Friday, June 7, 2024
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लेख/विचार

हुजूर को सहयोग के लिए मुख्यमंत्रियों का एहसान मंद होना चाहिए- संजय रोकड़े

भारत में कोरोना को हराने के लिए हर नागरिक ने वही किया जो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई दामोदर दास मोदी ने समय-समय पर सुझाया। हुजूर ने कहा ताली-थाली बजाओ, तो ताली-थाली बजाई गई। दीये जलाओ तो दीये जलाए गए। और तीसरे इवेंट में उनने आसमान से फुल बरसाने का प्लान दिया उसमें भी सबने पूरा सहयोग किया। हालाकि सब ये अच्छे से जानते थे कि यह पीएम की प्रतीकात्मक पहल है। मोदी का पीआर इवेंट है बावजूद इसके उनके इस इवेंट को सबके सब सफल बनाने में जुट गए। हुजूर की इन प्रतीकात्मक पहलों का किसी ने भी विरोध नही किया।
ऐसा नही है कि उनका विरोध नही किय जा सकता था, लेकिन सबने उनका साथ दिया। आज जनता से लेकर हर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दलगत राजनीति से उपर उठकर उनके हर पीआर इवेंट को सफल बनाया जबकि वे सब जानते थे कि एक समय के बाद मोदी इसका राजनीतिक लाभ उठाने में पीछे नही हटेगें बावजूद इसके सबने एकजुटता दिखाई। इस एकजुटजा और हर कहे को मान्य करने के लिए आखिर क्यूं नरेन्द्र मोदी को अपने मुख्यमंत्रियों का एहसान मंद होना चाहिए।

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प्रधानमन्त्री का आत्मनिर्भर भारत अभियान

अदृश्य विषाणु कोरोना ने पूंजीवाद की अन्धी दौड़ में बेतहाशा भाग रहे विश्व की रफ़्तार पर जिस तरह से अचानक ब्रेक लगाया है, उससे बड़े-बड़े देशों का आर्थिक ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया है| विश्व का प्रत्येक विकसित और विकासशील देश अपनी आर्थिक विकास की रणनीति पर नये सिरे से विचार करने लगा है| 12 मई को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने दूरदर्शन के माध्यम से देश को सम्बोधित करते हुए 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की| मोदी के अनुसार इस धन के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया जायेगा| देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात तो आजादी के समय से ही रही है और इन तिहत्तर सालों में इसके लिए रणनीतियां भी अनगिनत बार बनायीं गयीं| परन्तु परिणाम लक्ष्य से सदैव दूर ही रहा| प्रधानमन्त्री की घोषणा के मुताबिक इस बार की रणनीति सबसे अलग होगी| पूरे भाषण में उनका जोर स्थानीय शब्द पर रहा| उन्होंने लोकल के लिए वोकल का मन्त्र देते हुए स्थानीय स्तर पर देश को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने पर विशेष बल दिया|

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हमारे कोविड-19 वारियर पुलिसकर्मी

