Sunday, June 8, 2025
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 89)

लेख/विचार

बुजुर्गों की अनदेखी…

समाज को आईना दिखाता एक सच..
अगर पुराने दौर में एक नजर घुमाई जाए तो बुजुर्गवार लोग इतने लाचार नहीं होते थे जितने कि अब दिखाई देते हैं। तब परिवार में मुखिया के तौर पर उनकी पहचान बनी रहती थी और हर जरूरी कार्य में उनकी सलाह या रजामंदी ली जाती थी। बदलते वक्त ने संबंधों में दूरी तो बढ़ा ही दी है साथ में भावनाओं को भी खत्म कर दिया है। व्यक्ति अपनों के प्रति असंवेदनशील होता जा रहा है। हम भाग दौड़ भरी जिंदगी, व्यस्तता और छोटे होते परिवार को दोष देते हैं लेकिन क्या यह सही नहीं है कि मूल्यों का हनन और संस्कार भी मिटते जा रहे है। अपवाद हर जगह होते हैं और अब भी दिखाई देते हैं कि बहुत व्यस्तता के बावजूद लोग अभी भी जिम्मेदारियां निभाते हैं हालांकि यह अब गांवों में, छोटे परिवार और संयुक्त परिवारों में दिखाई देती है जहां बुजुर्गों देखभाल होती है। उन्हें अपमानित या निरादर नहीं किया जाता है। लेकिन फिर भी आज समाज में इतना बदलाव आ चुका है कि मानव मन संवेदना से दूर होता जा रहा है। आज हम अपने लोगों से ही दूर होना चाहते हैं, जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते हैं। आज लोग अपने बूढ़े माता-पिता को बोझ समझने लगें हैं। आज की औलादें यह महसूस नहीं कर पा रही है कि यह वही माता पिता है जिन्होंने उनके लिए खुद को होम किया है। बचपन से लेकर जवानी तक उनके एक शानदार जीवन के लिए संघर्ष किया है। बाद में वही बच्चे यह तो तुम्हारा फर्ज था कहकर मुंह चुराते हैं, और जब जिम्मेदारी की बात आती है तो व्यस्तता का बहाना बना कर मुंह मोड़ लेते हैं।

Read More »

कहिये नेता जी क्या कहना है !

कही कमल को खिलने का मौका तो नही दे गए कमलनाथ ! क्योंकि जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रही थी अब उसी भ्रष्टाचार के जाल मे खुद उलझती प्रतीत हो रही। हाल ही में न्यूज चैनलों के ओपेनियन पोल में जो कांग्रेस 90 सीटे जीतती दिख रही थी अब वो आकड़ा 60 पर सिमट रहा। इस गिरावट का प्रमुख कारण म0 प्र0 में कमलनाथ सरकार का हवाला भ्रष्टाचार मुख्य रूप से राहुल गांधी के लिए मुसीबत बन गयी है। ईडी और सीबीआईं ने बेहतरीन कार्य किया है। भले ही विपक्ष मुख्य सत्ताधारी पार्टी पर ये आरोप प्रत्यारोप लगाये की ईडी और सीबीआईं सरकार के इसारे पर बदले की भावना से कार्य कर रही पर आप आरोप लगा कर खुद को बचा भी नहीं पा रहे। आखिर आप पकड़े जा रहे आपकी चोरी सरे आम उजागर हो तो रही मतलब आपने भ्रष्टाचार किया है तभी आप ई डी के हत्थे चढ़ रहे। सरकार बेशक अपना काम करा रही पर आप के पास से अवैध दस्तावेज और बेनामी सम्पत्ति व बड़ी मात्रा में नगद मिल रहे तो आप बिल्कुल भ्रष्ट साबित हो रहे। ममता बेनर्जी भी खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चला चुकी है क्योंकि शारदा चिटफंड मामले में सीबीआईं को रोकने के लिए सत्ता का दुरुपयोग जिस प्रकार दीदी ने किया यदि हिटलर जिंदा होता तो ममता दीदी की तानाशाही देख आत्महत्या कर लेता।

Read More »

बेरोजगारी के वादे पर चुनावी जीत?

चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई है। इन दिनों बेरोजगारी खत्म करने का वादा या न्यूनतम आमदनी के वादे पर वोट हासिल करने की जोर आजमाइश जारी है। कांग्रेस का कहना कि जीतने के बाद देश के हर नागरिक को न्यूनतम आमदनी देगी। कुछ इसी तरह दो करोड़ नौकरी देने का वादा वर्तमान सरकार ने बेरोजगारी को लेकर किया था और जो पूरा नहीं हो सकने कारण युवा वर्ग निराश और नाराज है।
राहुल गांधी का न्यूनतम आमदनी देने का वादा महज चुनावी लगता है। हर देशवासी को न्यूनतम आमदनी देने का भार क्या राजस्व सहन कर पाएगा? और क्या इस तरह गरीबी खत्म हो पाएगी? और यह धन कहां से आएगा? इन सवालों का जवाब नहीं है कांग्रेस के पास। इंदिरा गांधी की तरह “गरीबी हटाओ” के नारे की तरह वोट बैंक हासिल करने का मात्र उपाय पर है या फिर क्या यह मनरेगा की तरह ही स्कीम है ? क्या इससे गरीबी और बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी?
कांग्रेस मेनिफेस्टो “हम निभायेंगे” के अनुसार 72000 गरीबों के खाते में हर साल दिये जायेंगे, 22 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार की बात और किसानों के लिए अलग बजट की वादे क्या कांग्रेस को सत्ता वापस दिला पायेगी? वर्तमान सरकार ने भी इन्हीं वादों पर सरकार बनाई थी और वादा न पूरा होने पर आज युवा वर्ग में नाराजगी व्याप्त है। महज चुनावी वादों पर राजनीति तो हो सकती है लेकिन सरकार नहीं बनाई जा सकती है।

Read More »

चुनाव 2019: तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें नोट दूँगा

इस बार का आम चुनाव तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें नोट दूंगा की उक्ति को चरितार्थ करता हुआ दिखायी दे रहा है। राजग सरकार ने अपने अन्तरिम बजट में देश के करीब 12.56 करोड़ किसानो को प्रति वर्ष छै हजार रुपये तथा असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ मजदूरों को प्रति माह तीन हजार रुपये तक पेंशन देने की घोषणा करके सत्ता में वापसी का गणित लगाया था। परन्तु राहुल गाँधी ने देश के 5 करोड़ सर्वाधिक गरीब परिवारों को 72 हजार रुपये प्रति वर्ष देने की घोषणा करके सबको चैका दिया है। आगे यदि कोई अन्य दल इससे भी बड़ी घोषणा कर दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इस तरह की घोषणाएँ सुनने में भले ही अच्छी लगती हों। परन्तु इनका दूरगामी परिणाम मीठे जहर की तरह ही सिद्ध होता है।
किसी भी देश के नागरिकों को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, सुरक्षा, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना उस देश की सरकार का प्रमुख दायित्व है। जो भी देश अपने प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के उपरोक्त सेवायेँ मुहैया कराने में सफल हो जाय। उसे ही सही अर्थों में विकसित देश की संज्ञा दी जानी चाहिए।

Read More »

मैं, मेरा बचपन और किताबों से दोस्ती – प्रमोद दीक्षित

बुंदेलखंड के बांदा जिले के एक पिछडे़ गांव ‘बल्लान’ में 1973 में जन्म हुआ और 1998 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सहायक अध्यापक के रूप में जुड़ना हुआ। एक शिक्षक के रूप में काम करते हुए पूरे बीस साल हो गये हैं। अपनी पढ़ाई, शिक्षक बनने की प्रक्रिया, शिक्षक रूप में अनुभव और इस दौरान मिली बाधाएं एवं चुनौतियां, समाधान के रास्ते और उपलब्धियों की ओर देखता हूं तो कुछ ऐसा चित्र उभरता है।
पढ़ने के साथ लिखना भी प्राथमिक कक्षाओं में रहते हुए ही शुरु हो गया था। हालांकि तब यह बिल्कुल नहीं मालूम था कि पढ़ना-लिखना क्या है? लेकिन स्कूली किताबों के अलावा जो कुछ भी पढ़ पाया उसने मुझे एक बेहतर नागरिक बनने या होने में मेरी भरपूर मदद की। एक शिक्षक के रूप में अपने स्कूल में आज जो भी नया कर पा रहा हूं उसमें बालपन से अब तक पढ़ी गई किताबों से उपजी साझी समझ का बहुत बड़ा योगदान है। पढ़ने ने मुझे शब्द-सम्पदा का धनी बनाया, लेखन में एक अपनी शैली विकसित करने में सहारा दिया और चीजों को समझने की दृष्टि भी भेंट की। मेरा भाषा और गणित का आरम्भ एक साथ हुआ बल्कि यह कहना कहीं अधिक ठीक रहेगा कि दोनों प्रत्येक व्यक्ति के शुरुआती सीखने में साथ-साथ चलते हैं। शब्द राह दिखाते हैं, अक्षर लुकाछिपी का खेल खेलते-खेलते नये शब्द रचवा लेते हैं। आज जब पीछे मुड़कर देखता और विचार करता हूं कि पढ़ने-लिखने की शुरुआत कब, कैसे, कहां हुई तो तीन छोर नजर आते हैं।

Read More »

