहुत जरुरी है -प्रियंका सौरभ
कोरोना काल ने ग्रामीण भारत के युवाओं को कृषि की और मोड़ दिया है। इस दौरान पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी कृषि क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के बारे इसकी दक्षता में सुधार के तरीके ढूंढ रही है, इसके अलावा यह भी अधिक जोर दे रहा है कि कैसे प्रौद्योगिकी को अपनाकर ग्रामीण भारत में कृषि दक्षता को बाध्य जा सकता है।
भारत घरेलू और वैश्विक कृषि उत्पादन मांग में अग्रणी योगदानकर्ताओं में से एक है। भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक, फल और सब्जी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, और प्रौद्योगिकी अपनाने से इन आंकड़ों को विभिन्न तरीकों से बेहतर बनाने में मदद की है। लेकिन फिर भी आज भारतीय कृषि समस्याओं से मुक्त नहीं है।
वैकल्पिक उपयोगों के लिए कृषि भूमि का रूपांतरण, कृषि जोत के औसत आकार में गिरावट ने खेती की पारंपरिक विधियों को कुशलता से लागू करने की चुनौती देते हुए औसत भूमि जोत को कम कर दिया है। भारतीय कृषि मॉनसून वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर है और लगातार बढ़ते वैश्विक तापमान ने कृषि को चरम मौसम की घटनाओं के लिए अधिक प्रवृत्त बना दिया है।
लेख/विचार
देश के प्रति वफादार एवं कर्तव्य के प्रति ईमानदार फौजी
लॉकडाउन लगने से पहले भारतीय सेना में सेवारत मेरे पति नरेंद्र जी की छुट्टी मंजूर हो गई थी। वो दिल्ली हम सभी के पास आ गए थे। उनकी वापसी की तिथि भी सुनिश्चित हो चुकी थी। उनको 28 जून ड्यूटी पर बार्डर जाना था। लेकिन 28 जून से लगभग कुछ हफ्ते पूर्व ही उनकी तबीयत अचानक से बिगड़ गई। उनको तेज बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया। छोटी बेटी जान्हवी पापा के सिरहाने बैठे कपड़े को गीले करके पट्टी बनाकर पापा के सिर पर रख रही थी। उधर मुझे अंदर ही अंदर यह चिंता खाए जा रही थी कहीं कोई बड़ी समस्या ना हो इनके स्वास्थ्य के प्रति मेरी चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी। हमारी मदद करना हे ईश्वर। मैं परेशान थी हैरान थी। रातों की नींद मेरे आंखों से गायब थी। बुखार इनका लगातार बढ़ता जा रहा था। साथ ही साथ इनका पेट भी खराब हो गया मेरे माथे पर चिंता की लकीरें और तेजी से बढ़ने लगी। मेरी छोटी बेटी जान्हवी लगातार समझा रही थी कि मां चिंता कर के तुम भी बीमार मत पड़ जाना। जो भी होगा देखा जाएगा। परेशान क्यों होती हो। अगर तुम इस तरह से परेशान होगी तो पापा की भी चिंता बढ़ेगी, और मैं भी बीमार पड़ सकती हूं। तुम भी बीमार पड़ सकती हो।बेटी ने मुझे हौसला देना शुरू किया,और मैंने अंदर ही अंदर भगवान से प्रार्थना करनी शुरू की।
आज तक के अज्ञानी ओली चीन की पाठशाला में अव्वल