हमारे रक्षा कर्मी पुलिस वक्त बेवक्त अपनी बहादुरी का परचम लहराते हैं। 24 घंटे व सातों दिन कठोर मौसम में अपनी ड्यूटी पर डटे रहते हैं। उनकी सहज उपस्थिति का एहसास तब होता है। जब कोई विपदा आम जनता पर दस्तक देती है। आजकल गले पड़ी है कोविड-19 जैसी सर्वव्यापी महामारी जिसका एकमात्र इलाज है मनुष्य का घर की चारदीवारी में कैद रहना। पुलिस वालों को इस समय सबसे ज्यादा डर है खतरे की चपेट में आने का, क्योंकि दिन प्रतिदिन नित नए कई अनजान व्यक्तियों के संपर्क में वे आते हैं, रेड जोन के कई पुलिसकर्मी इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। पुलिसकर्मी केवल रक्षक ही नहीं, बल्कि कोविड वारियर्स बन चुके हैं। एक तरफ तो लाॅक डाउन का उल्लंघन करने वालों के लिए लठ बरसाते भीम व दूसरी और देवदूत बनकर जनता की सेवा करते हैं। जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक व डिब्रूगढ़ से पोरबंदर तक, ऐसी कई अनूठी दास्तान देश के राज्यों से बयां हो रही हैं। हमारे जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मी ना केवल आतंकियों को ढेर करने में व्यस्त हैं बल्कि लाॅक डाउन के कारण, एसएचओ जानीपुर राजेश कुमार एबरोल ने एक बच्चे को केक फूल वा गिफ्ट देकर जन्मदिन मनाया। इसी तरह कई और परियों के जन्मदिन हुए जैसे कानपुर में यूपी पुलिस ने एक बच्ची का जन्मदिन धूमधाम से मनाया। लाॅक डाउन के चलते मथुरा निवासी संगीता अपनी बेटी अनिका का पहला जन्मदिन न मनाने का अफसोस 18 अप्रैल को ट्वीट किया था इस पर 29 अप्रैल को यूपी पुलिस ने अपनी कई गाड़ियां व बाइक्स खूब रंग-बिरंगे गुब्बारों से सजाकर व सायरन बजाते हुए लाव लश्कर के साथ मथुरा की गली में पहुंच बच्ची को बधाई दी। पुलिस का काफिला देख, मोहल्ले के लोगों में हड़कंप सा मच गया। इसी तरह नागपुर में महाराष्ट्र पुलिस ने एक ही परिवार के तीन लोगों का जन्मदिन मनाया जब उस परिवार की बच्ची ने केक लाने की पुलिस से परमिशन मांगी परंतु महाराष्ट्र में कोविड का भयानक रूप के चलते हर तरफ डर का माहौल है, इसलिए पुलिस पूरी तरह सक्रिय व सतर्क है। पंजाब के अमृतसर में इसी तरह एक और नन्ही परी का जन्मदिन वहां की एसपी जसवंत कौर बरार ने मनाया अपने हाथ से बच्ची को केक खिलाकर दुआएं दी। पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा के पंचकूला निवासी एक बुजुर्ग व्यक्ति का जन्मदिन मनाकर उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया।

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जाने आगे क्या होगा….!

जब प्रधानमंत्री जी ने 22 मार्च को ट्रायल के रूप में संपूर्ण भारत भारत बंद का ऐलान किया था तब तक लॉक डाउन जैसे शब्द से हम बहुत से भारतीय परिचित नहीं थे। बहुत से भारतीयों को यह तक नहीं मालूम था कि 22 मार्च के दिन संपूर्ण भारत बंद क्यों किया गया है आखिर सरकार का क्या उद्देश्य है अचानक इस तरह का कदम उठाकर। जिस कोरोना कोविड-19 जैसी महामारी को तब तक हम कुछ नहीं समझते थे हम बस इसे केवल एक सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर गुड मॉर्निंग और गुड नाइट मैसेज की तरह ले रहे थे पर आज कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी का नाम बच्चे बच्चे की जुबां पर आ गया है। इस समय लॉक डाउन का तीसरा चरण चल रहा है पर सड़कों पर बेवजह घूमते हुए लोग और बेवजह ग्रुप बनाकर गपशप करते लोगों को देखकर कहीं भी प्रतीत नहीं हो रहा कि लॉक डाउन जैसा कुछ चल रहा है। और तो और कुछ दिनों पहले जब से शराब की दुकानें खुलने का आदेश दे दिया गया तब से लोग बेखौफ होकर कहीं भी घूम रहे हैं किसी भी तरह के नियम का पालन नहीं हो रहा है आखिर हम भारतीय जो है जो बिना डर के और बिना लालच के कुछ नहीं करते। इस समय पुलिस विभाग भी अब पूरी तरह से पस्त नजर आ रहा है क्योंकि उन्होंने लगभग 45 दिन खूब मेहनत की पर अचानक इस तरह से शराब की दुकाने खुलने से उनके किए कराए पर भी पानी फिर गया। अब वह किसी से कुछ कह भी नहीं सकते क्योंकि पहले अगर कोई दवा भी लेने जा रहा होता था तो पुलिस उससे कई तरह की पूछताछ करती थी पर आज वो शान से कहता है कि मैं दारू लेने जा रहा हूं और पुलिस कुछ नहीं कर पाती क्योंकि यह सरकार का एक आदेश है जिसका पालन उन्हें करना ही है।

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समानता वहीं पर सार्थक है जहां विचार स्वतंत्र हों

लेकिन कभी कभी निरंकुश स्वतंत्रता अराजकता को जन्म देती है
बात सिर्फ आत्मिक संतुष्टि की होनी चाहिए लेकिन उसके लिए ज्ञान बहुत जरूरी है क्योंकि अज्ञानी स्त्री ये नहीं समझ पाती की सच में उसकी संतुष्टि का साधन क्या है ।मंजिल तक पहुंचना तो वो जानती है लेकिन पैरों में कीचड़ लगाकर जाना है या पैरों को साफ करके ये उसे अध्यात्म और ज्ञान सिखाता है।चरित्र का निर्माण कोई मापदंड के अनुसार नहीं होना चाहिए, मापदंड अगर लिया जाए तो सभी द्रोपदी का अनुसरण करके सती बन जाएं,,,, सीता के चरित्र को अपनाकर जीवन को संघर्ष और त्याग में व्यतीत करें। सीता की उपमा देकर आज पुरुष स्त्री को उनकी मर्यादा को याद दिलाता है लेकिन खुद कितना चरित्रवान है ये भूल जाता है।
बात सिर्फ इतनी की इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले मनुष्य को सिर्फ तीन व्यक्तियों का ऋणी होना चाहिए – ,,, माता, पिता तथा गुरु उनके अलावा तीसरा कोई नहीं जिसका उसके निजी जीवन को बदलने का अधिकार हो, और इनकी भी दखलंदाजी एक आयु और सीमा तक होनी चाहिए, बाकी जितने लोग उसे अनुशासित करते हैं सिर्फ अपनी खुशी और स्वार्थ के लिए करते हैं।

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विकास की कहानी का हिस्सा बने अब सिलेज

इन भयावह समय का मुख्य तकाजा यह है कि कोरोना वायरस अब आने वाले कुछ समय के लिए हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा है और अब हमें इसके आसपास काम करने की जरूरत है। एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की उपलब्धियों पर हमें गर्व है, कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने
तमाम देशों की अर्थव्यवस्था को जबरदस्त नुक्सान पहुंचाया है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं। बावजूद इसके ऐसी आशा है कि हमारा देश इस संकट से जूझते हुए अपनी व्यवस्था को पुन: सुचारू कर लेगा, किंतु इन सबके लिए हमारी कृषि प्रधानता वाली रीति-नीति में कुछ ठोस व्यापक कदम उठाने होंगे, जिससे खासकर हमारे अन्नदाता और मजदूर वर्ग को कोई विशेष आर्थिक नुक्सान का सामना न करना पड़े। औद्योगिक इकाइयों से लेकर सभी कारोबार आज अपने पुराने दिन वापस पाने की कोशिश में हैं।

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विदेशी प्लांट जिंदगी को इतना सस्ता क्यों समझते हैं

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम में एलजी पॉलिमर्स कम्पनी में गैस रिसाव ने 36 साल पुरानी भोपाल गैस त्रासदी की याद को फिर एक बार ताजा कर दिया है। भोपाल में 3 दिसम्बर 1984 को अमेरिकी कम्पनी यूनियन कार्बाइट से जहरीली गैस लीक होने से 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोग सांस और दूसरी शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हुए थे। काफी संख्या में लोग अंधे और विस्थापित हो गए थे। इतने सालों बाद भी पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया।
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक केमिकल इंडस्ट्री से जहरीली गैस लीक होने की घटना बेहद दुखद है। इसमें दस से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग बीमार हो गए हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। घायलों में से कुछ की हालत गंभीर है। विशाखापत्तनम शहर के नजदीक आरआर वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री में गैस का रिसाव गुरुवार को तड़के शुरू हुआ।

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कोरोना वैश्विक महामारी में फार्मासिस्टों को नियुक्त करे सरकार, शिक्षकों पर न करे अत्याचार

