Tuesday, November 19, 2024
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सहारे का सहारा

संजना तीस वर्ष की एक अविवाहित लड़की थी जिसे बहुत दौरे पड़ते रहते थे क्योंकि उसे मिर्गी की बिमारी थी। दो वर्ष पूर्व उसके पिता का साया उठ गया था और उसके भाई भाभी दोनों ही बहुत स्वार्थी और बहुत चालाक किस्म के थे। दोनों भाई भाभी नोकरी का बहाना कर के संजना और उसके मां का कोई ख्याल नहीं रखते और न हीं उन्हें कभी अपने साथ रखते। पिता के मृत्यु के बाद उसकी मां भी बहुत बहुत उदास रहती और कभी किसी से वो कुछ बात भी करतीं तो उसमें भी अपनी बेटी के अविवाहित होने की ही हमेशा जिक्र किया करतीं जिस वजह से इस पड़ोस की औरतें भी उनसे जादे बात भी नहीं करना चाहतीं क्यों कि एक ही बात और दुःख सुनते उनका भी दिल भर गया था। शक्ल सुरत और कद काठी से तो संजना बहुत अच्छी थी पर अपनी ऐसी बिमारी और स्वार्थी भाई भाभी के व्यवहार के तनाव से वो अपनी उम्र से बहुत बड़ी, बहुत उदास लगती। विवाह कर के अपना घर बसाने की चाहत तो हर लड़की की तरह उसे भी बहुत थी पर अपनी बिमारी, उदास ज़िंदगी और बीतते उमर की ख्याल से उसने सादी के ख्वाब देखने भी छोड़ दिया था।
राहुल उसके घर में किराएदार था जो एक प्राइवेट फर्म में साफ्टवेयर इंजीनियर था उसे अभी तीन महीने ही हुए थे संजना के यहां किराए से रहते हुए। एक दिन इतवार के दिन राहुल ने संजना की मां को किसी रिश्तेदार से संजना के अविवाहित रहने और उनके बाद उनकी बेटी की देखभाल की बात में रोते हुए सुना वो फोन रखने के बाद भी बहुत रोए जा रही थीं। राहुल बहुत नेक दिल इंसान था उससे रहा न गया और वो संजना के मां के पास जाकर आखिर पूछने ही लगा आंटी क्यूं रो रही हैं। कितने दिनों से उनके सुख दुख किसी ने नहीं पुछा था सो राहुल के इतने हमदर्दी से पूछने पर वो और फफक पड़ीं और कहने लगीं कि बेटा कोई भी मेरी इस मरीज़ बेटी की शादी कराने वाला नहीं है लगता है कि मैं भी अपनी बेटी की शादी देखे बिना ही गुजर जाऊंगी। वो रोने में बहुत सारी बातें बोल रही थीं। उनके असमर्थता और विलाप राहुल से बर्दाश्त न हुआ और वो सहसा बोल पड़ा मैं करूंगा आपके बेटी से शादी।
संजना मां एकदम से रोना बंद कर के राहुल को अजीब से देखने लगीं पर थोड़ी ही देर में पूछा क्या कहा बेटा तुम?
राहुल बोला हां आंटी मैं, क्या हुआ ? मैं संजना के लायक नहीं? हो सकता है मुझमें कुछ कमी हो पर यकीन करिए मैं संजना का बहुत ख्याल रखुंगा। पर बेटा तुम्हारे माता-पिता? उसने कहा मैं मना लुंगा बहुत प्यार करते हैं वो मुझसे। संजना और उसके मां को एकदम यकीन नहीं हो रहा था संजना की मां फिर बोली कि तुम्हें तो पता है इसकी बिमारी….