कल तक भारत की छत्रछाया में सुरक्षित रहने वाला नेपाल, आज चीन की राग अलापने में मशगूल है। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली आजकल चीनी की चाशनी पर इस तरह आकर्षित हैं कि उन्हें सही-गलत का ज्ञान ही नहीं रहा। उनकी बेतुकी बयान बाजियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओली ने कहा कि आज तक हम इस भ्रम में जी रहे थे कि भगवान् श्रीराम भारतीय हैं, जबकि हकीकत में वह नेपाली थे। अब प्रश्न यह उठता है कि आज तक के अज्ञानी ओली जो भ्रम में जी रहे थे, अचानक से कौन सी पाठशाला में उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया कि वह भारतीय संस्कृति का ज्ञान बांटने लग गए ? जिन्हें अपनी ही संस्कृति का ज्ञान नहीं, वह भारतीय संस्कृति का ज्ञान कैसे बांट सकते हैं ? उनकी पिछली हरकतें जगजाहिर है कि उन्होंने भारतीय सीमा के कुछ इलाकों पर किस तरह अवैधानिक तरीके से चीन के सह पर अपना हक जताने की कोशिश की है। अब उनकी इस बेतुकी बयान बाजियों में भी चीन की पाठशाला के अवैधानिक ज्ञान की बू आ रही है।
अमेरिका में रोक से परेशान हुए दुनिया भर के छात्र
क्या भारत को अब विदेशी शिक्षा के आकर्षण को थामने के नए अवसर प्राप्त होंगे? -डॉo सत्यवान सौरभ
हाल ही में कोविड-19 के चलते दुनिया भर के अलग-अलग देशों ने अपने शिक्षण संस्थानों में जो दूसरे देशों से आने वाले छात्रों हैं उनके लिए नियमों में बदलाव किया है, जिस से पूरे विश्व के छात्र तनाव में आ गए है जहाँ एक ओर अमेरिका जैसे देश में अब सिर्फ कुछ ही छात्रों को वीज़ा देने की बात कही जा रही है जिसके अंतर्गत वहां जो ऑनलाइन कोर्सेज मौजूद है, उनके लिए स्टूडेंट वीज़ा नहीं मिलेगा।
वही दूसरी ओर ब्रिटन जैसे देशों ने ये साफ कर दिया है कि वहां पर स्नातक और पीजी कोर्सेज के लिए अगर आप पीएचडी कर रहे है तो वहां पर आपको केवल 2 वर्ष रहने का वीज़ा ही मिल सकता है। और ऐसे ही अलग-अलग देशों में हो रहा है चाहे यूरोप के दूसरे देश हो या फिर चीन, वहां पर कोविड के चलते छात्रों के पढ़ाई पर भी असर पड़ा है. नियमों का यह बदलाव भारतीय छात्रों पर क्या असर डालेगा, क्या कोविड के इस दौर में भी विदेशी शिक्षा का उत्साह बरकरार रहेगा, और क्या इस वक्त बेहतर विकल्प छात्रों के सामने हैं और इनकी आगाम शिक्षा का क्या होगा आदि फिलहाल संशय कि स्थिति पैदा कर रहें है।
पूरी पढ़ाई अभिभावक करवाए और फीस वसूले स्कूल
तरह-तरह की तिकड़मबाजी से अभिभावकों को लूट रहें प्राइवेट स्कूल -प्रियंका सौरभ
देश भर में ऑनलाइन क्लासेस के नाम पर दिनों दिन निजी स्कूलों में फीस वसूली का खेल धड़ल्ले से जारी है। यही नहीं वो इन सबके के लिए खुलेआम अपनी आवाज़ बुलंद कर रहें है, इसी बीच इस बात को लेकर स्कूल प्रशासन और अभिभावकों के बीच तनातनी के बहुत से मामले सामने आये है। फीस वसूलने के लिए निजी स्कूल अभिभावकों को लगातार मैसेज और फोन कर रहे हैं। यही नहीं फीस जमा करने के लिए अभिभावकों को छूट का ऑफर भी दिया जा रहा है। कई स्कूलों में तो अप्रैल महीने का भी फीस भी उगाही जा रही है, जबकि अप्रैल महीने में न तो ऑनलाइन क्लासेस लगी और न ही स्कूल खुले थे।
