Friday, May 24, 2024
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पाश्चात्य वाद व हिंसात्मकता को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होती वेब सीरीज प्रस्तुतियां

किशोरावस्था मिट्टी का वह कच्चा घड़ा है कि एक झटका भी उसके फूटने के लिए काफी है। जिस तरह आज इस आधुनिकता के दौर का युवा वर्ग वेब सीरीज का दीवाना बनता जा रहा है, उसे देखकर यह कहना बिल्कुल भी गलत न होगा कि जब भविष्य के कर्णधारों का ही भविष्य अंधकारमय होगा तो राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करना महज एक दिलासा देना होगा। यह जग-जाहिर है कि अगर ऊर्जा को सही जगह का भान न कराया जाए तो अनियंत्रित ऊर्जा विध्वंसकारी हो जाती है। इस सत्यता को झुठलाया नहीं जा सकता है कि परमाणु ऊर्जा विध्वंसक की श्रेणी में प्रथम है, मगर जिस प्रकार परमाणु ऊर्जा से विद्युत आपूर्ति की कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, वह एक नियंत्रित पहल है। आज-कल यह वेब सीरीज भी उसी अनियंत्रित ऊर्जा को बढ़ावा देने में मुख्य भूमिका अदा कर रहा है, जो भविष्य की आने वाली पीढ़ियों को भी पाश्चात्य व हिंसा के दलदल में ढकेलने का काम कर रही हैं।
किशोरावस्था अर्थात् जब शारीरिक बदलाव का दौर जारी हो, ऐसे में वेब सीरीज की लत, धुम्रपान की लत से भी ज्यादा खतरनाक होती है। वेब सीरीज में दिखाए गए कार्यों को यह युवा वर्ग अपनी असल जिंदगी में भी शामिल करने लगता है। एक शोध के अनुसार, वेब सीरीज में दिलचस्पी दिखाने वाले युवा वर्ग के आचार-विचार में काफी परिवर्तन देखा गया है, यथा चिड़चिड़ापन, क्रोध व अवसाद जो युवा वर्ग में हिंसात्मक रवैये का मूल साक्ष्य है। आज के इस आधुनिक दौर में आनलाइन शिक्षा बेहद आवश्यक हो गई है, मगर किशोरावस्था का बालक कौन सा कंटेंट देख रहा है ? इस पर परिवार की निगाह जरूर रहनी चाहिए। क्योंकि इस वर्ग का बालक तीव्र शारीरिक बदलावों के प्रभाव में आकर वेब सीरीज जैसे गलत कंटेंट का लत पाल बैठता है और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है। इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि वेब सीरीज में सेंसरशिप का अभाव है, जिस कारण यह दर्शक के समक्ष पाश्चात्य संस्कृति यथा बोल्ड दृश्य, गालियाँ व हिंसा को दिल खोलकर परोसते हैं। जिसे समाज के मौजूदा परिदृश्य का नाम देकर दर्शक को अपनी तरफ आकर्षित किया जाता है, जिसमें युवा वर्ग खुद ब खुद खिचता चला जाता है।
हालांकि हर क्षेत्र की तरह इसमें भी समाज की दो पक्षीय राय रही है, एक पक्ष के अंतर्गत वेब सीरीज समाज की घटनाओं को उजागर कर समाज में हो रहे कृत्यों समाज को रूबरू कराने के साथ-साथ मनोरंजन का एक जरिया है, तो दूसरे पक्ष की राय इसमें दिखाई जा रही अश्लीलता व हिंसात्मक घटना समाज पर बुरा प्रभाव डाल रही है और यह सामाजिक चिंतन के अनुसार, सत्य भी है कि वेब सीरीज की प्रस्तुतियां कहीं न कहीं समाज में पाश्चात्यवाद व हिंसात्मकता को बढ़ावा देने में सहयोगी भूमिका भी अदा कर ही रही हैं। मनोरंजन के साधन का यह पाश्चात्यकालीन स्वरूप युवाओं में अपनी गहरी पैठ बनाती नजर आ रही है, जिससे प्रभावित वेब सीरीज का दीवाना हो रहा युवा वर्ग रंग-बिरंगी जीवनशैली को जीने का शौकीन होता जा रहा है, जो सामाजिक परिदृश्य के अनुसार, एक चिंतनशील मुद्दा है।
वेब सीरीज के कई ऐसी प्रस्तुतियां भी सामने आई हैं, जो राष्ट्रभावना पर भी खुलकर प्रहार कर रही हैं। धर्म पर भी कई ऐसी सीरीज आई हैं जो टकराव की स्थिति को बढ़ावा देती हुई दिखीं। इन सभी बातों के मद्देनजर नजर सवाल यह उठता है कि क्या हमारा समाज पश्चिमी देशों की तरह इस बात के लिए स्वीकृति देता है कि पाश्चात्यवाद व हिंसात्मकता का खुलकर नंगा नाच समाज के सम्मुख परोसा जाए ? अगर हां ! तो फिर यह समाज के परिदृश्य के अनुसार, एक गंभीर मुद्दा होगा। अगर नहीं ! तो ऐसे वेब सीरीज आखिर हमारे समाज में क्यों हैं ? जो हमारी ही नजरों के सामने हमारी ही संस्कृति को उखाड़ फेंकने का नंगा नाच खेल रहे हैं और हम मूक दर्शक बन इस मुजरे पर वाह-वाह करने में लीन हैं।
रचनाकार – मिथलेश सिंह ‘मिलिंद’