Thursday, July 4, 2024
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कोरोना से जंग जीतनी ही होगी

ये बात कभी जेहन में नहीं आई थी कि इंसान… इंसान से डरने लगेगा। उसके मन में यह डर बैठ जाएगा कि अगर किसी दूसरे इंसान ने उसे छू लिया तो वह बीमारी का शिकार होकर वह मर जाएगा। यह बातें अकल्पनीय है लेकिन सच है। मास्क पहनने के बाद भी व्यक्ति खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा है। हर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से दूरी बनाए हुए है। आज पूरा देश कोविड 19 से जूझ रहा है। इस महामारी में और इस उपजी परिस्थितियों ने जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया हुआ है। जीवन मे घटित कुछ ऐसे पहलू जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जब लॉक डाउन हुआ तो मजदूर वर्ग बिना सोचे समझे काम छोड़कर नंगे पैर, भूखे प्यासे अपने घर की ओर पलायन करने लगे। बहुत से मृत्यु का ग्रास बन गये, बहुतों ने बहुत तकलीफ उठाई और अब भी बहुत से श्रमिक वर्ग बदहाली का जीवनयापन कर रहे हैं। छोटे उद्यमियों की स्थिति ज्यादह खराब है। खोमचे वाले गोलगप्पे वाले जो रोज ₹200 तक कमा लेते थे आज उनकी आमदनी का जरिया बंद है। यदि वह काम नहीं करेंगे तो परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे? यह बात रोता हुआ एक सब्जी वाला कहता है।
मिडिल क्लास की दिक्कतों की बात करें तो वह हमेशा से पिसता आया है। वो हर तरफ से मार खाता है। इस मुश्किल के दौर में उसे किसी भी तरफ से कोई राहत नहीं है। उसने अगर लोन ले रखा है तो उसे ईएमआई भरनी है, बच्चों की फीस भरनी है, घर का खर्च उठाना है, स्वास्थ्य सुविधा पर भी खर्च करना है और तनख्वाह भी 30% कट कर उसे मिल रही है। बड़ी से बड़ी कंपनियां बंद होने की कगार पर है और बहुत से लोग नौकरी से छंटनी हो जाने के कारण बेरोजगार हो गए हैं। उनका हाल पूछनेवाला कोई नहीं? आज काम नहीं, व्यापार नहीं…. सब कुछ बंद…. अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। हर आदमी मामूली से गठजोड़ में उलझा हुआ है कि कितना बचाए और कितना खर्च करें?
कोविड 19 की वजह से ही बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई परेशानी का सबब बन कर खड़ी हुई है। स्कूल बंद है, टीचरों का ठिकाना नहीं है, फीस की डिमांड से अभिभावकों में असंतोष बढ़ रहा है। अभी कुछ जगहों पर स्कूल में अभिभावकों द्वारा फीस न जमा करने पर स्कूल बंद कर दिए गए थे। अभिभावकों का मानना है कि जब बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है तो फीस किस बात की? और अगर फीस लेते हैं तो कुछ समझौता क्यों नहीं करते? स्कूल वालों की तय की हुई राशि पर किताबें क्यों खरीदें? जबकि बाजार में सस्ते दामों पर मिल रही है। जब बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है तो स्कूल ड्रेस क्यों खरीदी जाये? इसी तरह शिक्षकों की त्रासदी अलग है। टीचर जो स्कूल जाकर पढ़ाई का वीडियो तैयार करते हैं उन्हें सैलरी तो चाहिए ही। शिक्षक और छात्रों के बीच सामंजस्य नहीं स्थापित हो पा रहा है। नेट की दिक्कत, छात्रों का ध्यान न देना, सही कम्यूनिकेशन ना होना पढ़ाई को प्रभावित कर रहा है। जिन गरीब लोगों ने बड़ी मुश्किल से पैसे जुटाकर मोबाइल या लैपटॉप लेकर बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई थी आखिर वो लोग कहां जाए? किस से फरियाद करें?
अस्पतालों की व्यवस्था पर की बात की जाए बहुत निराशाजनक स्थिति दिखाई देती है। मरीज के लिए बेड, पर्याप्त मात्रा में दवाई अनुपलब्धता और सही इलाज का न हो पाना तकलीफदेह है। अवसरवादी भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। निजी अस्पताल वाले मनचाही फीस और दुर्व्यवहार कर रहे हैं। एक जानकारी के अनुसार इलाज के लिए आए मरीज के शरीर के अंग गायब मिले।
जब तक देश में लाकडाउन था कोरोना के आंकड़े इतने गंभीर नहीं थे जैसा कि लॉकडाउन खुलने के बाद जो आंकड़े सामने आ रहे हैं। जिन राज्यों में बहुत कम आंकड़े थे वहां अब इन आंकड़ों में तेजी आ गई है। संख्या हजारों से हटकर लाखों में पहुंचने लगी है। अभी भी समय है अगर केंद्र सरकार या राज्य सरकार अपने-अपने राज्यों की बॉर्डर सील करते देते हैं आवाजाही रोक दी जाती है तो स्थितियां सुधर सकती हैं। बढ़ते हुए आंकड़ों में कमी आ सकती है। इस तरह की अव्यवस्था में जहां ज्यादा उपाय कारगर नहीं हो रहे हैं, जरूरी है कि राज्य सरकारें लॉकडाउन को फिर से बढ़ाएं। केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए ऐसी स्थितियों पर कार्यवाही करें। इन सब बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि लॉकडाउन के नियमों के पालन में जन सहयोग भी नहीं मिल रहा है कोई मास्क नहीं पहन रहा है, तो कोई तो डिस्टेंस मेंटेन नहीं कर रहा है और तो और संक्रमित व्यक्ति जांचकर्ताओं की पिटाई कर रहा है। जहां सहयोगात्मक रवैया अपनाया जाना चाहिए इस तरह की घटनाएं और इस प्रकार के रवैये से हम कैसे उम्मीद करें कि हम ऐसी महामारी से उबर पायेंगे और इससे जंग जीत सकेंगे?
प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात