Saturday, May 18, 2024
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विदेशी प्लांट जिंदगी को इतना सस्ता क्यों समझते हैं

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम में एलजी पॉलिमर्स कम्पनी में गैस रिसाव ने 36 साल पुरानी भोपाल गैस त्रासदी की याद को फिर एक बार ताजा कर दिया है। भोपाल में 3 दिसम्बर 1984 को अमेरिकी कम्पनी यूनियन कार्बाइट से जहरीली गैस लीक होने से 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोग सांस और दूसरी शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हुए थे। काफी संख्या में लोग अंधे और विस्थापित हो गए थे। इतने सालों बाद भी पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिल पाया।
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एक केमिकल इंडस्ट्री से जहरीली गैस लीक होने की घटना बेहद दुखद है। इसमें दस से भी ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग बीमार हो गए हैं, जिनका अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। घायलों में से कुछ की हालत गंभीर है। विशाखापत्तनम शहर के नजदीक आरआर वेंकटपुरम गांव में एलजी पॉलिमर इंडस्ट्री में गैस का रिसाव गुरुवार को तड़के शुरू हुआ।
बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के दो दौर बीतने के बाद फैक्ट्री का कामकाज फिर से शुरू करने की तैयारी चल रही थी, तभी यह हादसा हुआ। गैस का प्रभाव कुछ घंटों तक बना रहा और आसपास के लोग इसके कारण सड़कों पर चलते-चलते बेहोश होने लगे। उन्हें चक्कर आ रहे थे और शरीर में जलन महसूस हो रही थी। मवेशियों का भी बुरा हाल हुआ और उनमें से कई खूंटों से बंधे हुए मारे गए। इस घटना के कारण 5 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक प्लांट से रिसने वाली गैस का नाम स्टाइरीन है, जो संपर्क में आने वालों के दिमाग और रीढ़ पर सीधा असर करती है। बाहरी वातावरण में आने के बाद स्टाइरीन ऑक्सिजन के साथ आसानी से घुल-मिल जाती है, जिसके चलते हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड का हिस्सा बढ़ने लगता है। इसके संपर्क में आने के बाद स्टाइरीन से बच निकले लोगों के फेफड़ों पर भी बुरा असर पड़ता है और वे घुटन महसूस करने लगते हैं। बहरहाल, गैस के रिसाव पर काबू पा लिया गया है लेकिन इलाके में अफरातफरी और दहशत का माहौल बना हुआ है। फैक्ट्री के आसपास के कई गांवों को खाली कराया गया है।
विशाखापट्नम ओरेंज जोन में है। जाहिर सी बात है कि अस्पताल पहले ही कोरोना युद्ध से लड़ रहे हैं। लोगों को सामाजिक दूरी बनानी होगी, उस स्थिति में इस तरह की समस्या अपने आप में बड़ी चुनौती है। लेकिन सबसे अहम सवाल है कि इस तरह की त्रासदी हुई कैसे? निश्चित रुप से यह कम्पनी प्रबंधन की सबसे बड़ी लापरवाही है। क्योंकि कम्पनी लॉकडाउन से 40 दिन से बंद थी तो काम संचालन के पूर्व पूरे प्लांट की अच्छी तरह जांच और निगरानी क्यों नहीं की गई।
रात के तीन बजे कम्पनी खोलने की क्या जरूरत थी। दिन में उसे क्यों नहीं खोला गया। घटना की बारीकी से जांच होनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। कहीं ऐसा तो नहीं कि लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्री की टंकियों और मशीनों का सही रखरखाव नहीं हो पाया। खासकर केमिकल इंडस्ट्रीज में कई चीजों के नियमित निरीक्षण की जरूरत पड़ती है। संभव है, लॉकडाउन के कारण इसमें बाधा आई हो या किसी स्तर पर लापरवाही हुई हो। ये बातें देश के सामने आनी चाहिए ताकि बाकी बचे लॉकडाउन में ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सके। विशाखापत्तनम में गैस रिसाव से प्रभावित लोगों को हर पहलू से राहत पहुंचाई जानी चाहिए और देश के सभी कारखानों की सुरक्षा-व्यवस्था की समीक्षा की जानी चाहिए।
