सरकारी विभागों के निजीकरण की बात आते ही हम भड़क जाते हैं फिर चाहे वह एयर इंडिया की हो या आजकल रेलवे के निजीकरण को लेकर जो विवाद चल रहा है। निजीकरण क्यों हो रहा है कोई इस बात पर विचार करना ही नहीं चाहता। सरकार व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं ला पा रही है और जिसका आसान विकल्प निजीकरण के रूप में अपना रही है। पहली वजह तो यही है कि अधिकारी वर्ग भ्रष्ट है। वो काम करना ही नहीं चाहते। सुबह 9 से शाम 6 बजे तक की हाजिरी वाली ड्यूटी पूरी कर अपना दिन पूरा कर अपनी तन्ख्वाह जमा करते हैं। ये काम के प्रति जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते। आम आदमी इनकी अकर्मण्यता से त्रसित हो रहा है, हालांकि निजीकरण के बारे में ऐसा तर्क दिया जा रहा है कि यह सिर्फ विशुद्ध मुनाफाखोरी वाली नीति है क्योंकि सुविधाएं तो बढ़ती नहीं लेकिन हर चीज पर अलग से भुगतान का भार बढ़ जाता है।
दूसरी बात रोजगार पर आती है। निजीकरण द्वारा नौकरियां सीमित कर दी जाती है और अनावश्यक लोगों और खर्चों पर नियंत्रण कर लिया जाता है लेकिन निजीकरण के जरिए एक बात देखी जाती है कि जिस काम को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं वह तयशुदा समय सीमा में पूरी हो जाती है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ है। मुफ्तखोरी, घूसखोरी, सामानों की चोरी लाइलाज बीमारी बन कर रह गयी है। अकर्मण्यता इस हद तक बढ़ गई है कि लोगों को सुविधाएं नहीं मिल पाती है और उनकी तकलीफों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। टैक्स भरने के बाद भी आमजन की जेब पर बोझ तो पड़ता ही है। निजीकरण द्वारा इन बातों पर लगाम लग जाती है।
इन बातों पर गौर करने के बाद एक बात सवाल उठता है कि सरकार द्वारा दी गई सेवाओं का लाभ अगर जनता सही ढंग से इस्तेमाल करें तो किसी भी विभाग के निजीकरण की समस्या नहीं आएगी। हम खुद जिम्मेदार हैं निजीकरण व्यवस्था को प्रोत्साहित करने में। आज सरकारी बसें चल रही है जो काफी अच्छी सुविधाएं देती है लेकिन जनता प्राइवेट बस में दुगना भुगतान करके उसमें जाना पसंद करती है। जनता द्वारा सरकारी सुविधाओं के इस्तेमाल से सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा ही साथ में जनता की सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जाएगा। सरकार को भुगतान करके हम देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बना सकते हैं। कुछ सरकारी विभागों की बात छोड़ दें तो कई जगहों पर सुधार भी हुआ है लेकिन इसमें जनता का सहयोग अपेक्षित है। भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के चलते निजीकरण को बढ़ावा मिल रहा हैं। हम विदेशों में जनता को मिल रही सुविधाओं की बात तो करते हैं लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं देते कि वहाँ के लोग भी नियमों का पालन करते हैं। यहाँ जनता ऐसी है ट्रेन में चेन से बंधा मग्गा चुरा कर ले जाते हैं। टू टायर में मिलने वाली नैपकिन, चादर तक चुरा लेते हैं और कोच में ही गंदगी फैलाते हैं।
विदेशों में पढ़ाई से लेकर यातायात तक की सुविधा सरकार द्वारा दी जाती है और जनता उससे संतुष्ट भी है। यह पहल हमारे यहां भी होनी चाहिए। आज कुछ शहरों में मेट्रो की सुविधा दी गई है शुरू में कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया कि मेट्रो नहीं बल्कि पुरानी रेल व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए। जहां आए दिन हादसे होते रहते हैं। बात सही भी है कि रेल व्यवस्था में सुधार बहुत जरूरी है और हर व्यक्ति मेट्रो में सफर नहीं कर सकता है लेकिन समय और जरूरत के अनुसार मेट्रो के अपने फायदे हैं और लोग इस सुविधा का लाभ भी ले रहे हैं। हालांकि निजीकरण व्यवस्था से आम आदमी पर बोझ ही बढ़ेगा क्योंकि सुविधाएं बढ़ने के साथ – साथ उन पर भुगतान का भार भी बढ़ जाएगा। जिस तरह से सरकारी विभाग घाटे में चल रहे हैं उसकी चिंता किसे है? सबको अपने-अपने फायदे से मतलब है। हालांकि रेल मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट कहा है कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा लेकिन जब सुविधाओं की बात की जा रही है तो उसके लिए निवेश की जरूरत है। लेकिन क्या ये निवेश निजीकरण का ही दूसरा पहलू है?