Friday, May 17, 2024
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कौन होगा प्रत्याशी.? अटकलें जारी, वोटर की चुप्पी और असमंजस में पड़े नेता

रायबरेली। कांग्रेस के गढ़ रायबरेली में लोकसभा चुनाव के नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया जारी है लेकिन भाजपा तथा कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। जबकि बसपा ने सरेनी से विधानसभा चुनाव लड़ चुके ठाकुर प्रसाद यादव को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। परन्तु भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी के नामों का खुलासा न होने से यहां लोगों में अटकलों का दौर जारी है। वहीं लोकसभा चुनाव को लेकर वोटर भी चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे नेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
बताते चलें कि रायबरेली कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। आजादी के बाद से ही यह सीट नेहरू-गांघी परिवार के इर्द गिर्द घूमती रही है। वर्ष 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव में फिरोज गांधी यहां से सांसद बने। उन्हें 1957 में दुबारा भी जीत हासिल हुई। कार्यकाल के दौरान उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के ही राजेंद्र प्रताप सिंह चुनाव जीते। इसके बाद 1962 में हुए आमचुनाव में कांग्रेस के बैजनाथ कुरील ने सीट बरकरार रखा। 1967 में इंदिरा गांधी लगातार दो बार सांसद बनी और जिले ने देश को पहला प्रधानमंत्री देने का गौरव हासिल किया। 1971 में दुबारा इंदिरा गांधी को यहां की जनता ने सर आंखों पर बिठाया। लेकिन वर्ष 1977 में हुए आमचुनाव में जनता पार्टी की लहर में इंदिरा गांधी ठहर नहीं सकी और राजनारायण ने उन्हें पराजित कर दिया। लेकिन इंदिरा गांधी की हार पर यहां की जनता हतप्रभ रह गई। संभवतः उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तभी तो उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों को जीता कर प्रायश्चित किया। हालांकि विभिन्न विचारधारा के दलों से बनी जनता पार्टी तीन साल में ही टूट गई और वर्ष 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली के साथ आंध्रप्रदेश से भी चुनाव लड़ा था। जो दोनों सीटों से विजयी घोषित हुई। और एक बार फिर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन गई। लेकिन उन्होंने यहां से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उपचुनाव में कांग्रेस ने अरुण नेहरू को उम्मीदवार बनाया, जिन्हें सफलता हासिल हुई। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और 1984 के चुनाव में दुबारा अरुण नेहरू जीते और राजीव गांधी मंत्रिमंडल में मंत्री बने। लेकिन बोफर्स मुद्दे को लेकर राजीव गांधी और अरुण नेहरू में ठन गई। इससे 1989 में इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल को यहां से कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया जिन्हें विजय प्राप्त हुई, वर्ष 1991 में शीला कौल दुबारा चुनी गई। लेकिन वर्ष 1996 व 1998 में सीट भाजपा के खाते में चली गई। यहां से अशोक सिंह को लोगों ने संसद भेजा। लेकिन वर्ष 1999 में कांग्रेस ने राजीव गांधी के अभिन्न मित्र कैप्टन सतीश शर्मा को उम्मीदवार बनाया। जिसमें सफलता मिली। यहां उल्लेखनीय है कि सतीश शर्मा के खिलाफ भाजपा ने यहां से कभी सांसद रहे अरुण नेहरू को प्रत्याशी बनाया था। जिन्हें चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। इसी चुनाव में यहां पहली बार प्रियंका गांधी ने सतीश शर्मा के लिए प्रचार किया था। जिसे जनता ने बखूबी तवज्जो दिया था। सतीश शर्मा की जीत का पूरा श्रेय प्रियंका गांधी का था, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके बाद वर्ष 2004 से यहां के लोगों ने वर्ष 2019 तक हुए सभी चुनावों में लगातार चार बार सोनिया गांधी को भारी मतों से जिताकर संसद भेजा है। इसमें वर्ष 2014 व 2019 की मोदी लहर भी यहां के लोगों के सामने बौनी साबित हुई है। अब सोनिया गांधी राज्यसभा पहुंच गई हैं। इससे वर्ष 2024 बगैर सोनिया गांधी के कांग्रेस लड़ने जा रही है। लेकिन अभी कांग्रेस व भाजपा ने प्रत्याशी के पत्ते नहीं खोले हैं। जबकि अल्प समय के लिए यहां से गैर कांग्रेसी सांसद चुने गए हैं।