Saturday, November 30, 2024
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विश्वव्यापी कोरोना त्रासदी का सूत्रधार चीन आज क्यों बौखलाया -एक मुद्दा

नवंबर 2019 से अपनी विषाणु प्रयोगशाला से जनित मानवजीवन के लिए घातक विषाणु कोरोना को अपनी धरती के छोटे से शहर वुहान से निकाल कर पश्चिमी देशों से घुमाते हुए पूरे विश्व मे प्रसारित करने वाला आपराधिक देश चीन आज किस तरह गिरगिट जैसी रँगबदलती चाल चल रहा है। यह आश्चर्यजनक तो नहीं क्योकि उसका भयावह इतिहास उसकी यह दोगली प्रवृति का साक्षी है किन्तु यह अति निम्नकोटि का व घृणित है जो एक जिम्मेदार विश्व महाशक्ति को कतई शोभा नहीं देता।
चीन का सबसे बड़ा शत्रु अमेरिका है किंतु उसने भारत से पंगा लिया। क्यों? क्योकि एशिया महाद्वीप में उसको यदि कोई चुनौती दे सकता है तो वह भारत है और चीन भारत पर दबाव बनाना चाहता है। कोरोना महामारी संकट की चुनौती को भारत ने 24 मार्च से ही सम्पूर्ण लॉक डाउन लगाकर आत्मसंयम, अनुशासन, आत्मनिर्भरता के दम पर जिस तरह स्वीकारा है और उस पर बड़े बड़े देशों की अपेक्षा बेहतर तरीके से नियंत्रण किया है उसका लोहा अमेरिका सहित पूरे विश्व ने माना है। यह बात चीन को पची नहीं। उसने अपना कोरोनॉ संकट तो वुहान तक ही निपटाकर देश की सभी गतिविधियां सामान्य कर ली किन्तु पूरा विश्व अभी भी कोरोनॉ मकड़जाल में फंसा है। भले ही हमने भी लॉक डाउन 4 के बाद 8 जून से शिक्षासंस्थान छोड़कर सभी औद्योगिक, व्यापारिक गतिविधियों को पूर्ववत चालू कर अपनी अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाना प्रारम्भ कर दिया।
अपने देश को तो बाहरी दुश्मनों के साथ साथ अपने घर के दुश्मनों, आस्तीन के सांपो से भी निपटना पड़ता है। अपने देश की सरकार के विपक्षी दल भी सहयोग के स्थान पर समस्या को भड़काने से बाज नहीं आते। जब भी कोई बाहरी आपदा आती है, अन्दर बोतल में बंद जिन्न भी मुंह खोल खोल बाहर आ जाते हैं। कोरोना संकट पहले व दूसरे लॉक डाउन से ही काफी कंट्रोल हो गया था कि दिल्ली निजामुद्दीन मरकज़ से असंख्य जमाती मुस्लिम निकल निकल कर पूरे देश में फैलकर बीमारी को व्यापक रूप दे फैला कर बेकाबू कर दिया। उस समय चीन में कोरोनॉ संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला हुआ था और उस समय निजामुद्दीन दिल्ली मरकज़ का मौलाना शाद भारत को संकट में डालने को उद्धत था। चीन के सात नागरिकों को अपने साथ मरकज़ में गुपचुप तरीके से सम्मिलत कर उन्हें शरण देकर भारत में कोरोना संकट बढ़ाने की दुर्भावना से देश को घोर आपातकाल में झौक दिया।सब सरकार के किये कराए पर पानी फेर दिया, खूब फैलाया कोरोना, कोई नियम पालन नहीं,दूरी बनाए रखने के नियम की धज्जियां उड़ाई, अस्पतालों में उद्दण्डता की,आम जनता के साथ गुंडागर्दी की मीडिया कर्मियों को परेशान किया, चिकित्सकों व नर्सों के साथ अभद्रता की कोरोना से बेखौफ होकर खूब विध्वंसकारी तांडव किया। मानों अपने देश पर आत्मघाती हमला करने को आमादा हो। इसे काबू करने में प्रशासन को बहुत झेलना पड़ा, जनहानि बजी बहुत हुई, किन्तु अंततः सब ठंडे पड़ गए।
