भारत में स्कूल कॉलेज समेत तमाम शिक्षण संस्थान अपने अपने सत्र पूरे कर पाते, इससे पहले कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन लगा दिया गया। ऐसे में शिक्षा संबंधी कार्यों और बच्चों की पढ़ाई पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। करीब तीन महीने से कोरोना का कहर जारी है और बच्चों की पढ़ाई पर इसके असर को देखते हुए बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराई गई। हालांकि इस सुविधा के अपने नफे नुकसान हैं और जो दृष्टिगोचर भी हो रहे हैं और साथ ही इस दौर की सक्रिय पीढ़ी को कठिन परिस्थितियों से भी गुजरना पड़ रहा है।
अभी कई कक्षाओं के पिछले शिक्षा सत्र के मसले ही हल नहीं हुए थे, परीक्षाएं नहीं हुईं, रिजल्ट नहीं आया था और नया सत्र शुरू भी कर दिया गया। छोटी कक्षाओं का शिक्षा सत्र अप्रेल में ही शुरू हो जाता है। स्कूलों ने आडियो-वीडियो क्लिप और कांफ्रेंसिंग एप के जरिये पढ़ाई शुरू कर दी है। इस विषय पर दो मत हो सकते हैं कि स्कूलों ने आनलाइन पढ़ाई का फार्मूला अपना शिक्षा व्यवसाय बचाने, फीस वसूली की चिंता या शिक्षकों को वेतन भुगतान की शुभेच्छावश ईजाद किया है या फिर इसका मकसद ” शो मस्ट गो आन” है। मगर इसका सकारात्मक नजरिया यह भी है कि भविष्य की शिक्षा प्रणाली में यह दौर कुछ बेहतर जोड़कर जायेगा।
हालांकि आनलाइन शिक्षा के शुरुआती दौर में बच्चे और शिक्षक दोनों ही परेशान हो रहे हैं। अभिभावकों को भी समझ नहीं आ रहा क्या करें। बच्चों से पूछिए तो कई समस्याएं गिना देंगे। शिक्षक भी पढ़ाने के मूड में नहीं दिखते। वो भी नौकरी बचाये रखने की चिंता से इस पढ़ाई को जारी रखे हुए हैं। शिक्षकों का कहना हैं कि पढ़ाते समय अक्सर नेटवर्क की दिक्कतें आती हैं। सबसे बड़ी दिक्कत है कि शिक्षक और बच्चों के बीच आई बाल कांटेक्ट न होने से संवाद बेहतर नहीं हो पाता। सीधा संवाद नहीं हो पाता। बच्चा कुछ पूछना चाहता है तो उसकी बात शिक्षक तक भाव सहित नहीं पहुंच नहीं पाती है या फिर शिक्षक जो भी समझा रहा है वो बच्चे समझ नहीं पा रहा है। दरअसल, फेस टू फेस संवाद या प्रत्यक्ष इंटरैक्शन में हम बाडी लैंग्वेज (शारीरिक हावभाव की भाषा) से भी रूबरू होते हैं, जबकि आनलाइन में सिर्फ शब्द और व्याख्यान की क्रोनोलाजी ही समझ विकसित करती है। सवाल कई हैं। बच्चे अपनी समस्या किस तरह हल करें? शिक्षकों को शिकायत है कि बच्चे होमवर्क नहीं करते, हाजिरी लगाकर गायब हो जाते, ध्यान नहीं देते पढ़ाई में और सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षकों को मजबूरी में बच्चों की हौसलाअफजाई करनी पड़ रही कर रही है ताकि बच्चों का ध्यान पढ़ाई से न हटे और वो सही गलत कुछ तो करें। एक सवाल यह भी है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे क्या करें जिनके पास स्मार्टफोन और लैपटॉप नहीं है। गरीब बच्चों के सामने यह एक बड़ी समस्या है और उनसे यह कहा भी जा रहा है कि आप यह चीजें कहीं से भी मैनेज करें। बच्चे परेशान हैं कि टीचर अपने मनमर्जी से पढ़ाई का टाइम सेट कर देते हैं और उस वक्त उन्हें हाजिर रहना पड़ता है। इन समस्याओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