देश भर के प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर अभिभावकों से अप्रैल, मई और जून की बढ़ी हुई फीस वसूली कर रहे हैं। साथ ही स्कूली शिक्षकों को वेतन न देना पड़े, इसके लिए तरह-तरह की तिकड़मबाजी भी कर रहे हैं। इन सब समस्याओं को लेकर राज्यों के शिक्षा विभाग भी अनजान नहीं हैं, लेकिन वो कर कुछ नहीं पा रहे या फिर करना करना नहीं चाहते है। क्या ये शिक्षा का बाजीकरण कर माफिया तरह की हरकत नहीं है। तभी तो उलटा हो गया है क्योंकि होमवर्क ही नहीं, क्लासवर्क भी पेरेंट को करवाना पड़ रहा है। ऑनलाइन क्लास में टीचर्स इतने छोटे बच्चे को पढ़ाने में सक्षम नहीं है और वह बच्चे की बजाय बच्चे के पेरेंट्स को ही कहते हैं कि इसे एल्फाबेट और नंबर लिखना सिखाएं।
भारतीय प्रतिभाओं के बिना भारत आगे नहीं जा सकता
किसी भी देश की शक्ति होते हैं उसके नागरिक और अगर वो युवा हों तो कहने ही क्या। भारत एक ऐसा ही युवा देश है। हाल ही में भारतीय जनसंख्या आयोग के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से तैयार किए गए सैंपल रेजिस्ट्रेशन सिस्टम 2018 की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 25 वर्ष से कम आयु वाली आबादी 46.9% है। इसमें 25 वर्ष की आयु से कम पुरूष आबादी 47.4% और महिला आबादी 46.3%। यह आंकड़े किसी भी देश को प्रोत्साहित करने के लिए काफी हैं। भारत जैसे देश के लिए भी यह आंकड़े अनेकों अवसर और आशा की किरणें जगाने वाले हैं लेकिन सिर्फ आंकड़ो से ही उम्मीदें पूरी नहीं होती, उम्मीदों को अवसरों में बदलना पड़ता है।
इसे हम भारत का दुर्भाग्य कहें या फिर गलत नीतियों का असर कि हम एक देश के नाते अपने इन अवसरों का उपयोग नहीं कर पाते और उन्हें उम्मीद बनने से पहले ही बहुत आसानी से इन उम्मीदों को दूसरे देशों के हाथों में फिसलने देते हैं। हमारे प्रतिभावान और योग्य युवा जो इस देश की ताकत हैं जिनमें इस देश की उम्मीदों को अवसरों में बदलने की क्षमता है वो अवसरों की तलाश में विदेश चले जाते हैं।
हृदय और बुद्धि की जंग से जन्मा यह प्राकृतिक असंतुलन
इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अगर किसी ग्रह पर जीवन है तो वह हमारी पृथ्वी है जिसकी अद्भुत व अद्वितीय रचना का श्रेय प्रकृति को जाता है। प्रकृति ने हमारी पृथ्वी को सम्पूर्ण संसाधनों की समस्त समृद्धि से इस प्रकार सजाया है कि पृथ्वी की सजीवता सदैव सुदृढ़ बनी रहे। प्रकृति ने पृथ्वी के समस्त जीवों को समान अधिकार प्रदान कर रखा है वह किसी भी जीव के साथ भेद-भाव नहीं करती। उसी जीव-जगत का एक अभिन्न व अनोखा अंग मानव है जो सम्पूर्ण जीव-जगत में अपनी बुद्धि के द्वारा इस जीव-जगत की श्रेष्ठ पात्रता को हासिल किया है।
मानव को श्रेष्ठ मानव का दर्जा उसके विकल्प चयन ने दिया। कहा जाता है कि मानव विकल्पों में ही जीता है वह विकल्पों का प्रतिनिधित्व भी करता है यही कारण है कि मानव हृदय का साधक बनने के बजाय बुद्धि के स्वामित्व की लालसा में बुद्धि का दास बन गया। बुद्धि और हृदय की इस जंग में बुद्धि ने काफी हद तक अपना लोहा मनवाया परंतु इस जंग में हृदय के घातक वार ने बुद्धि को सदा लहूलुहान किया।
अपराध जगत में राजनीति और नौकरशाही की संलिप्तता -एक चुनौती
