राजनीति करना सामान्य लोगों के वश की बात नहीं है। इसमें मोटी चमड़ी वाले लोग ही टिक सकते हैं। सीधे-सीधे कहें तो जिन्हें मान-अपमान की न पड़ी हो, ऐसे ही लोग राजनीति में पैर जमा सकते हैं। राजनीति में अपनी इच्छा और संवेदनाओं का गला घांट कर चलना पड़ता है। क्योंकि राजनीति में सामने वाले की अपेक्षा साथ वाला पहले चोट पहुंचाता है। इसलिए अगर आप सचेत नहीं रहते तो आपके साथ वाला ही आपको पीछे धकेल देगा। जिसकी कसक आपको पूरी जिंदगी रहेगी।
कोग्रेस की भी हालत इस समय कूछ ऐसी ही है। कांग्रेस में इस समय जो घमासान चल रहा है, उसके पीछे कांग्रेस के ही वफादार माने जाने वाले 23 लोगों ने कांग्रेस का नेतृत्व बदलने के लिए एक पत्र जो लिख दिया। वह पत्र अब कांग्रेस में लेटरबम के रूप में साबित हुआ है। जिसकी वजह से कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलानी पड़ी। पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। क्योेंकि हुआ वही, जो पहले से तय था या जो पहले से था। यानी कि कोंग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं और आगे भी वही रहेंगी। कांग्रेस की जो रीति-नीति वर्षों से चली आ रही है, उसे जानने वालों को पहले से ही पता था कि जैसा पहले से था, वैसा ही आगे भी रहेगा। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है, पर दिक्कत गांधी परिवार की नेतागिरी पर पड़ने वाली यह बात निश्चित है।
कांग्रेस में अध्यक्ष बदलने का घमासान लेटरबम से हुआ, जिसे 23 नेताओं ने हस्ताखर के साथ लिखा था। इन नेताओं में गुलामनबी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जतिन पसाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, एम वीरप्पामोइली, पृथ्वीराज चैहाण, पी जे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चैधरी, मिलिंद देवड़ा, राज बब्बर, अरविंद सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित आदि के शामिल होने की बाात कही जा रही है। सोनिया गांधी को लिखे इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि कांग्रेस जैसी पार्टी को पूर्णकालीन और प्रभावी नेतृत्व की जरूरत है। पिछले काफी समय से कांग्रेस पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष से चल रही है, जिससे पार्टी का मनोबल टूट रहा है, साथ ही साथ इस पत्र में यह भी कहा गया है कि पार्टी इस समय देश में वजूद खोती जा रही है। इसलिए पार्टी के नेताओं को आत्मवलोकन करने की जरूरत है। इस समय पार्टी की कमान सीमित लोगों के हाथों में है। इसका विकेन्द्रीकरण करने की जरूरत है। इसके अलावा राज्य में पार्टी को मजबूत करने के साथ हर जगह संगठन को मजबूत करने के लिए चुनाव की मांग की गई है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का यह पत्र मीडिया में लीक हुआ तो पार्टी में भारी घमासान मच गया। सोनिया गांधी जो पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष हैं, उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर दी। दूसरी तरफ राहुल गांधी ने इस पत्र के टाइमिंग पर सवाल उठाया कि जब पार्टी अध्यक्ष बीमार थीं और राजस्थान में सरकसर खतरे मेे थी, इस स्थिति में इस पत्र को लिखने का क्या मतलब था? इसी के साथ राहुल गांधी के नाम से यह बात भी मीडिया में उड़ी कि कोंग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की बात करने वाले नेता भाजपा के संपर्क में हैं और मोदी को बता कर यह पत्र लिखा गया है। जबकि कपिल सिब्बल अपनी कांग्रेस की सेवाओं की याद दिलाते हुए ट्विट किया कि वह इस बात से बहुत दुखी हैं। इसी के साथ कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने ट्विट कर के बताया कि राहुल गांधी ने इस तरह की कोई बात नहीं की है। उसके बाद ट्विटर पर शुरू हुआ कांग्रेस का घमासान थोड़ा ठंडा पड़ा।
अब सवाल यह है कि कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार से ले कर क्या किसी दूसरे को सौंपा जा सकता है? जिसका एक ही जवाब है नहीं। इस बार भी कांग्रेस वर्किेग कमेटी की मीटिंग के बाद कांग्रेस प्रवक्ता ने घोषणा की कि सोनिया गांधी ही कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी। इसी के साथ यह भी घोषण की गई कि इस पत्र के कारण कांग्रेस में जल्दी ही संगठन के चुनाव कराए जाएंगे। कांग्रेेस वर्किंग कमेटी की आठ घंटे तक चली इस मीटिेग के अंत में पहले से तैयार स्क्रिप्ट के अनुसार ही सब कुछ हुआ।। कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सोनिया गांधी के वफादारों की एक पूरी फौज है। यह पत्र लीक होने के बाद इन लोगों ने कहा कि कांग्रेस का नेतृत्व बदलने की बात करने वाले नेताओं को गलत बताया और गांधी परिवार के बलिदानों की बात करते हुए कहा कि गांधी परिवार के अलावा अगर किसी और को नेतृत्व सौंपा जाता है तो पार्टी विखर सकती है। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों, कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत भी सोनिया गांधी के बचाव में आ गए। इन लोगों ने यहां तक कह दिया कि सोनिया गांधी के बाद पार्टी की बागडोर राहुल गांधी को सौंपी जानी चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने तो करमचंद जासूस की अदा से कहा कि कांग्रेस के जिन नेताओं ने नेतृत्व परिवर्तन की बात की है, उनके पीछे भाजपा का हाथ है। ये नेता भाजपा और आरएसएस के हााथों में खेलते हुए कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
जबकि हकीकत यह है कि कांग्रेस में पिछले दो दिनों से चल रहा यह दंगल डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में दिखाई जाने वाली दिखावटी कुस्ती दंगल जैसा है। कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग गांधी परिवार के नेतृत्व के अलावा आगे कुछ सोच ही नहीं सकता। कांग्रेस की राजनीति के बारे में जानकारों को पता है। पीवी नरसिम्हाराव जब प्रधानमंत्री थे तब कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी को हटाने के लिए जो घमासान हुआ था, सभी को याद है। अर्जुन सिंह, नारायणत्त तिवारी और माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दिया था। हकीकत में इन्होंने राव और केसरी के विरोध में कांग्रेस छोड़ी थी। इनका एजेंडा सोनिया गांधी को वापस लाना था, जिस में वे सफल भी हो गए थे। और सोनिया गांधी के अध्यक्ष होते ही फिर कांग्रेस में प्रमुख पदों पर विराजमान हो गए थे। इस समय काग्रेस में जो घमासान चल रहा है, इससे एक बात फिर निकल कर आएगी कि कांग्रेस में अथ्यक्ष का पद संभालने के लिए कोई दूसरा तैयार ही नहीं है, इसलिए फिर से सोनिया गांधी कांग्रेस का नेतृत्व संभाल रहीं हैं। कांग्रेस के संगठन का जो चुनाव होगा, उसमें भी व्यवस्था के हिसाब से सोनिया गांधी या राहुल गांधी ही अध्यक्ष पद पर चुने जाएंगे। और अंत में गांधी परिवार के नेतृत्व का विरोध करने वाले कांग्रेस में एक कोने में डाल दिए जाएंगे।