तो इस समस्या का विकल्प क्या? स्कूल फीस के लिए ऐसा कर रहे तो क्या इसलिए बच्चे को इस एक्टिविटी से दूर कर दें? कुछ लोग बच्चों को मोबाइल की लत की दुहाई भी दे रहे। तो क्या करें! कोरोना वायरस का कहर कब तक जारी रहेगा कुछ कहा नहीं जा सकता? आंकड़ों का लगातार बढ़ना इंगित करता है कि अभी स्कूल कालेज नहीं खुलने वाले और स्कूलों का बंद होना ही बच्चों की सुरक्षा का पर्याय है। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। मगर इस तरह की पढ़ाई जिसमें बच्चे मौजूद होकर के भी नहीं पढ़ पा रहे हैं इस समस्या का क्या विकल्प है? यह सवाल कई अभिभावकों और शिक्षार्थी मन को भी मथता है।
ऑनलाइन शिक्षा को समस्या के रूप में देखने के बजाय अगर इसे चुनौती के रूप में देखें तो समस्या उतनी बड़ी नहीं लगेगी क्योंकि जो अभिभावक बच्चों को मोबाइल देने से कतराते थे आज वही अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। जिन अभिभावकों को डर लगता था कि उनके बच्चे मोबाइल में गेम की आदत के शिकार हो जायेंगे और मनोरंजन में ही व्यस्त हो जायेंगे और सबसे बड़ा डर कि कहीं एडल्ट वीडियो देखकर या जानकारियां जुटाकर ‘बिगड़’ न जायें। इस डर के बावजूद आनलाइन पढ़ाई के लिए यह सुविधा अभिभावक उपलब्ध करा रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि पढ़ाई भी जरूरी है और जान ले लेने वाली अदृश्य बीमारी कोरोना से सतर्कतापूर्ण लड़ाई भी जरूरी है। लाकडाउन की अनिवार्यता को देखते हुए कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को जानबूझकर मौत के मुंह में नहीं भेजेगा। स्कूल-कालेजों को भी, फीस लेनी है तो कैम्पस में बुलाकर ही पढ़ाना होगा। भले किसी अप्रिय स्थिति में अभिभावक को रोना और स्कूल संचालक को जेल के दर्शन करना पड़े।
इसलिए एक नजरिया यह भी कि लाकडाउन के दौर में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई का महत्व एक ‘न्यू लर्निग मैथड’ सीखने के रूप में भी समझ आ रहा है। बच्चों (और बड़ी तादात में अभीभावकों में) को भी महसूस हो रहा कि मोबाइल सिर्फ गेम या अन्य मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह पढ़ाई में स्कूल का विकल्प भी बन सकता है। आज के तकनीकी दौर में ऑनलाइन सुविधाओं का महत्व बढ़ गया है और बदलते वक्त के साथ हम ऑनलाइन पढ़ाई को विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। बच्चों को जहां सिर्फ लेक्चर ही अटेंड करने हैं तो ऑनलाइन पढ़ाई एक विकल्प बन सकती है। अक्सर कड़ाके की ठंड के दौर में विंटर वेकेशन बढ़ाने पड़ते हैं या गर्मी में पारे पर कैलेंडर भारी पड़ता है। एग्जाम से पहले कोर्स कंप्लीट करने के लिए एक्स्ट्रा क्लास जैसी सी समस्याओं का स्थाई समाधान भी आनलाइन पढ़ाई से मिल सकता है। आवश्यकता है कि अभिभावक भी अपनी पैरेंटिंग में आभासी (वर्चुअल) दुनिया के व्यवहार को शामिल करें और शिक्षक समाज भी इस चुनौती को अवसर के रूप में ले। -प्रियंका माहेश्वरी