भाजपा सरकार की फ़जीहत पर चल रहा मीडिया मैनेजमेंट !
हाथरस/कानपुर, पंकज कुमार सिंह। हाथरस के बूलगढी की बेटी के साथ दरिंदगी मानवता को शर्मशार कर देने वाली घटना है। बेटी के जीते-जी और उसके मरने के बाद भी उसके साथ हुई ज्याद्ती ने इतिहास का काला पन्ना रच दिया है। इस पन्ने पर न वल्कि दोषियों की कलंक कथा दर्ज होगी अपितु सत्ता के हुक्काम और प्रशासन के हुक्मरान दोनों के विद्रूप चेहरों का चित्रण दर्शाया जाएगा। उस मीडिया की काली तस्वीर भी उकेरी जाएगी जिसने बेटी के न्याय को कम और राजनीति को तरजीह ज्यादा दी है। संवेदनहीनता की पराकष्ठा ही है कि बेटी के साथ ज्याद्ती पर ज्याद्ती होती रही और लोगों के बीच यह फैलाया जा रहा कि आरोपी और बेटी का प्रेम प्रसंग था, यह सच हो सकता है ! तो क्या बेटी दरिंदगी की हकदार बन गई? बेटी के भाई के साथ आरोपी की फोन वार्ता की काॅल डिटेल सामने आई है ! तो क्या बेटी मार डाली जाएगी? बेटी के माता-पिता-भाई रिश्तेदार बेटी के खोने के गम में टूट चुके है। ऐसे में वादी होते हुए उनको कटघरे में खङा करना क्या उचित है? जांच की ज़द में सब आएंगे लेकिन पुलिस द्वारा पीड़ित के नार्को टेस्ट की सिफारिस क्या कानून में उल्लिखित प्राविधान से खिलवाङ नहीं ? आधी रात बेटी के शव को तेल डालकर जला देना क्या मानवाधिकारों का उलंघन नहीं? मरने के बाद भी सम्मान की जगह अपमानभरा आखिरी संस्कार और दाह संस्कार से परिजनों को दूर रखना क्या प्रशासन को कठघरे में नहीं खड़ा करता? सवाल तो बहुत उठते है लेकिन समाज में मिडिया, शासन-प्रशासन के बीच सदियों से वंचित समुदाय के प्रति नजरिया और उनके साथ हुए हादसे कीड़े मकोड़े की तरह ही देखे जाते रहे है भले ही लोकतंत्र और क़ानूनी प्राविधान कुछ भी कहे. बेटी के साथ इस विभित्स घटना ने देश विदेश में शासन प्रशासन की खूब थू-थू हुई। जातीय घृणा ने दुनियांभर की नज़रें इस घटना की ओर मोड़ दीं तो सत्ता की खूब फजीहत हो रही है। ऐसे में जातिवादी मीडिया और प्रशासन के अफसर ने मिडिया मैनेजमेंट शुरू कर दिया। आरोपियों का अपने बचाव पक्ष में पुलिस को चिट्ठी लिखकर यह कह देना कि वह निर्दोष हैं और बेटी को उसके मां और भाई ने पीटा जिससे उसकी मौत हो गई। यह बयान आरोपियों का खुद के बचाव में दलील तो हो सकती है लेकिन यह कोई खुलासा नहीं है और न हीं कोई सबूत है। लेकिन मुख्यधारा के अखबार ‘दैनिक जागरण’ की प्रथम पेज के मुख्य शीर्षक “युवती के मां व भाई ने की थी हत्या” के साथ खबर पेश की गई जिससे समाज में लोगों के बीच घटना का रुख ही मोङा जा सके ! अभी तक ऐसा कोई आधार या सबूत सामने नहीं आया है जिससे यह मजबूत दलील दी जा सके कि आरोपी निर्दोष और बेटी के मां व भाई दोषी हैं लेकिन तमाम लोगों ने बिना किसी स्थानीय मुआयना और तथ्य तर्क के जातीय भावना में कसींदे गढना शुरू कर दिया। न्यायिक कारवाही पर भरोसा होगा। हाथरस की बेटी का दोषी कौन है? यह निष्पक्ष जांच में सबके सामने जरूर आएगा। हाँ हम यह जरूर कहेंगे की दरिंदगी की इस घटना के बीच राजनैतिक पैबस्ती और जातीय उन्मांद के बीच कोई निर्दोष प्रताड़ित न होने पाए।
फॉरेन्सिक खुलासे के डर से डॉ राजकुमारी बंसल के खिलाफ रची गई साजिश
हाथरस की बेटी से हुई दरिंदगी की घटना पर नक्सली भाभी कहकर वरिष्ठ डॉक्टर राजकुमारी बंसल को साजिशन बदनाम किया जा रहा है। मंगलवार को यह खुलासा सामने आया। मुख्य धारा के बड़े अखबारों ने यह खबर लिखी की वह पीड़िता की भाभी बनकर रही वह नक्सलियों से जुडी है और पीड़िता के घर दो दिन तक रहीं थीं। जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज की प्रोफ़ेसर डॉक्टर राजकुमारी बंसल ने जन सामना हुई विशेष वार्ता में इन आरोपों को बकवास और निराधार बताया। उन्होंने कहा कि हाथरस की घटना झकझोर देने वाली घटना है। बातचीत के दौरान यह खुलासा सामने आया कि दरिंदगी की शिकार हुई बेटी की जाँच रिपोर्ट आदि से सम्बंधित फॉरेन्सिक खुलासे के डर से डॉ राजकुमारी बंसल के खिलाफ साजिश रची गयी है। आपको बता दें डॉक्टर राजकुमारी बंसल एमबीबीएस और परास्नातक एमडी डॉक्टर है और इसी के साथ वह फोरेंसिक विशेषज्ञ है। उन्होंने बातचीत में स्पष्ट किया कि उनकी जाँच पड़ताल में कई