कृषि विधेयक पर देशभर में भड़के किसानों का हल्ला बोल, अन्नदाता बोले किसानों को धन्नासेठों का गुलाम बनाने का कानून लाए पीएम मोदी
– कृषि बिल से एमएसपी को लेकर किसानों में चिंता, पूंजीपतियों के अधीन हो किसान से मजदूर बन जाएंगे अन्नदाता
पंकज कुमार सिंह –
कानपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘आपदा में अवसर’ का बयान दरअसल उद्योगपतियों-धन्नासेठों की तरक्की के लिए मुफीद साबित हुआ है। इसी के साथ देश के अन्नदाता व आम जनता सरकार और पूंजीपतियों के गठजोड़ के साथ आपदा में अवसर की मार झेलने को मजबूर हैं। जी हां ! यह हम नहीं कह रहे, यह ग्राउण्ड रिपोर्टिंग से आए तथ्य साफ जाहिर कर बानगी पेश कर रहे हैं।
केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा जनता के हित के नाम पर निजीकरण की योजनाएं आम लोगों पर भारी पड़ रही हैं। इनके दूरगामी परिणाम भयावह रूप में देखे जा रहे हैं। कोरोनाकाल में पूंजीपतियों की खेवनहार बनकर आई पीएम मोदी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार अब किसानों के मुद्दे पर घिरी हुई है। केन्द्र सरकार के कृषि बिल पर देशभर में सड़क से संसद तक संग्राम हुआ है।
गौरतलब है कि गुरूवार यानि 17 सितम्बर 2020 को लोकसभा में कृषि विधेयक को लेकर बड़ा बवाल हुआ। केन्द्र सरकार “कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक” व “मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान समझौता (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) विधेयक” सहित “आवश्यक वस्तुओं(संसोधन) विधेयक” लाई और सदन में पास कराया। गत रविवार यानि 20 सितम्बर 2020 को राज्यसभा में दो अहम् बिलों को पास कराया। इस बीच राज्यसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। विरोध यह है कि इन विधेयकों से मंडिया खत्म हो जाएंगी तो किसानों को एमएसपी (मिनिमम सपोर्टिंग प्राईस यानि न्यूनतम समर्थन कीमत) नहीं मिलेगी। किसान निजी कंपनियों के अधीन कृषि करने को मजबूर हो जाएंगे और मजदूरों की तरह किसानों का शोषण होगा। धन्नासेठों द्वारा जमाखोरी होगी। इससे खाद्यान की कीमतों की अस्थिरता बढेगी। खाद्य सुरक्षा खत्म हो जाएगी। कीमतें तय करने की कोई प्रणाली नहीं है इसी से निजी कंपनियों को किसानों के शोषण का जरिया मिलेगा। व्यापार मंडल जैसी संस्थाओं के जरिए पूंजीपति खुद ही खाद्यान की कीमत तयकर किसानों को मजबूर कर शोषण करेंगे। इन मुद्दों के साथ ही पंजाब से शिरोमणि अकाली दल(शिअद) की सांसद व कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने विधेयक को किसान विरोधी बताते हुए गुरूवार को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
इस प्रकरण में गौर करने वाली बात है कि विपक्ष के हंगामों और सड़क पर किसानों के आन्दोलन के बीच मोदी सरकार ने लोगों को विधेयक से सवालों पर अपना कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है और न ही लोगों की उन चिंताओं पर विधेयक में कोई स्पष्टता है। ऐसे में देशभर में हंगामा लाजमी है। इस बिल को संघीय ढांचे के खिलाफ और किसानों के विरूद्ध देखा जा रहा है। देश की जनता इसे निजीकरण की दिशा में पूंजीपतियों को अवसर और किसानों पर अत्याचार के रूप में देख रही हैं।
