कानपुर देहात, प्रशान्त कटियार। बेसिक शिक्षा पर हर महीने करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद परिषदीय स्कूलों की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। नामांकन के सापेक्ष छात्र छात्राओं की संख्या कम हो रही है। वर्तमान समय में स्कूल खाली पड़े हैं। किसी का कहना है देहात में बगैर मान्यता के चल रहे स्कूलों की वजह से प्राइमरी स्कूलों तक बच्चे नहीं पहुंच रहे हैं तो किसी का कहना है कि सक्षम लोग महंगी फीस के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं लेकिन हकीकत में माजरा क्या है इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
बता दें परिषदीय स्कूलों में इस समय बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो गयी है पता नहीं अनजाने में हुई है या जानबूझ कर पैदा की गई है ? पिछले वर्ष विद्यालयों में नामांकन की उम्र 6 वर्ष से घटा कर 5 वर्ष कर दी गई जिसके कारण बड़ी संख्या में नामांकन हुए, पर इस बार पुनः नामांकन की उम्र 6 वर्ष कर दी गई है तो स्कूलों के नामांकन में बढ़ोतरी नहीं हो रही है आइए जानते हैं इसका मुख्य कारण क्या है- पिछले वर्ष नामांकन की उम्र 5 वर्ष कर दी गयी तो उस समय जो भी 5 वर्ष के बच्चे थे उनका नामांकन स्कूलों में हो गया। इस बार उम्र 6 वर्ष कर दी गयी तो सोचिये नए एडमिशन कहां से होंगे ? जो इस बार 6 वर्ष का हो रहा है वो तो पिछले वर्ष ही नामांकित हो चुका है जब वो 5 वर्ष का था। अतः इस बार नामांकन में भारी गिरावट आयी है। इस बार नामांकन की उम्र 6 वर्ष होने के कारण शिक्षक उन बच्चों का एडमिशन नहीं कर पा रहे हैं जोकि पिछले वर्ष 4 वर्ष के थे और इस बार 5 वर्ष होने पर उनका एडमिशन होना था। वे 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे का एडमिशन नही कर पा रहे हैं वही दूसरी ओर बगल के निजी विद्यालयों में 4 वर्ष से ही एडमिशन लिए जा रहे हैं। मतलब आज जो 5 वर्ष का उसका एडमिशन शिक्षक नहीं कर रहें है वो तो किसी निजी विद्यालयों में नामांकित हो रहे हैं, अगले वर्ष जब वो 6 वर्ष के होंगे और शिक्षक एडमिशन के लिए जाएंगे तो पता चलेगा कि वो तो पड़ोस वाले निजी विद्यालय में 1 वर्ष पूर्व ही नामांकित हो चुका है। मतलब एक बदलाव से इस वर्ष भी नामांकन प्रभावित होगा और अगले वर्ष भी प्रभावित होगा जिसके परिणाम होंगे कि 40 फीसदी से अधिक स्कूल 100 से नीचे की संख्या वाले हो जाएंगे और लगभग 25 फीसदी स्कूल में 50 बच्चे ही बचेंगे। यह स्थिति कितनी गंभीर होगी इसे समझना इतना आसान नहीं होगा। एक लाइन में कहूँ तो 2 वर्ष नामांकन न होना किसी भी स्कूल को तोड़ देने के लिए काफी है। अब इसमें गलती शिक्षक की नहीं है पर दोषी शिक्षक को ही बनाया जाएगा। सरकार शिक्षकों पर प्रेशर बना रही है कि पिछले वर्ष की तुलना में छात्र नामांकन बढ़ाएं अन्यथा कार्यवाही की जाएगी।