Saturday, May 18, 2024
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आखिर कब तक…??

चीन से निकले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। आज हर आदमी मौत के साए में जी रहा है। एक डर जीवन का कि हम सेफ रहेंगे कि नहीं? हालांकि अभी साबित नहीं हुआ है कि यह वायरस चीन का जैविक हथियार है या चमगादड़ों से फैली बीमारी है जिसने महामारी का रूप ले लिया है फिर भी इस महामारी का तांडव बहुत भयानक है। लाशों के आंकड़ों की बात करें तो इसका कोई हिसाब नहीं है। कितने ही संक्रमित लोग और डॉक्टर, नर्स की सेवाएं और हॉस्पिटल, बेड इन आंकड़ों के सामने नकारा साबित हो रहे हैं। हर रोज एक नई दिल दहला देने वाली खबर सुनाई जाती है। हमारे पास लाकडाउन के सिवा और कोई पर्याय नहीं है। लेकिन एक सवाल यह भी उपजता है कि हम बैठे बैठे आखिर कब तक घर संभाल पाएंगे? और इस पर नियंत्रण कब पाया जाएगा? सबसे बुरी हालत मजदूर वर्ग और खुदरा व्यापार वालों की है।
इस वायरस से संक्रमित लोगों का बढ़ता हुआ आंकड़ा लोगों में दहशत फैला रहा है।
ये विचार योग्य बात है कि भारी जनसंख्या और सीमित संसाधनों वाला हमारा देश आज इस बीमारी से लड़ने में सक्षम साबित हो रहा है। बाहरी देशों के आंकड़ों के सामने हमारे देश के आंकड़े काफी कम है और सबसे बड़ी बात यह कि इस महामारी से लड़ते हुए वह बाहरी देशों को हाइड्रोक्लोरोक्वीन और पेरासिटामोल जैसी जरूरी दवाइयों की आपूर्ति भी कर रहा हैं जबकि अभी हमारे देश में ही इसकी बहुत जरूरत है। आज इस महामारी का असर श्रमिक वर्ग पर ज्यादा पड़ रहा है। काम धंधा ठप होने और वायरस से भयभीत, परिवार की चिंता लिए श्रमिक वर्ग जल्द से जल्द अपने घर की ओर पलायन कर जाना जाता है। ऐसी कठिन परिस्थिति में जहां सब संसाधन बंद है वो पैदल ही निकल पड़ा है। सरकार और समाजसेवी संस्थाएं अपनी तरफ से प्रयासरत हैं मगर फिर भी कुछ असामान्य घटनाएं सामने आ ही जाती है। पैदल जाते हुए लोग भूख और प्यास से रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं तो कहीं किसी को खाना नहीं मिल पा रहा है।
इस लाकडाउन का एक सकारात्मक पहलू यह भी देखने को मिला है कि कई जगह पर जानवर, पक्षी जंगल से निकलकर बाहर सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं। इंसानों के भय से छिपे वो मुक्त विचरण करते हुए दिखे।  एक सकारात्मक पहलू यह भी कि दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया,  गंगा में भी प्रदूषण में कमी पाई गई है।
यह बंद हमें पर्यावरण के प्रति संकेत दे रहा है कि हमें अपने जीवन शैली में बदलाव लाना चाहिए और संसाधनों के साथ – साथ पर्यावरण को भी साथ लेकर चलना चाहिए ताकि हमारा जीवन सुरक्षित रहे। स्वच्छतायुक्त और प्रदूषण मुक्त वातावरण ही जीवन और जीवन को उन्नति देता है। इस महामारी ने हमें स्वच्छता का संदेश दिया है। आज हम ना चाहकर भी वायरस के डर से बार बार हाथ धो रहे, स्नान कर रहे और अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रख रहें हैं लेकिन एक सवाल यह भी उठता है कि क्या हम बीमारी से मुक्त होने के बाद स्वच्छता को नजरअंदाज कर देंगे? क्या ये प्रयास सिर्फ महामारी से बचने तक ही रहेगा? हमें  इस प्रयास को अपने जीवन में नियम बनाकर उतारना चाहिए ताकि हम एक स्वस्थ जीवन जी सकें।
हमें प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करना चाहिए और पर्यावरण को स्वच्छ बनाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। जो हमें जीवन देती है उसका सम्मान करना चाहिए। जीवन में शुद्धि और स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है। संसार के सभी महापुरुष और विभिन्न पवित्र ग्रंथ भी स्थान, वाणी, शरीर और मन की शुद्धि की प्रेरणा देते आए हैं। भारतीय संस्कृति मन की पवित्रता को बहुत महत्व देती है। वेदों द्वारा “यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मेंवाभूद्विजानतः। तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः।” अर्थात समस्त प्राणियों में अपनी आत्मा के समान देखें एवं मोह व शोक से परे होकर एकता के भाव में जिये। यह विचार स्पष्ट किया गया है। हमें इसी विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहिए। -प्रियंका वरमा माहेश्वरी गुजरात