कृषि विधेयक में किसानों से छीना न्याय का अधिकार
यह गुलामियत की बानगी ही है कि कृषि विधेयक में किसानों से विवाद की स्थिति में न्यायालय जाने का अधिकार किसान को नहीं होगा। जानकार बताते हैं कि नया कानून लागू होते ही किसानों को निजी कंपनियों के बीच समझौते में किसी विवाद की स्थिति पर जिले में के एसडीएम तक ही मामला ले जाया जा सकता है इससे ऊपर का कोई प्राविधान नहीं है। ऐसे में न्यायालय के दरबाजे किसानों के लिए बन्द होंगे। अब यहां समझें कि शासन सत्ता की मलाई चाटने के लिए नेता पूंजीपतियों के अधीन रहते हैं। और सरकारी अफसर नेताओं के अधीन ऐसे में सरकारी अफसर किसानों के लिए न्याय करेगा? यह संदेह के घेरे में देखा जा रहा है और न्याय के मौलिक अधिकार के विरूद्ध भी।
किसानों के लिए एमएसपी और उद्योगपतियों के लिए एमआरपी
पूंजीपतियों के पोषण और जनता के शोषण की बानगी यह भी है कि किसानों के लिए एमएसपी यानि मिनिमम् सपोर्टिंग प्राईस की बात होती है जबकि जमीनी हकीकत यह है कि किसान को मिनिमम् से भी कम दाम में अनाज बेचना पड़ता है। वहीं उद्योगपतियों के प्रोडक्ट को एमआरपी यानि मैक्सिमम् रिटेल प्राईस तय किया जाता है यानि प्रोडक्ट की अधिकतम् कीमत तय कर दी जाती है ऐसे में पच्चीस रूपए की कीमत का प्रोडक्ट या डेढ सौ – ढाई सौ से अधिक की कीमत रख दी जाती है। ऐसे में अधिक मुनाफे का रास्ता व्यापारियों को मिलता है लेकिन कृषि में किसान हमेशा शोषण का साधन ही बना रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भरोसा नहीं लोगो को
कृषि विधेयक के जबरदस्त विरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि “मै पहले भी कह चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं कि एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी। सरकारी खरीद जारी रहेगी हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं। हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे” इसके उलट जवाब में लोगों का कहना है कि देश से झूंठ पर झूंठ बोलने वाले पीएम मोदी पर कैसे भरोसा किया जाए? पीएम कहते थे रेल से मेरा जुड़ाव रहा है मै रेल नहीं बिकने दूंगा लेकिन रेल का निजीकरण कर दिया। और सरकारी संस्थाए बेचे डाल रहे। एमएसपी जारी रहेगी इसकी कृषि बिल में गारण्टी नहीं है। पीएम सिर्फ बोल रहे। बोलकर कुछ नहीं होता। पीएम मोदी को लोग भरोसे के लायक समझने से परहेज करने लगे हैं।
विधेयक को पास कराने में हुआ नियमों से खिलवाड़
गत रविवार यानि 20 सितम्बर को राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। कृषि बिल पर समर्थन के लिए सदन में कार्यवाही चल रही थी। सदन का समय भी पूरा हो चला था। सदन में नेता विपक्ष गुलाम नवी आजाद ने सदन की कार्यवाही अगले दिन टालने की मांग की लेकिन सत्ता पक्ष के इंकार करने पर सदन का समय बढाकर बिल को पास करा लिया गया। इसी बीच टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने विरोध जताते हुए उपसभापति हरवंश से रूलबुक दिखाते हुए पूंछा कि किस नियम के तहत सदन का समय बढाया गया। सदन में बिल पास कराने को लेकर सत्ता पक्ष पर नियम भी ताक में रखने के आरोप लगे। विरोध में 12 सांसदों ने संसद परिसर में धरना दिया।
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो विधेयक का ही विरोध कर रहे। यह कृषि विधेयक किसानों के फायदे के लिए है। इससे किसानों का मण्डी शुल्क बचेगा और किसान सीधे अपनी पैदावार बेच सकेंगे। किसान दलालों से बचेंगे। किसान अपनी पैदावार की कीमत खुद तय कर पाएंगे। – महेश त्रिवेदी, भाजपा विधायक, किदवई नगर
हम कृषि बिल का स्वागत तब कर सकते हैं जब सरकार किसानों के सवालों को सुन उनकी आपत्तियों पर भ्रम दूर करें। कृषि मंत्री किसानों के बीच जाकर जवाब दें। प्रधानमंत्री ने कृषि विधेयक लाकर अच्छा काम किया लेकिन किसानों को विधेयक में एमएसपी की गारण्टी दें और एमएसपी का दायरा बढाएं। इसके लिए विधेयक में संसोधन करें। बाजार को बेलगाम न होने के लिए रेगुलेटरी सिस्टम की व्यवस्था कृषि बिल में हो। – ब्रिजेन्द्र प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार व कृषि मामलों के जानकार
हम लोगों ने कृषि विधेयक का विरोध किया। हम चौधरी चरण सिंह और नेताजी मुलायम सिंह जी के रास्ते पर चलने वाले हैं। किसान हित में हम विरोध में है। लेकिन किसानों की कोई नहीं सुनता। किसान बाहर तक अपनी फसल बेच ही नहीं पाएगा सब पूंजीपति लोग ही लाभ कमाएंगे। सरकार ने पूंजीपतियों के लिए यह बिल पास कराया है। – सुखराम सिंह यादव, पूर्व सभापति विधान परिषद उ0प्र0, सपा सांसद रास
किसानों की कोई नहीं सुन रहा 15 महीने से सिंचाई के लिए बिजली कनेक्शन नहीं मिला है। 15 सौ चक्कर लगाए हैं। भ्रष्टाचार फैला है। कृषि बिल से किसानों की बरबादी होगी किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा और मेहनत के उत्पादन से निजी कंपनियां माल कमाएंगी। पूंजीपतियों को सब बेच देंगे भाजपा वाले। पीएम मोदी ने सबको निराश किया है। यह तानाशाही है देश में। जमीनी हकीकत से दूर है सरकार। – रामनरेश सिंह, किसान
अब तक तो नौकरियां ही जा रहीं थी अब किसानों की जमीने भी चलीं जाएंगी। कृषि विधेयक पूंजीपतियों के हित को ध्यान में रखकर लाया गया है। नोटबन्दी, जीएसटी के बाद अब कृषि कानून लोगों पर भारी पड़ेगा। जमाखोरी बढेगी। खेती बाड़ी व्यापारियों के अधीन हो जाएगी। किसान अपनी पैदावार का खुद मालिक नहीं अपितु पूंजीपतियों के अनुसार चलेगा। पीएम की तानाशाही है। हम विरोध कर रहे हैं। – सूरज ठाकुर, जिला पंचायत सदस्य कांग्रेस
अनुप्रिया पटेल : किसानों के साथ या किसानों के खिलाफ
कानपुर। अपना दल(एस) की मीरजापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल किसानों के साथ हैं या किसानों के खिलाफ हैं? यह स्पष्ट नहीं है। अपना दल (एस) के दोनों सांसदों ने कृषि विधेयक के पक्ष के साथ सरकार के समर्थन में वोट किया है। वहीं सङक से संसद तक खूब हंगामा हुआ। कृषि विधेयक को पूंजीपतियों के हित और किसानों की बदहाली के रूप में देखा जा रहा है। खेतिहर जमात के लाखों किसानों ने विधेयक का विरोध किया लेकिन अनुप्रिया पटेल ने सार्वजनिक तौर पर अपना रूख स्पष्ट नहीं आया है। कृषि विधेयक में कई स्तर पर खामियां सामने आ रहीं हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्री व प्रधानमंत्री भी किसानों का सामना करने से किनारा कर रहे हैं। गौरतलब है कि अनुप्रिया पटेल खेतिहर कौम से आतीं हैं।