हमीरपुर, अंशुल साहू। किशनू बाबू शिवहरे महाविद्यालय, सिसोलर में लॉकडाउन को ध्यान में रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत एक जन्मजात क्रांतिकारी शहीद शिरोमणि भगत सिंह की जयंती पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कालेज के प्राचार्य डॉ0 भवानीदीन ने कहा कि भगत सिंह सच्चे अर्थों में विद्रोह, वाणी और कलम के धनी थे। भगत सिंह वे मशालची थे, जिन्होंने तत्कालीन युवाओं को आजादी के संघर्ष के लिए नई रोशनी दी। वह सचमुच क्रांतिचेता थे। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में सरदार किशनसिंह घर हुआ था। मां का नाम विद्यावती था। इनकी दादी जयकौर ने इनका नाम भान्गो वाला कहकर भगतसिंह रखा। भगतसिंह गान्व के प्राइमरी स्कूल मे पढे़ं। ये पढने में बहुत तेज थे। चैथी कक्षा तक आते आते अपने चाचा अजीत सिंह, सूफी अम्बा प्रसाद और लाला हरदयाल की लिखी हुई पचास से अधिक पुस्तकों का अध्ययन कर चुके थे। भगत सिंह डीएवी कॉलेज में रहे। वहां पर बहुत सारे क्रांतिकारियों से परिचय हुआ और उसके बाद भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा का गठन किया। उसके बाद हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। इस संगठन में चन्द्र शेखर आजाद शचीन्द्र नाथ सान्याल, शिव वर्मा, रास बिहारी बोस, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल जैसे तमाम सारे क्रांतिवीर थे। जिन्होंने देश के लिए बहुत कुछ काम किया। सबसे पहले इन्होंने लाला लाजपत राय के खून का बदला लिया। सांडर्स का वध किया। उसके बाद 08 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली मे बम फेका, सुखदेव, राजगुरु ने साथ दिया। भगतसिंह ने इन्कलाब का नारा दिया। उन्होंने कहा क्रांति का अर्थ बम और पिस्तौल नहीं है। क्रांति का अर्थ परिवर्तन होता है। उन्होंने अपने आप को गिरफ्तार करा दिया। गोरों ने न्याय का नाटक किया और आगे चलकर सुखदेव राजगुरु और भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा हुई। उसके बाद अंग्रेजों ने उनके शव के साथ अमानवीय व्यवहार किया। उनको मिट्टी का तेल डालकर जलाया गया, यह अमानवीय कार्य था। भगतसिंह तत्कालीन युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। कार्यक्रम में डॉ0 श्याम नारायण प्रदीप यादव, अखिलेश सोनी आरती गुप्ता, नेहा यादव, सुरेश सोनी, गंगादीन प्रजापति, प्रशान्त सक्सेना, सागर शिवहरे, हिमान्शु सिंह आदि लोग शामिल थे।