फिर आया प्रवासी मजदूरों का पलायन का दौर। पहले तो कोटा में फंसे विद्यार्थियों को सरकार ने इतनी विषम परिस्थितियों में सुरक्षित अपने अपने गृहनगर भेजने की सुव्यवस्था की। यह शायद राज्यसरकारों को नहीं पचा। उन्होंने अपने अपने राज्य के श्रमिकों को इस संकट की घड़ी में कोई भी आश्वासन देने यह आवश्यकता नहीं अनुभव की। शायद यह विपक्षी दल शासित राज्य केंद्र सरकार को और संकट में डालने की मंशा पाले थे। मजदूरों को अपने हाल पर छोड़ कर पलायन करने को विवश किया। अधिकतर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड व बिहार के मजदूर थे। वे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात व दक्षिण प्रदेश से यूँ ही चल पड़े बिना किसी व्यवस्था के। तब केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के लिए नया संकट खड़ा कर दिया गया।कोरोनॉ महामारी में कोढ़ में खाज का काम करती ये अवांछित व अनपेक्षित घटनाओं को भी हमारी सरकार ने बड़े संयम व कुशलता के साथ निपटाया व देशद्रोहियों सहित विपक्ष के मुंह पर भी जोरदार तमाचा जड़ दिया।
आज अपनी सरकार की नीतियों व जनता के भरपूर सहयोग के दम पर हमने उस रक्तबीज कोरोनॉ संकट पर काफी हद तक काबू पा लिया है।हमारे यहां संक्रमित की संख्या भले ही अधिक हो किन्तु मृत्युदर कम है और स्वस्थ होकर जाने वालों का प्रतिशत कहीं अधिक है।संक्रमण,संक्रमित का प्रतिशत भी और देशों के मुकाबले कम है। अभी संकट टला नहीं है किंतु नियंत्रण में है।हमने यह नियंत्रण,अपनी सनातनी संस्कृति, स्वदेशी नीतियों, स्वास्थ्य संबंधी देसी भारतीय नुस्खों, मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता व आत्मनियंत्रण के दम पर कर पाएं हैं।
हमारी इस अपने दम पर पायी गयी सफलता का लोहा हमारे मित्र देश तो मान रहे हैं किंतु शत्रु देश बौखला गए है। विश्व की महाशक्ति अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड, रूस, इज़राइल, दक्षिणी कोरिया, जापान सहित विकसित, विकासशील राष्ट्रों ने भारत के आत्मविश्वास व सफल नीतियों की खुलकर प्रशंसा की है और कोरोनॉ को नियंत्रित करने में संयुक्त रूप से सहायता के हाथ बढ़ाये हैं। यह बात एशिया में अपनी धाक बनाये रखने की चाहत,स्वयं को विश्व की महाशक्ति दर्शाने का अहम, अपनी कोरोनॉ संकट के माध्यम से पूरे विश्व को संकटग्रस्त कर विनाश के कगार पर पंहुचा देने के आरोप से मुंह छिपाने व मुक्ति पानेे हेतु पूरे विश्व का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से उसने अपनी आंखें तरेरी।पहले तो अमेरिका के आरोपों से जूझता रहा फिर पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रखकर भारत पर तान दी।यह उसे सरल लगा।नेपाल जो एक शांतिप्रिय व भारत का मित्र देश है उसे भी मोहरा बनाकर भारत के विरुद्ध भड़का कर अपने साथ मिला लिया। अपने व्यापारिक हित साधने के लिए बांग्लादेश,जो पाकिस्तान की तरह ही भारत के हिस्से से बना भारत का सीमावर्ती देश है और जो कि least developed श्रेणी में आता है, वहाँ आयात-निर्यात में कोई ड्यूटी नहीं लगती,उसे भी साध रहा है।ये देश यह नहीं समझ पा रहे कि चीन जैसा ड्रेगन विस्तारवादी, भू माफिया, वामपंथी दमनकारी नीतियों पर चलने वाला लोकतंत्र का दुश्मन कैसे किसी का हितैषी हो सकता है। इसमें उसका अपना निहित स्वार्थ है।
भारत तो उससे निपट लेगा किन्तु उसके पिछलग्गू देश अपनी दुर्गति अवश्य करवा लेंगे। वे तिब्बत की तरह उसके चंगुल से नही उबर पाएंगे।उधर हॉन्गकॉन्ग,मलेशिया,ताईवान व थाईलैंड को भी चीन आंखे दिख रहा है। दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में अपना आतंकी खौफ बनाये हुए है।जो देश उसके अनाधिकार चेष्टा का विरोध करते हैं उनको वह बिना परिणाम समझे बौखलाहट में निशाने पर लेने को कोशिश करता है।उसे भारत द्वारा अपने ही राज्य कश्मीर से धारा 370, 35A हटाना रास नहीं आया, उसे तिब्बत व नेपाल से भारत के मधुर संबंध रास नहीं आये क्योंकि उसका इन देशों में निहित स्वार्थ था। इसी कोशिश में उसने भारत से पंगा ले लिया है। नहीं सोचा परिणाम क्या होगा।
