बागपत। दिगंबर जैन आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ने बड़ौत नगर के श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में प्रवचन करते हुए कहा कि आन्तरिक भावों के अनुसार व्यक्ति जीवन जीता है। भावों की निर्मलता, वाणी की मधुरता, आचरण की पवित्रता, व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित बनाते हैं। कषाय की मंदता, परोपकारवृत्ति, आत्म हितकारी दृष्टि, अध्ययनशीलता, विनम्रता, अनुशासन प्रियता, गुण ग्राहयता का भाव, निस्प्रहता, उमंग उत्साह, दया, करुणा और संयम आचरण सर्वाेत्थान के लिए आधार स्तम्भ है।
जैन मुनि ने कहा, लोक के सर्व प्राणी स्व प्रयोजन के अनुसार वृत्ति करते हैं। व्यक्ति की उच्च सोंच ही उच्चता प्रदान करती है। जिसकी सोंच पवित्र होगी उसका भोजन भी पवित्र ही होगा। सज्जन पुरुष अपवित्र, हिंसक, मांसाहारी भोजन नहीं करते हैं। धर्मात्मा के विचार वाणी और कार्य सर्व हितकारक होते हैं। हमारी वाह्य वृत्ति आंतरिक भावों की परिचायक होती है। अशुभ भोजन, बुरे भाव, हिंसक वृत्ति, पुण्य शीनता की पहचान है। पुण्य आत्मा का भोजन,भाव, भाषा एवं वेश पवित्र होते हैं।अशुभ आयु के बंधक अपवित्र भोजन ही करते हैं। मांसाहार मानवता पर कलंक है। कल्याणकारी दृष्टि है तो अपनी भाषा, भोजन,भाव और भेष को पवित्र करो। जिसके वचन पवित्र नहीं वह कितना भी वास्तु सुधार ले, उसे शांति नहीं मिल सकती है। सुख शांति की चाह है तो अपने वचनों को संभालो। संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
इस मौके पर प्रमुखरूप से सुरेंद्र जैन, अनिल जैन, नवीन जैन दीपक जैन, सतीश जैन, विनोद जैन एडवोकेट, प्रवीण जैन, सुनील जैन, सुभाष जैन, अशोक जैन, अतुल जैन उपस्थित थे।
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