कल तक भारत की छत्रछाया में सुरक्षित रहने वाला नेपाल, आज चीन की राग अलापने में मशगूल है। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली आजकल चीनी की चाशनी पर इस तरह आकर्षित हैं कि उन्हें सही-गलत का ज्ञान ही नहीं रहा। उनकी बेतुकी बयान बाजियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओली ने कहा कि आज तक हम इस भ्रम में जी रहे थे कि भगवान् श्रीराम भारतीय हैं, जबकि हकीकत में वह नेपाली थे। अब प्रश्न यह उठता है कि आज तक के अज्ञानी ओली जो भ्रम में जी रहे थे, अचानक से कौन सी पाठशाला में उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया कि वह भारतीय संस्कृति का ज्ञान बांटने लग गए ? जिन्हें अपनी ही संस्कृति का ज्ञान नहीं, वह भारतीय संस्कृति का ज्ञान कैसे बांट सकते हैं ? उनकी पिछली हरकतें जगजाहिर है कि उन्होंने भारतीय सीमा के कुछ इलाकों पर किस तरह अवैधानिक तरीके से चीन के सह पर अपना हक जताने की कोशिश की है। अब उनकी इस बेतुकी बयान बाजियों में भी चीन की पाठशाला के अवैधानिक ज्ञान की बू आ रही है।
ओली अपनी सत्ता बचाने के लिए अनेक पैतरे आजमाने में लगे हैं। उनकी यह बेतुकी बयान बाजी इतनी शर्मनाक है कि भारत ने बनाई नकली अयोध्या, उन्होंने अपने इस बेतुके बयान में पूरे भारत देश पर झूठ का लांछन लगाते हुए कहा कि आज तक हमें भारत ने भ्रमित रखा। आखिर सत्ता के मोह में मदमस्त हो चुके अज्ञानी ओली को कौन समझाए कि चीनी चाशनी की यह ज्ञान रूपी मिठास ज्यादा दिन तक नहीं टिकेगी ? भारत की मित्रता को ठुकरा कर चीन का दामन थामने वाले नेपाली प्रधानमंत्री ओली शायद यह भूल चुके हैं कि कोई भी संस्कृति शादियों की विरासत होती है, जिस पर बिना साक्ष्य सवाल उठाना अवैधानिक है। सत्ता की लालच में नेपाल की जनता के हितों को भी दांव पर लगाने वाले ओली को आखिर कौन समझाए ? जिसकी बेतुकी व अवैधानिक बयान बाजियां उसकी अपनी जनता ही सुनने को तैयार नहीं, उसे भारतीय जनता क्या सुनेगी? जो अपनी संस्कृति को आज से नहीं बल्कि आदिकाल से जानती है।
हालांकि यह सच है कि भारत व नेपाल के मैत्रीपूर्ण रिश्ते काफी गहरे और बहुत पुराने हैं, मगर बीते कुछ दिनों से भारत व नेपाल के बीच सीमा को लेकर तनातनी का कारण नेपाल का अपनी संसद में एक ऐसा निराधार नक्शा पास किया जाना जिसमें नेपाल ने अपनी सीमा से लगे भारत के तीन इलाके लिपुलेख, लिंपियाधुरा व कालापानी पर अपना दावा पेश किया था और बाद में नेपाल प्रधानमंत्री ओली द्वारा नेपाल में भारतीय प्रसारण चैनलों को रोका जाना तथा अब यह भारत पर सांस्कृतिक अतिक्रमण का आरोप लगाया जाना यह निश्चित करता है कि यह नेपाल की अपनी भाषा नहीं बल्कि इस पर चीनी चाशनी के मिठास की महक का जोरदार असर है। अन्यथा अपने मुँह से यह कहने वाले नेपाल प्रधानमंत्री ओली कि अब तक हम लोग भ्रम में थे, आखिर यह भ्रम अचानक से खतम हो जाना इस बात की तरफ इशारा है कि आज तक के अज्ञानी ओली ने चीन की पाठशाला में दाखिला ले लिया है और वहाँ के सीखने-सीखाने प्रतियोगिता में वह अव्वल भी रहे।
रचनाकार – मिथलेश सिंह ‘मिलिंद’