राहुल ने कहा सब पता है आंटी मैं सब देख सुन और महसूस कर रहा हूं। इस बात के बाद राहुल सिर्फ एक हफ्ते बाद ही अपने घर जाने लगा जाते वक्त वो संजना के मां से बोला कि आंटी वैसे तो मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे माता-पिता मुझे निराश नहीं कर सकते कभी भी पर फिर भी आप मुझे आशिर्वाद दिजिए की वो राजी हो जाएं। उसने संजना के तरफ भी बहुत अपनेपन और प्यार से देखते हुए बाय बोला।
अब तो संजना का खोया हुआ आत्मविश्वास जग उठा और वो बहुत खुश रहने लगी थी। राहुल को घर गए सिर्फ चार दिन ही हुए थे जब उसने संजना और उसकी मां से विडियो काल किया उनका हाल पूछने को तो संजना को वो देखता ही रह गया वो इस चार दिन में ही काफी निखर गयी थी। संजना की मां ने सहमते हुए ही पूछा कि बेटा बात किया तुमने? वो बोला कि नहीं आंटी पर मुझे थोड़ा सा वक्त दीजिए यहां मैं आया तो देखा कि पापा बहुत बिमार चल रहे हैं पर मां ने मुझसे कभी कुछ कहा नहीं क्यूं कि मैं परेशान हो जाता। आप समझ सकती हैं पर यकीन करें सब अच्छा ही होगा। संजना की मां ने कहा बेटा रहने दो अभी पर जब भी बताना कुछ भी छुपाना नहीं।
एक हफ्ते और बीते इधर संजना की तबीयत में काफी सुधार हुआ था और वो राहुल जैसे सुंदर और नेक दिल जीवनसाथी के सपने को सजाकर बहुत सलीके से रहने लगी थी। अपनी और मां की भी बहुत ख्याल रखने लगी थी। पहले तो राहुल संजना और उसके मां पर एक उपकार करने चला था पर अब उसे संजना को निखरा हुआ देख संजना से प्यार हो गया था। अपने पिता के स्वस्थ होने के बाद राहुल ने एक दिन पूरे विश्वास के साथ अपने माता-पिता से सारी बात बताई पर सब कुछ जानने के बाद उसके माता-पिता उसके सोच के विपरीत बहुत नाराज़ हुए।
राहुल ने लाख कोशिश की पर उसके माता-पिता नहीं माने। पिता ने इतना तक तक दिया कि शादी की उस लड़की से तो मुझसे कोई रिश्ता नहीं रहेगा।
राहुल संजना और उसके मां को फोन तक नहीं कर पा रहा था और जब संजना की मां ने फोन किया तो वो रोने लगा दोनों मां बेटी फिर टूट गयीं पर संजना ने राहुल को बहुत समझाया। वो सोचने लगी कि शादी उसके नसीब में ही नहीं है पर अपने प्रति राहुल का प्यार उसके जीने का संबल बन गया था। राहुल को अपने माता-पिता के कहने के अनुसार संजना के घर के बदले दूसरे जगह रहना पड़ा। पर वो एक दोस्त की तरह संजना से बात करता रहा। संजना उसके बात और परवाह में ही बहुत संतुष्ट रहने लगी। अब वो अपने दवा और खाना वक्त पर लेती और उसे बहुत कम दौरे पड़ते। उन दोनों को बात करते इस तरह आठ महीने बीत गए थे। इधर राहुल की शादी भी तय हो चुकी थी भले वो खुश नहीं था इस शादी से। संजना को पता चला तो वह थोड़ी उदास हुई पर फिर भी वो खुद को बहुत खुश रखने की कोशिश करती क्यूं कि वो अब खुद में जगा विश्वास खोना नहीं चाहती थी। इधर राहुल का कोल आना बिल्कुल बंद हो गया। उसने सोचा कि शायद राहुल की शादी होने वाली है तो उसके माता-पिता ने मुझसे बात बंद करने के लिए भी दबाव बनाया होगा। पर वो अब आगे बढ़ रही थी और अपने आत्मविश्वास और तरक्की के लिए मन ही मन राहुल को धन्यवाद करती रहती। उसने पड़ोस में ही कुकिंग क्लास किया और अपने ही घर में रेस्तरां खोल लिया। उसका बिजनेस अच्छा चल पड़ा था। राहुल से बात हुए पांच महीने हो गए थे। वो हमेशा यही प्रार्थना करती कि राहुल अपने जीवन में खुश रहे।
एक दिन अपनी मां के साथ वह कुछ सामान खरीदने बाजार गई थी तो उसके सामने अचानक राहुल बैशाखियों के सहारे खड़ा मिला तो आवाक रह गयी। संजना को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो बस रोए जा रही थी। राहुल की मां ने दुःख के साथ बताया कि राहुल ने एक एक्सीडेंट में अपने दोनों पैर गंवा दिए। संजना ने उसके पत्नी के बारे में पूछा तो राहुल के मना करने पर भी राहुल के मां ने बताया कि शादी हुई ही नहीं और इतना कह कर वह भरे गले से रूआंसी हो कर कहने लगीं कि कौन करेगा अब इससे शादी?
संजना ने तुरंत राहुल के मां को अपने गले से लगा लिया और कहा कि मां मैं हूं न। आप मेरी सौतन लाने की सोचिए भी नहीं। और राहुल संजना के मां से कहने लगा कि आंटी इसे समझाइए प्लीज़। मुझसे शादी कर के ये अपने सपने बर्बाद न करे। संजना के मां ने कहा कि बेटा उसके सपने और चाहत तो तुम ही हो और वो तो तुम्हे अपना पति मानती है। और इस तरह अब संजना ने भी अपना फर्ज निभाया और अपने सहारे का सहारा बन गयी।