मीना कुमारी: पहली फिल्म फेयर एवार्ड पाने वाली अभिनेत्री

मायानगरी मुम्बई, प्रमोद दीक्षित। यह युवाओं के सपनों का शहर है। यहां रातें भी सितारों की झिलमिलाहट से रोशन रहती हैं। यहां गिरने वालों को कोई उठाने वाला नहीं होता उसे स्वयं ही उठकर अपनी धूल झाड खड़ा होना पड़ता है। यह उगते सूरज को वंदन करने वालों की जगह है। यहां उल्लास है, उमंग है, जिजीविषा और आनन्द भी तो वहीं पीड़ा है, बेबसी है और हताशा भी। बेशुमार धन-दौलत है और धन से बने नीरस एवं बेजान सम्बंध भी। सफलता का अट्टहास करती अट्टालिकाएं हैं तो असफलता का रुदन करती चाल-झोंपड़ी भी। फलक पर खुशियों की धारा का सरस प्रवाह है तो तल पर जीवन की विकृति और विषाद का जमाव एवं ठहराव भी। सफलता के भोजपत्र में इंद्रधनुषी रंग और हास-परिहास की मधुर ध्वनि है तो असफलता के स्याह पृष्ठ पर कराहता मूक स्वर और हताश मन की इबारत भी। हंसते-मुस्काते चेहरों के पीछे दर्द से तड़पते मन हैं और सूखे आंसू भी। पर कलाकार अपने दुःखों और पीड़ा को सीने में दफन किए दर्शकों के लिए अभिनय करते हैं ताकि उन्हें रसानुभूति करा सकें। ऐसे सिने कलाकरों की एक लम्बी सूची है जो निजी जीवन के कष्टों को भूल बस कला के लिए जीये। मीना कुमारी निजी जीवन के दर्द और पीड़ा के घूंट को पल-पल पीने वाली भावप्रवण एवं संवेदनशील अदाकरा हैं जिन्हें 1954 में ‘बैजू बावरा’ के लिए पहला फिल्म फेयर एवार्ड प्रदान किया गया था। 38 वर्ष की अल्पायु में ही दुनिया छोड़ देने वाली मीना कुमारी कभी सुख-संतुष्टि का जीवन नहीं जी पायीं। दर्द एवं पीड़ा के अनुभव नज्मों के शेर बन ढलते रहे। उनकी गजलों का संग्रह गुलजार के संपादन में मृत्यु के बाद ‘तन्हां चांद’ के नाम से छपा।

Read More »

सियासी जामा पहनता.. मिशन शक्ति

“मिशन शक्ति” सभी को जानकारी को चुकी है इस बारे में कि अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिराने की क्षमता हासिल हो गई है, लेकिन इस चुनावी दौर में इसे भी भुनाया जा रहा ह। “मिशन शक्ति” मोदी या कांग्रेस की सफलता नहीं है, यह भारत की सफलता है। आज भारत इस उपलब्धि के कारण एक महाशक्ति के रूप में उभरा है। किसी भी कार्य में सफलता सरलता से हासिल नहीं होती, वर्षो की मेहनत, लगन और संघर्ष के बाद जीत की ओर कदम बढ़ते है। आज हमारे वैज्ञानिक सबसे ज्यादा बधाई के हकदार है जिन्होंने ये उपलब्धि हासिल करके देश का मान बढ़ाया है। ये मिशन किस समय शुरू हुआ यह महत्व की बात नहीं है बल्कि हमने एक चुनौती को पूर्ण करके सफलता हासिल की है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अहमद पटेल का बयान कि “यूपीए सरकार ने ए एस ए टी प्रोग्राम की शुरुआत की थी, जो आज सफल हुआ है। मैं भारत के वैज्ञानिकों और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व को बधाई देता हूं।” यह मिशन किसी भी सरकार के कार्यकाल में पूरा हुआ हो मगर डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की 9 सालों की मेहनत रंग लाई है तो सियासी रंग में नहीं रंगना चाहिए मोदी अभी भी प्रधानमंत्री है और उनका फर्ज बनता है कि देश के वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई करें लेकिन मोदी को राष्ट्र के नाम संबोधन करने से बचना चाहिए था । देश की यह सफलता मीडिया वैसे भी बखानता पर मोदी सेना, न्यायपालिका और अब वैज्ञानिकों की सफलता भुना रहे। तो राजनीति कौन कर रहा ? इस मुद्दे पर ममता बनर्जी की नाराजगी सिर्फ एक चुनावी ड्रामा भर है। प्रियंका माहेश्वरी।

Read More »

कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है

दिन की शुरुआत अखबार में छपी खबरों से करना आज लगभग हर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा है। लेकिन कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर जाती हैं कि क्या आज के इस तथाकथित सभ्य समाज में भी मनुष्य इतना बेबस हो सकता है? क्या हमने कभी खबर के पार जाकर यह सोचने की कोशिश की है कि क्या बीती होगी उस 12 साल की बच्ची पर जो हर रोज़ बेफिक्र होकर अपने घर के आंगन में खेलती थी लेकिन एक रोज़ उसका अपना ही आंगन उसके लिए महफूज़ नहीं रह जाता? आखिर क्यों उस आंगन में एक दिन यकायक एक तूफान आता है और उसका जीवन बदल जाता है? वो बच्ची जो अपने माता पिता के द्वारा दिए नाम से खुद को पहचानती थी आज वो नाम ही उसके लिए बेगाना हो गया। सिर्फ नाम ही नहीं पहचान भी पराई हो गई। कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है। सिर्फ पहचान ही नहीं उसकी जिंदगी भी बदल गई। कल तक उसके सिर पर पिता का साया था और भाई का प्यार था लेकिन आज उसके पास एक “शौहर” है। कल तक वो एक बेटी थी एक बहन थी लेकिन आज वो एक “शरीके हयात” है।

Read More »

लोकसभा चुनाव… भाजपा की सत्ता में वापसी ?

आखिर 2019 आ ही गया… मतलब सत्ता के 5 साल की अवधि पूरी होने को आई। 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ वर्तमान सरकार बहुत सारे वादों के साथ सत्ता में आई थी। काले धन की वापसी,नोटबंदी, भ्रष्टाचार का खात्मा, बेरोजगारी, जीएसटी, किसान, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से भाजपा सरकार ने जनता को लुभाया। वर्तमान सरकार ने 700 से अधिक योजनाएं शुरू की लेकिन सिर्फ आंकड़ों में ही योजनाएं सफल दिख रही हैं, जमीनी स्तर पर नहीं।
काला धन वापस आया? नोट बंदी से भ्रष्टाचार में कमी आई? दो करोड़ रोजगार देने का वादा पूरा हुआ? किसानों की आत्महत्या रुकी? बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान कितना सफल रहा?महिला सुरक्षा कितनी कारगर? नमामि गंगे परियोजना कितनी सफल? आदर्श ग्राम योजना कितनी सफल? जवान कितने सुरक्षित? अभी हालिया घटना पर ही ध्यान दें। नक्सली हमलों में कितनी कमी? राम मंदिर मुद्दा इन 5 सालों में कितना सुलझा? यह सिर्फ भाजपा सरकार की बात नहीं है पिछली सरकार में भी यही समस्यायें मुंह बाए खड़ी थी। लोगों की बात सही है जो काम 70सालों में नहीं हुआ वह 5 साल में कैसे पूरा होगा लेकिन फिर एक सवाल कि कहीं तो आंशिक सफलता दिखाई देती इन मुद्दों में? सवर्ण नाराज, दलित नाराज और अल्पसंख्यक नाखुश, धर्म के नाम पर सियासत, सांप्रदायिकता को बढ़ावा, आम आदमी डर कर जी रहा।

Read More »

संकट में है गौरैया का जीवन

आज से एक डेढ़-दो दशक पूर्व तक हमारे घरों में एक नन्ही प्यारी चिड़िया की खूब आवाजाही हुआ करती थी। वह बच्चों की मीत थी तो महिलाओं की चिर सखी भी। उसकी चहचहाहट में संगीत के सुरों की मिठास थी और हवा की ताजगी का सुवासित झोंका भी। नित्यप्रति प्रातः उसके कलरव से लोकजीवन को सूर्योदय का संदेश मिलता और वह अपने नेत्र खोल दैनन्दिन जीवनचर्या में सक्रिय हो उठता। विद्याथियों के बस्ते खुलते और किताबें बोलने लगतीं। कोयले से पुती काठ की पाटियों में सफेद खड़िया से सजे अक्षर उभरने लगते। बैलों के गले में बंधी घंटियों की रूनझुन के साथ कंधे पर हल रखे किसानों के पग खेतों की ओर चलने को मचल पड़ते और महिलाएं गीत गाती हुई जुट जातीं द्वार-आँगन बुहारने में। और तभी आँगन में उतर आता कलरव करता चिड़ियों का झुण्ड। रसोई राँधने के लिए अनाज पछोरते समय सूप के सामने वह फुदकती रहती। सूप से गिरे चावल के दाने चुगती चिड़ियाँ लोक से प्रीति के भाव में बँधी निर्भय हो सूप में भी बैठ सहजता से अपना भाग ले जाती। इतना ही नहीं, वह रसोई में भी निर्बाध आती-जाती और पके चावल की बटलोई में बैठ करछुल में चिपका भात साधिकार ले उड़ती।

Read More »