वेबसिरीज की हीरोइनों के बोल्ड अंदाज तथा अंग्रेजी गालियां और अब भारतीय समाचार प्रवाहों में उभर-उभर कर आना महिलाओं के विधानों और व्यवहार के बीच कोई संबंध दिखाई दे रहा है? बंदिश बंडिट्स की हॉट नायिका का गुस्सा और रिया चक्रवर्ती के ह्वाट्सएप चैट के लीक होने का करोड़ो भारतीयों के इंतजार के बीच कोई कनेक्शन दिखाई दे रहा है? पिछले कुछ महीनों से सबसे अधिक किसकी चर्चा हो रही है और क्या काम हो रहा है? फिल्में और समाज, दोनों ही एक-दूसरे को बनाते हैं, जिसका बहुत बड़ा सबूत इस समय मिल रहा है। आज अगर किसी बात की सबसे ज्यादा चर्चा है तो वह आईपील खेलने गए लड़कों की नहीं है, इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में देश की नायिकाए हैं। अब यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हक् कि उनके लिए नायिका शब्द का प्रयोग करें या नहीं? इस चिंता में आज लोग परेशान हैं।
इस समय सेक्स से भी अधिक रोमांचक बजवर्ड भारत के लिए रिया चक्रवर्ती हैं। पिछले महीने से जो हो रहा है, उसके बारे में सोचें तो कई हस्तियों के नाम दिमाग में उमड़घुमड़ रहे हैें। दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली खान एंड आफकोर्स कंगना रनौत। इस सूची में सीनियर और सेवानिवृत्त हो चुकी अभिनेत्रियां भी बाकी नहीं हैं। उदाहरण के रूप में श्रीमती जया बच्चन। अमिाताभ बच्चन की शालीनता और पॉलिटिकली करेक्ट रहने की खूबी पूरे परिवार में नहीं आ पाई है। इंस्टाग्राम पर मलाइका अरोड़ा खान की उनकी उम्र को लेकर ट्रोल करने वाले जब उन्हें कोरोना हुआ तो कहीं दिखाई नहीं दिए। क्योंकि वे सभी एयरपोर्ट पर इकट्ठा हो गए थे। नार्कोटिक्स डिपार्टमेंट ने दीपिका को पूछताछ करने के लिए मुंबई जो बुलाया था। कुछ देशों में मारिजुआना (गांजा) गैरकानूनी नहीं है। पर अपने देश में ड्रग्स को बहुत खराब माना जाता है। क्योंकि यह बहुत खराब चीज है। पर इन्हीं खराब चीजों में तम्बाकू से लेकर गुटखा, बीड़ी से लेकर शराब और सोडा से लेकर फास्टफूड भी हैं, पर इनका सेवन लाखो नहीं, करोड़ो भारतीय करते हैं। पर इस तरह का आरोप सुनाई पड़हा है कि दीपिका ने चिट्ठी में लिख कर भेजा था कि ‘माल है क्या’? उपन्यासों को पढ़ने वालों की तरह सभी की उत्तेजना इस इश्यू पर बढ़ गई है।
अगर शिक्षा धंधा है तो है, यह कोई नई बात नहीं है। इसी तरह फिल्में देश की राजनीति का अंग हैं और रहेंगी भी। फिल्म इंडस्ट्री केवल मनोरंजन के कला अभिव्यक्ति का साधन नहीं है तो नहीं है। इट इज ए पॉलिटिकल टूल। अगर ऐसा न होता तो दिलीप कुमार को रातोरात जेल न हुई होती, देवआनंद को राजनीतिक पार्टी न बनानी पड़ती, किशोर कुमार के गीतों पर रेडियो परं प्रतिबंध न लगा होता। पैसा और पावर जहां होता है, वहां पॉलिटिक्स होती ही है। यह सनातन नियम है। अब फर्क केवल इतना पड़ा है कि यह जो कुछ भी हो रहा है, उसमें मुख्य चेहरों में महिलाओं के चेहरे अधिक दिखाई दे रहे हैं। जेंडर इक्वालिटी केवल शिक्षा-नौकरी, हक, विचारों में ही नहीं, अपराध, शाब्दिक तर्क-वितर्क और राजनीतिक लड़ाई में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
महिलाओं का ड्राइविंग प्वाइंट पर आना ट्रीगर प्वाइंट ‘टू मी’ मूवमेंट था। यह सब केवल महिलाओं पर हुए अअत्याचार को बताने तक ही सीमित नहीं था। यह सब बता कर सभी फील्ड के टॉप-शिखर पर बैठे लोगों को नग्न करना था। इसमें राजनीति घुसी तो विकृति आ गई। सर्जनात्क दृष्टि से बूढ़े हो रहे डायरेक्टर अनुराग कश्यप पर मी-टू के लेबल के अनुसार आरोप लगा तो उनकी एक्स वाइफ कल्कि कोचली ने ओपन पत्र लिख कर इंस्टाग्राम पर डाला। रिया चड्ढा किसी को लीगल नोटिस भेजती हैं तो वह भी उसे इंस्टाग्राम पर डाल देती हैं। मेरे डैड की दुल्हन-श्वेता को कोविड-19 हुआ और वह इसे किसी को बताना नहीें चाहतीं तो वह भी बड़ी ही शिष्ट भाषा का उपयोग कर के बाहर आती हैं और स्वरा भाष्कर तो इस सबके लिए मशहूर ही हैं। न्यूज एंकर से लेकर फैशन डिजाइनर, स्पोर्ट्स वुमन से लेकर एस्ट्रोनोट तक अब विवाद करने वालों में महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
इतनी अधिक चंदयात्र और अंतरिक्ष यात्र होने के बाद भी आज तक चंद्रमा पर किसी महिला ने पैर नहीं रखा है। अभी जल्दी ही नासा ने घोषणा की है कि 2024 में एस्ट्रोनोट को चंद्रमा पर भेजेंगे। मुद्दा यह है कि बीस हजार साल से दुनिया के किसी न किसी कोने, किसी न किसी संस्कृति में महिलाओं पर अन्याय होता आ रहा है और पुरुषों ने चाहे वह कमजोर रहा हो या सबल राज किया है। जैसे कुदरत की साइकिल हो, क्या अब इस तरह की एक सामाजिक साइकिल भी होगी? बीस हजार साल पुरुषों ने हेडलाइन बनाई तो अब आगे बीस-तीस हजार साल तक महिलाओं का नंबर है? नारायणी कही जने वाली नारी की दूसरी ओर जो डोमिनंट है और वह भी राज करने के लिए बनी है, यह उजागर होगा? अधिकारभावना को क्या केवल एक ही जाति पुरुष को भोगना है? अब महिलाओं के स्वामित्व की जो शुरुआत हुई है, वह इस नए जमाने की शुरुआत का मंत्र है।
वीरेन्द्र बहादुर सिंह