भारत इस समय पानी के मामले में दोहरी मुसीबत का सामना कर रहा है। एक तरफ भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, दूसरी तरफ आर ओ का इस्तेमाल करके पानी को साफ करने में पर्यावरण का बहुत नुकसान हो रहा है और पानी की बहुत बर्बादी हो रही है।
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक यदि पानी की बर्बादी नहीं रुकी तो भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत नुकसान होगा और भारत की विकास दर शून्य से नीचे चली जाएगी। भारत में हर साल लगभग दो लाख लोग साफ पानी ना मिलने से अलग-अलग बीमारियों के कारण मर जाते हैं। आगे भविष्य में पानी की समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है। इसलिए हमें अपनी विशाल जनसंख्या की प्यास बुझाने और पानी की बर्बादी को रोकने का कारगर उपाय करना ही होगा।
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के अनुसार भारत में 1 लीटर पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम या उससे कम है तो यह पानी पीने लायक होता है। किंतु डब्लूएचओ के मुताबिक 1 लीटर पानी में टीडीएस का स्तर यदि 300 मिलीग्राम से कम हो तो वह सबसे उत्तम पेयजल होता है। 300 से 600 मिलीग्राम टीडीएस वाला पानी अच्छा माना जाता है और 600 से 900 मिलीग्राम टीडीएस वाला पानी ठीक-ठाक माना जाता है, लेकिन इससे ज्यादा टीडीएस वाला पानी पीने के योग्य नहीं होता।
एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को आखिरी अल्टीमेटम दिया है कि सरकार इस साल के अंत तक ऐसे आरओ पर प्रतिबंध लगा दे जिनमें पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान 80 परसेंट पानी बर्बाद हो जाता है और ऐसी जगहों पर भी आरओ पर प्रतिबंध लगाने को कहा है, जहां 1 लीटर पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है। एनजीटी ने केवल ऐसे आरओ की बिक्री को सही बताया है, जिनमें पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान केवल 40 परसेंट पानी बर्बाद होता है। क्योंकि आरओ द्वारा बर्बाद किया गया पानी पर्यावरण और ग्राउंड वाटर दोनों को नुकसान पहुंचाता है।
भारत में पीने के पानी की गुणवत्ता हर जगह अलग-अलग है इसलिए यह पता नहीं चल पाता कि आरओ लगाने की कहां जरूरत है कहां नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि आरओ लगाने की जरूरत वहीं है जहां पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज्यादा हो।
टीडीएस पानी में घुले वो कण हैं जिन्हें आरओ द्वारा पानी से हटाया जाता है। लेकिन पानी में स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले कणों के साथ-साथ कुछ मिनरल्स यानी खनिज पदार्थ भी होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी हैं और जब आरओ द्वारा पानी में मिली अशुद्धियां दूर की जाती हैं तो ये स्वास्थ्यवर्धक जरूरी मिनरल्स भी पानी से हटा दिए जाते हैं। इन मिनरल्स में आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम जैसे मिनरल्स शामिल होते हैं।
आर ओ का मतलब है ‘रिवर्स ऑस्मोसिस’, यह पानी को साफ करने की एक प्रक्रिया है, इसमें पानी को एक प्रकार के फिल्टर (मेम्बरेन) से गुजारा जाता है। इस प्रक्रिया में पानी में घुले इन कणों पर दबाव डाला जाता है और दबाव बढ़ने पर पानी में घुले ये कण पानी से अलग होकर पीछे रह जाते हैं और इस प्रकार आरओ से शुद्ध पानी पीने को मिलता है। किंतु इस प्रक्रिया में पानी की बहुत बर्बादी होती है। एक लीटर शुद्ध पानी उपलब्ध कराने में आर ओ 3 लीटर पानी बर्बाद करता है, इस प्रकार 75 परसेंट पानी बर्बाद हो जाता है और मात्र 25 परसेंट पानी पीने के लिए मिलता है।
वर्तमान में भारत में आरओ सिस्टम का बाजार लगभग 4200 करोड़ रुपए का है। सरकार आरओ के गैर जरूरी इस्तेमाल पर प्रतिबंध तो लगाना चाहती है किंतु समस्या यह है कि भारत के अधिकतर शहरों में पीने के पानी की गुणवत्ता बहुत खराब है। पानी की गुणवत्ता के मामले में भारत दुनिया के 122 देशों में 120 वें नंबर पर है। आर ओ का इस्तेमाल भारत के लोगों की मजबूरी बन गया है किंतु इसमें पानी की इतनी बर्बादी भी बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
इसलिए आगे आने वाले समय में ऐसे आर ओ का निर्माण करना होगा जिनमें कम से कम पानी की बर्बादी हो।