आज भारत 1962 का तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली सरकार के हाथ में नहीं है। आज हमारा भारत राष्ट्रवादी सरकार के मजबूत हाथों में हैं।हमारे देश का एक एक नागरिक राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत है। इस बार ड्रेगन का पाला भारत के शेर से है। उसने अपनी सीमा मैकमोहन रेखा से बढ़ाकर पूर्वी तिब्बत की गलवान घाटी तक निर्धारित कर ली। भूल गया पंचशील। हमारे देश के वामपंथी हमें पंचशील पढ़ा रहे हैं।हमारी आधुनिक कांग्रेस भी वामपंथ की राह पर चल पड़ती दिख रही है। हमारी सेना जो सीमा पर मुस्तैदी से चीनियों के दांत खट्टे कर रही है हमारे देश के ही विपक्षी दल व कुछ देशद्रोही सरकार की नीतियों में खोट निकालने में लगे हैं, तिब्बत से सटी सीमा रेखा पर सेना के गश्ती क्षेत्र में चीन द्वारा सीमा उल्लंघन कर अपने सैनिकों को निशाना बनाने के लिए भी अपनी सरकार को दोषी ठहरा रहे है।हमारे बीस सैनिक शहीद हुए किन्तु चीन के मारे गए व घायल सैनिको की संख्या इससे कहीं अधिक है।
तो सेना का मनोबल बढ़ाने के बजाय इस पर भी राजनीति हो रही है।यह सब नितान्त शर्मनाक व निंदनीय है।विषम परिस्थितियों में जनता व विपक्षी दल को देश व प्रशासन के साथ रहना चाहिए।
कुछ भी हो भारत ने ड्रेगन को दिखा दिया यदि हमसे अब टकराओगे तो मुंह की खाओगे। चीन को उस बात का एहसास हो गया है इसीलिए उसने पीछे कदम खींच लिए हैं। भारत के तेवर देखकर उसके ठिठक गए। उसकी बौखलाहट धरती पर आ गयी।किंतु हमें नहीं भूलना चाहिए कि चीन व पाकिस्तान विश्वसनीय देश नहीं हैं। इनसे सदैव सावधान रहने की आवश्यकता है। अच्छा हो यदि इनसे एक बार आरपार की हो जाये तो इन्हें भी अपनी औकात का अंदाज़ा हो जाये। किन्तु विश्वशांति की कुछ नीतियां है, कुछ संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतरराष्ट्रीय नियम हैं जिनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
किन्तु हमें अपने शत्रु देश चीन व पाकिस्तान को अपने दबाव में रखने की महती आवश्यकता है, अन्यथा यह वो कुत्ते हैं जिनकी दुम दबा दें तो सीधी नहीं तो फिर टेढ़ी। हम अपने विकास व प्रगति के दम पर विश्व मे अपना स्थान बना रहे है हमें किसी से दबकर नहीं रहना हैं। बल्कि कूटनीति के माध्यम से जिन छोटे छोटे देशों को चीन हड़की में लिए रहता है उन सबको अपने साथ मिलाकर ड्रेगन को उसकी औकात बताने का समय आ गया है। चीन के अपनी दमनकारी तानाशाही रवैये के कारण अपने आसपास पड़ोसी शत्रु देश अधिक हैं, उसके मित्र देशों यथा उ० कोरिया, पाकिस्तान, ईरान की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। इसीलिए वह भड़कता है, बौखलता है, अपनी परमाणु शक्ति पर इतराता है,पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने को अपना वर्चस्व पूरे विश्व पर कायम रखने के मुगालते में रहता है।उसे एक बार सबक मिलना अनिवार्य है।
हमें अपने भारतवर्ष पर गर्व है, अपनी भारतीयता पर गर्व है।
वंदेमातरम
लेखिका डॉ० कुसुम सिंह अविचल
वरिष्ठ साहित्यकार, कानपुर (उ०प्र०)