खुलासे हो सकते है इस कारण उनको निशाना बनाया गया है। उनके पीड़िता के घर पहुँचने और वहां मौजूदगी की पूरी जानकारी प्रशासन को थी। मीडिया से भी बात हुई थी लेकिन जब वो दस अक्टूबर को वापस लौटी तो साजिशन उनके खिलाफ ख़बरें चलायीं गयी। और तोड़मरोड़कर कर उनके बयान पेश किये जा रहे है। उनके खिलाफ मेडिकल कॉलेज डीन द्वारा डॉ प्रदीप कसार द्वारा नोटिस दिए जाने की खबर आयी। जिसपर डॉ बंसल ने साफ किया की उनपर कोई कारवाही नहीं हुई और न ही कोई नोटिस मिला है। वह विधिवत अपनी ड्यूटी दे रही है। वह विधिवत सूचना देकर ही हाथरस गयी थी। डॉक्टर राजकुमारी इंडियन आंबेडकर डॉक्टर्स फेडरेशन से जुडी है और शोषित वंचित समाज के लोगों की मदद करती है। उन्होंने बताया की उनका मोबाईल नंबर भी गलत नाम से प्रदर्शित हो रहा है जिसकी शिकायत साइबर पुलिस में दर्ज़ कराइ गयी है।
सरकार की बदनामी के नाम पर मुद्दे से भटकाव का खेल
खबर फैली है की सरकार की बदनामी के लिए विदेशी फंडिंग के तहत सरकार को बदनाम करने की साजिश है। ग्राउंड रिपोर्टिंग की ख़बरों से साफ़ जाहिर है की भाजपा शासन में देश के लोग के बीच भाजपा सरकार की छवि अच्छी नहीं है। किसान रामनरेश सिंह, अजीत यादव और स्वेता कहते है कि बढ़ती बेरोजगारी, निजीकरण, गिरती अर्थव्यवस्था आदि जैसे मामलों में सरकार की छवि पहले से ही खराब है। महिला अपराधों के मामलों में इज़ाफ़ा और जातीय उन्माद के बीच सरकार अपनी छवि बचने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रही है। और इसी के लिए मीडिया मैनेजमेंट किया जा रहा है। राहुल गुप्ता, सत्येंद्र कुमार कहते है कि शासन प्रशासन की मनमानी से लोग अकुला गए है। तानाशाही चरम पर है। ऐसे में हर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय साजिश या हिन्दू मुस्लिम से जोड़कर सरकार असल मुद्दों से भटकाना चाहती है। साफ ज़ाहिर है कि घटना के बाद ही अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग और विदेशी साजिशों का खुलासा हो रहा है। यह सरकार की सुनियोजित चाल है। शैलेन्द्र कहते है कि धारा 144 लागू होने पर सवर्ण संगठन की पंचायत होती है वो भी पुलिस के सामने तब पुलिस को कानून का उलंघन नहीं दिखता। आरोप है की कानून से खिलवाड़ कर सरकार मनमानी कर रही है।
बेशर्मी भरे कृत्य पर एडीजी प्रशांत कुमार को कोर्ट की फटकार
लॉ एंड उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार का बेशर्मी भरे बयान और लॉ एन्ड ऑर्डर के नाम पर हाथरस की बेटी के शव को आधी रात तेल डालकर जला देने की घटना पर चहुंओर किरकिरी हो रही है। लोग उनको लानत दे रहे है। हाथरस केस का इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वतः संज्ञान लिया था, जिसपर सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रशासन से नाराजगी जताई। कोर्ट ने एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार से कहा कि अगर आपकी बेटी होती तो क्या आप बिना देखे अंतिम संस्कार होने देते? एडीजी लॉ एंड ऑर्डर कोर्ट के इस सवाल पर चुप हो गए। उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर आई पीड़िता के परिजनों की वकील सीमा कुशवाहा ने यह जानकारी दी। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार बोल रहे हैं कि एफएसएल की रिपोर्ट में सीमन नहीं आया है। एडीजी को लॉ की डेफिनेशन पढ़नी चाहिए। पीड़िता के परिजनों की वकील ने एडीजी को रेप की परिभाषा पढ़ने की सलाह दी और कहा कि मेरे पास सारी रिपोर्ट आ चुकी है। उन्होंने कहा कि जज ने जब क्रॉस क्वेश्चन किए, तब प्रशासनिक अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं था। एडीजी प्रशांत कुमार ने पीड़िता से रेप की बात को साफ़ नकार दिया था उनका कहना था की पोस्टमार्टम में सीमन नहीं पाया जबकि पोस्टमार्टम 14 दिन बाद हुआ और बलात्कार के मामले में 24 घंटे में मेडिकल करना होता है। प्रशांत कुमार ने पीड़ितों के नार्को टेस्ट की बात कही जबकि यह संविधानिक व्यवस्थ के खिलाफ है बिना पीड़ित के टेस्ट गैरकानूनी है।
Home » मुख्य समाचार » हाथरस की बेटी पर लांछन और परिजनों पर आरोप का दौर, मानवाधिकारों की उड़ती धज्जियाँ, लोकतंत्र के लिए खतरनाक