हमीरपुर, अंशुल साहू। लॉकडाउन को ध्यान में रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वर्णिता संस्था के तत्वावधान में विमर्श विविधा अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत एक गुमनाम अथक क्रांतिकारी महावीर सिंह की जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉ0 भवानीदीन ने कहा कि महावीर सही अर्थों में महावीर थे। देश के लिए मर मिटने वालों में महावीर सिंह पीछे नहीं थे। महावीर सिंह एक ऐसे शहीद थे जो मातृभूमि के लिए अपने को न्यौछावर कर देने के बाद विस्मृत कर दिए गए। महावीर का जन्म 16 सितंबर 1904 एटा जिले के शाहपुर टहला गांव में देवी सिंह के घर हुआ था। मां का नाम शारदा देवी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई। ऐटा के राजकीय हाई स्कूल से हाईस्कूल किया। उसके बाद कानपुर के डीएवी कॉलेज आ गए, जहां पर महावीर की मुलाकात चन्द्रशेखर आजाद से हुई। आजाद के माध्यम से महावीर की भेंट भगत सिंह से हो गई। महावीर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के सक्रिय सदस्य हो गये। महावीर को अपने पिता से वतन पर मर मिटने की शिक्षा प्राप्त हुई थीं। महावीर ने क्रातिकारियों की कई सक्रिय योजनाओं मे भाग लिया था। सान्डर्स वध में महावीर सिंह का भी योगदान था। इस कान्ड के बाद घटनास्थल से भगत सिंह और राजगुरु को कार द्वारा ही महावीर सिंह भगा कर ले गए थे। 1929 के असेम्बली बम कान्ड के बाद गिरफ्तारियां होने लगी। महावीर भी पकडे गये, जेल मंे क्रातिकारियों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध 13 जुलाई 1929 से जेल मे क्रान्तिवीरों ने आमरण अनशन प्रारम्भ किया। अनशन के ग्यारह दिनों बाद सरकार द्वारा इन लोगो को जबरन दूल पिलाया जाने लगा। जबरन दूध पिलाने के काम मे महावीर का हर दिन आधा घन्टा आठ दस पहलवानों से मुकाबला होता था। तब कहीं जाकर महावीर काबू में आते थे। 63 दिनों के अनशन के बाद एक दिन डाक्टरों का एक दल इन्हें जबरन दूध पिलाने आया। इनके नली डाली गयीं जो फेफड़ों मे चलीं गयी। यह बर्बरता अमानवीय थी। महावीर को अस्पताल ले गए, जहां पर महावीर सिंह का 17 मई 1933 को निधन हो गया। 29 वर्ष की आयु में ये देश के लिए कुर्बान हो गए। इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, राजकुमार सोनी सर्राफ, राधा रमण गुप्ता, लल्लन गुप्ता, गौरी शंकर, वृन्दावन गुप्ता, दिलीप अवस्थी, प्रान्शू सोनी आदि मौजूद रहे।