आज अपराध जगत और अपराधी इतने बेखौफ क्यो है? बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है हमारी प्रशासनिक व्यवस्था पर, हमारी कानूनी व्यवस्था पर और हमारी सरकार पर। क्या अपराधियों के हाथ इतने लंबे हैं कि क़ानून की पकड़ से बाहर है, शासन प्रशासन मूक दर्शक मात्र है, सरकार भी मौन की मुद्रा में रहे। अवश्य ही बड़े बड़े भ्रष्ट व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं, प्रशासन के कुछ भ्रष्ट कर्मियों, पाले गए भ्रष्ट मुखबिरों व समाज के कुछ स्वार्थी भ्रष्ट दरबारी प्रवृति के चापलूस तत्वों की सरपरस्ती में अपराध जगत फलता फूलता है। अपराधी कानून व शासन के समानांतर अपनी आपराधिक गतिविधियों को लगातार अंजाम देते रहते हैं और कानून के शिकंजे से बाहर भी आते रहते हैं।
साइकल्स फॉर चेंज से लौटेगी अब साइकिल
कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल एक मुफीद साधन है – डॉo सत्यवान सौरभ
कोरोना काल में साइकिल का क्रेज आये दिन बढ़ रहा है। अब लॉकडाउन के कारण बदली जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति लोग अधिक जागरूक हो रहे हैं।तभी तो साइकिल की खरीदारी भी बढ़ रही है। आज युवाओं के अलावा इंजीनियर, प्रोफेसर, डॉक्टर, रिटायर कर्मचारी और प्रोफेशनल लोग भी सेहत बढ़ाने के लिए साइकिल की खरीदारी करने लगे हैं।
कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल मुफीद साधन है। इस काल में साइकिल की सवारी सस्ती और सुलभ होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से भी मुफीद है। पर हमारी सरकारों ने नगर नियोजन में साइकिलों के बारे में बहुत कम सोचा है। आधुनिक चमक-दमक के पीछे भागने वाला भारतीय मध्य वर्ग वैसे भी साइकिलों पर चलना हेठी समझता है।
जलती आग में घी डालना कोई विपक्षियों से सीखे
कल जब आठ पुलिस कर्मियों की बड़ी ही क्रूरता व निर्दयता से हत्यारे ने हत्या की, तब विपक्ष ने उसे हत्यारा कह-कहकर सरकार के नाक में दम कर दिया था। सोशल मीडिया से लेकर समाचारों के हर पन्नों पर विपक्ष की खोखली बयान बाजियां प्रमुखता से छाई हुई थीं, कि एक ऐसा खूंखार हत्यारा जो हमारे आठ पुलिस कर्मियों को मार कर खुलेआम घूम रहा है। आखिर उसके खिलाफ कार्रवाई कब होगी ? कल पुलिस कर्मियों के साथ दया भाव व घड़ियाली आसूं बहाने वाला यही विपक्ष जो सरकार पर सवालों के अंबार लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था, अब वही विपक्ष जिसने उसे खूंखार हत्यारे से संबोधित किया, आज उस हत्यारे के एनकाउंटर किए जाने के बाद विपक्ष ने ऐसा रंग बदला कि उसके आगे गिरगिट भी रंग बदलने में मात खा गया। आठ पुलिस कर्मियों के घर वाले कल महज विपक्ष की बयान बाजियां सुनते रहे और आज वही विपक्ष पलटी मार हत्यारे के साथ जा खड़ा हो गया। अब कांग्रेस को ही ले लें , वह खूंखार हत्यारे की हत्या के बाद हत्यारे का पक्षधर बन मानवाधिकार आयोग में जा पहुंचा। कल शहीद हुए पुलिस कर्मियों के पक्ष में महज खोखले राग अलाप रहे इस विपक्ष ने उन आठ पुलिस कर्मियों के पक्ष में मानवाधिकार आयोग का दरवाजा नहीं खटखटाया और न ही उन पुलिस कर्मियों के परिजनों से मिल उन्हें कोई सांत्वना ही दी, बस दूर से राजनैतिक रोटियाँ सेंकने में ही व्यस्त दिखे।