क्या भोपाल गैस त्रासदी के बाद ऐसे कारखानों के लिए तैयार किए गए तमाम बचाव या आपदा प्रबंधन के दिशा-निर्देश हम भूल गए? कम्पनी खोलने से पहले क्या सम्बन्धित गाइडलाइन का अनुपालन किया गया था या नहीं। अगर नहीं तो इसके लिए सीधे तौर पर कम्पनी प्रबंधन की जवाबदेही बनती है। जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि यह मसला लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। विदेशी प्लांट भारत के लोगों की जिंदगी को इतना सस्ता क्यों समझते हैं। क्योंकि भोपाल और विशाखापट्नम की घटना विदेशी प्लांटों की वजह से हुई है। अपने आप में यह विचारणीय है।
राज्य और केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता है कि लोगों का जीवन बचाया जाय।
प्रभावित परिवारों और लोगों को बेहतर इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जाय। गैस के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिकों की मदद से प्रभावित इलाके को निष्प्रभावी बनाया जाय। इसका असर क्या हो सकता है लोगों को इसके बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाय। इस गैस का प्रभाव क्या भोपाल गैस त्रासदी से भी गहरा है इसकी भी जांच होनी चाहिए।
क्योंकि भोपाल में 36 साल पूर्व हुई इसी तरह की घटना में हजारों बेगुनाहों ने अपनी जान गँवाई थी। भोपाल में ही रात्रि में गैस लीक हुई थी जिसकी वजह से गहरी नींद में सो रहे लोग सुबह नहीँ उठ पाए थे। दमघुटने से उनकी मौत हो गई थी। अगर सच को जिंदा दफन किया गया तो भोपाल, विशाखापट्नम के बाद इसी तरह की और घटनाएँ सामने आती रहेंगी और अनगिनत छोटी घटनाएं इस तरह की कम्पनियों में हो चुकी हैं।
कोरोना का कहर झेल रहे देश में हुआ यह हादसा हमें कई प्रकार से सोचने को विवश करता है और जांच-समीक्षा की भी मांग करता है। अव्वल तो यह हादसा दूसरे ऐसे रासायनिक और प्लास्टिक बनाने वाले कारखानों के लिए सबक है। लॉकडाउन में बंद कारखानों में अब जब काम तेज होगा, तो उनमें पूरी सावधानी बरतने की जरूरत है। बताया जा रहा है कि इस कारखाने में करीब 40 दिनों के बाद काम शुरू हुआ था। जाहिर है, इतने दिनों से बंद पड़ी गैस की टंकियां और रसायन भंडार खास तवज्जो के साथ नई शुरुआत मांगेंगे। ऐसे तमाम कारखानों के लिए न केवल दिशा-निर्देश जारी होने चाहिए, बल्कि इन कारखानों के प्रबंधकों को स्वयं भी सतर्कता के साथ फिर काम चालू करना चाहिए।
अब नए सिरे से यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे कारखाने आबादी के बीच न रहें। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड का कारखाना भी पुराने शहर के बीचो-बीच स्थित था और त्रासदी की वजह बना था। यह हादसा भी हमें संकेत कर रहा है कि ऐसे कारखाने आबादी के बीच रहे, तो कभी भी जानलेवा साबित हो सकते हैं। ऐसे कारखाने कहीं भी खोलने की बजाय एक निश्चित क्षेत्र में सुरक्षित ढंग से बनाए जाएं। सरकारों, कंपनियों और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे हादसे देश में फिर कहीं न हों।
सरकारों और वहां के स्वयंसेवी संगठनो को आगे आना चाहिए। इस वक्त लोगों को अधिक से अधिक मदद की जरूरत है। इस मामले में दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी- कड़ी से सजा होनी चाहिए। विशाखापट्नम में सरकारों की पहली प्रथमिकता जहरीली गैस से पीड़ित लोगों की जान बचाने की होनी चाहिए। इस मामले में जाबबदेही तय होनी चाहिए। बेगुनाह लोगों की मौत का जिम्मेदार आखिर कौन है?
-डॉ सत्यवान सौरभ, वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार, कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार