Friday, May 3, 2024
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आत्म कल्याण को अध्यात्म विद्या आवश्यकः मुनि विशुद्ध सागर

बागपत। दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने बड़ौत के ऋषभ सभागार में आयोजित धर्मसभा में मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि आत्म कल्याण के लिए अध्यात्म विद्या सर्वश्रेष्ठ है।
जैन मुनि ने कहा, जहां विचारशीलता के साथ उमंग, उत्साह, जागृति और लगनशीलता होगी, वहाँ सिद्धियाँ स्वयमेव होने लगती हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि जो-जो नारियों को निहारते हैं, उनको अपयश ही मिलता है। रावण ने नारी को निहारा, तो नरक जाना पड़ा। जो कुदृष्टि से नारियों को देखता है, उसका चारित्र नष्ट हो जाता है । विकृत दृष्टि चारित्र भ्रष्ट कर देती है। पवित्र दृष्टि ही पवित्र- पथ प्रदान करती है। धन-धरती का राग महा-अनर्थकारी होता है ।
सही सोच एवं पवित्र दृष्टि आनन्दकारी होती है। आनन्द पूर्वक जीना है तो व्यर्थ की बातें मत सुनो, व्यर्थ में मत सोचो एवं व्यर्थ बोलो भी मत। अपनी मानसिक एवं शारीरिक शक्ति की रक्षा करो। साधक को अपनी-साधना पर दृष्टि रखना चाहिए। राग एवं द्वेष मल हैं, इस मल से रक्षा करो। बुरे विचार ही बुरे कार्यों के प्रति प्रेरित करते हैं।सभा मे मुनि श्री जितेंद्र सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन किये। मंच संचालन मनोज जैन ने किया। मंगलाचरन ब्रह्मचारी सोनू भैया ने किया। दीप प्रज्वलन दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन, मंत्री अतुल जैन, सुनील जैन, अशोक जैन द्वारा किया गया। पाद प्रक्षालन का सौभाग्य श्री आदिनाथ सेवा संघ के अध्यक्ष अंकुर जैन, मयंक जैन, अमित जैन, मनीष जैन, पंकज जैन,पारस जैन, दिनेश जैन, नितीश जैन, अमित जैन, अजय जैन, संजय जैन द्वारा किया गया।