आज दुनिया के बड़े-बड़े देश जब कोरोना वैश्विक महामारी से अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं जिनके पास दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति है, तो फिर भारत की विसात ही क्या है जिनके पास अपने योद्धाओं को पहचानने तक की क्षमता नहीं है। चिकित्सा विज्ञान का एक ऐसा योद्धा जो चिकित्‍साशास्त्र का मेरूरज्जु कहा जाता है जिन्हें लोग फार्मासिस्ट के नाम से जानते हैं, जिसे औषधियों का जनक कहा जाता है, जिनका औषधि से सम्बंध माँ और पुत्र की भाति होता है, जो औषधियों के हर एक गुण को अपनी विद्वता के द्वारा पहचानता है
और ऐसे योद्धा को कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे उसे उसके रणभूमि से अलग कर दिया जाता है जैसे कर्ण को भीष्म ने किया था। औषधियों की उपयोगिता और विषाक्तता को भलीभांति से पहचानता हो जो वह कोरोना के खिलाफ इस युद्ध मे कृष्ण जैसा सारथी हो सकता है, लेकिन इनका शोषण भारत मे तो विगत सरकारों के द्वारा होता आ रहा है और वर्तमान सरकार तो सारी हदें पार कर चुकी है।

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प्रकृति का सम्मान करें

कहते हैं ईश्वर को देखना है तो प्रकृति को गौर से देखो और महसूस करो। ये प्रकृति ही है जो हमें सिर्फ देती ही है बिल्कुल जीवनदायी मां की तरह। जितना हम उसे देते हैं या उसे पोसते हैं उसके बदले में कई गुना अधिक वह हमें दे देती है। यह हमारी अज्ञानत और मूढ़ता ही है कि हम अपने विनाश के सौदागर खुद ही बन रहे हैं। हमारे निहित स्वार्थ हमें अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ सोचने नहीं दे रहे।
कभी आपने महसूस किया है कि सुबह शांत वातावरण में पक्षियों का चहचहाना, हवा की सरसराहट, फूलों का खिलना, सुबह की धूप ऐसा लगता है कि उस समय देवता पृथ्वी घूम रहे हों। उस समय मैं मगन रहती हूं बाद में पनपते हैं ये विचार। बात वही पुरानी है कि इस लाकडाउन ने पर्यावरण को लेकर एक उदाहरण हमारे सामने रख दिया है कि हम इंसान पर्यावरण पर कितना अत्याचार कर रहे हैं?

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प्रकृति और कोविड-19ः विज्ञान ने मनुष्यता को स्वर्ग और नर्क दोनों दिखा दिए

हाल ही में विज्ञान के अधिक उन्नतीकरण व आधुनिकीकरण का विभिन्न क्षेत्रों में मनुष्यता व पृथ्वी पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
यदि हमारे पूर्वज इस नए दौर के चमत्कारों को देखते तो वे अचंभित रह जाते और साथ ही मानते कि ये सदी इतनी बुरी भी नहीं है जितनी उनके समय में थीं। विज्ञान की देवी ने एक ओर हमें जीवन दान का आशीर्वाद दिया तो दूसरी ओर हमें जीवन की गुणवत्ता की कमी का अभिशाप दिया है। हम इक्कीसवीं सदी में एक प्राकृतिक बम पर सवार होकर प्रवेश कर चुके हैं जो कभी भी फट सकता है, क्योंकि दिन प्रतिदिन मनुष्य का असीमित लालच व धरती मां का शोषण हो रहा है। वो दिन दूर नहीं जब न केवल हम बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ पीने का पानी व प्रकृति मां के कोमल सुंदर हरे-भरे वन-विपिन शुद्ध वायु बरसात के लिए तरसेंगे।
ये चिंता न जाने हमें कितने समय से थी, परन्तु हाल ही में कोरोना वाइरस ने हमें दिखा दिया कि हम प्रकृति के आगे कितने तुच्छ हैं। एक ओर मानव जाति कोरोना की लड़ाई में हारती जा रही है वहीं दूसरी ओर असंतुलित पृथ्वी का बहाल हो रहा है। इसका प्रमाण हमारे आसपास हुई घटनाओं में दिख रहा है। न जाने कितने सालों के शोध व वैज्ञानिकों के प्रयासों के बावजूद भी हमारी पृथ्वी की ओजोन परत में छिद्र कम नहीं हो रहे थे। जिस से सूर्य की हानिकारक यूवी किरणे पर्यावरण को नष्ट करतीं हैं। परंतु आज वे छेद न के बराबर है।

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