ये बात आज से इक्कीस वर्ष पहले की है। मैं अपने ससुराल में रहती थी मेरी बिटिया डेढ़ साल की थी।अक्सर जब उसे सर्दी खांसी या बुखार होने पर मैं अपने गांव से कभी अपने पति के साथ और कभी सासू मां के साथ हस्पताल लेके जाती तो हमारे गांव से दो गांव के बाद एक बस स्टाॅप पर बस का इंतजार करना पड़ता।उस जगह मुझे एक अधेड़ उम्र का अजीब सा आदमी बहुत गौर से देखा करता था जो शक्ल से बहुत शराबी और डरावना सा लगता था। कभी कभी हम जिस बस से शहर जाते उसमें भी वो मुझे दिख जाता वो मुझे अपने किसी परिचित की तरह देखता रहता मैं भी एक दो बार उसकी तरफ देखने के बाद मन ही मन कहती बड़ा अजीब आदमी है जहां देखो वहां मौजूद रहता है और मुझे क्यूं ये देखते रहता है। एक दिन मुझे अपनी सासू मां के साथ शहर से गांव को वापस आने में बहुत शाम हो गयी। हम किसी तरह एक भीड़ भरी बस से वापस उसी स्टाॅपेज तक तो आ गये पर वहां से अपने घर तक जाने के लिए हमें किसी दूसरे साधन की जरूरत थी । देखते ही देखते रात के आठ बज गए पर हम दूसरी बस नहीं पकड़ सके। जाड़े की रात थी और गांवों के सड़कों पर तो वैसे भी बहुत जल्दी ही सन्नाटा हो जाता है। धीरे धीरे जो भी आठ दस लोगों की भीड़ थी वो भी शायद अपने आशियाने को चल पड़ी हमने कुछ लोगों को ये कहते भी सुना कि अब कोई साधन नहीं मिलने वाला आखिरी बस जा चुकी थी पर हमसे किसी ने यह ना पूछा कि हमें कहां जाना था। हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कहां जाते तब मोबाइल फोन का जमाना भी नहीं था। इधर घर पर मेरे पति और ससुर जी सोच रहे थे कि शायद हम डाॅक्टर के यहां देर होने पर शहर में रहने वाले अपने किसी भी रिश्तेदार के यहां ठहर गये होंगे पर हम तो बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ गये थे। तब तक मुझे वहां फिर वही अजीब आदमी एक युवक के साथ हमारे तरफ आते हुए दिखा। वो मां जी हमें अपने घर चलने को बहुत बार आग्रह किया पर हमारा विश्वास एक अजनबी इंसान पर भला कैसे बैठता। बहुत बार आग्रह करने पर भी जब हमारे तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला तो आखिरी बार उसने बहुत रूखे अंदाज में मां जी से कहा कि आप अपने बहू और पोती के साथ पूरी रात इस सुनसान सड़क पर बिताइए। हमें अब भी कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करें। फिर उसके साथ जो युवक था उसने हमसे कहा कि चाचा जी सिर्फ दिखते ऐसे हैं पर दिल से निहायत शरीफ़ इंसान हैं और ये ऐसे बहुत से लोगों को जो रात में कभी साधन न मिलने से यहां फस जाते हैं उन्हें ये अपने घर पर शरण देते हैं। इतना सुनने के बाद हम भी उस अजीब आदमी के पीछे पीछे चल पड़े। रास्ते में मेरे मन में यही विचार आता रहा कि अब भी इस अजीब इंसान और इसके साथ के युवक का हमें पुर्ण विश्वास नहीं करना चाहिए । फिर दूसरी तरफ मेरी अंतरात्मा से यह भी आवाज आ रही थी कि शायद ईश्वर ने ही इसे हमारी मदद के वास्ते भेजा हो हम सुनसान सड़क के बदले किसी गांव में जा रहे हैं जहां कुछ और लोगों का घर भी है कुछ भी अनहोनी के लक्षण दिखते ही हम बहुत तेज आवाज लगाएंगे।
इतना सब सोचते विचारते ही हमें एक पुरानी हवेलीनुमा घर तक पहुंच कर रुकना पड़ा। उस घर के दरवाजे पर वह अजीब आदमी के नेहा नेहा कर के आवाज लगाते ही एक सयानी सी और बहुत प्यारी सी लड़की आई बाबूजी की आवाज के साथ दौड़ते हुए आई और और हमें अपने साथ घर के आंगन में ले गयी।रात के साढ़े दस बजे तक घर के तीन चार सो चुके सदस्यों को नेहा ने जगाते हुए कहा कि देखो बाबू जी के साथ आज फिर तीन मेहमान आए हैं और इनमें एक बहुत नन्ही सी एक परी भी आई है। इतना सुनते ही नेहा की दादीए मां और दो और बहनें बिना किसी आलस के हमारे खातिरदारी में ऐसे लग गयीं जैसे कि हम सच में उनके कोई बहुत ख़ास रिश्तेदार हों। नेहा की दादी जी और मेरी सासू मां पूरी रात किसी घनिष्ठ सखी की तरह बातें करती रहीं और मुझे भी अंजान जगह की वजह से नींद तो नहीं आई पर मन में अब किसी अनहोनी की आशंकाओं के बदले पूर्ण शांति, प्रसन्नता, आश्चर्य, कृतज्ञता और विश्वास के भाव जाग्रत हो थे जो मुझे बहुत राहत दे रहे थे। सुबह बहुत जल्दी ही वो अजीब पर सज्जन आदमी अपनी बिटिया नेहा को ही आवाज देते हुए दरवाजे पर दस्तक देने लगे हमारे लिए जल्दी से चाय बनाने और बस स्टॉप पर ले जाने की बात करने लगे । उनके घर से निकलते वक्त उनका पूरा परिवार हमें बिदा करने बाहरी दरवाजे तक आया तब उनकी वृद्ध माता जी ने मेरी तरफ बहुत ध्यान से देखते हुए उनसे पूछा कि बेटा जिस लड़की को तुम रचना से मिलता जुलता कह रहे थे और जिसके बारे में तुम कह रहे थे कि वो लड़की बहुत सोना पहन कर शहर जाती है, कहीं ये वही तो नहीं है। इस पर उन्होंने कहा कि हां मां ये वही है। जब हमने पूछा कि रचना कौन है तो अचानक घर के सभी खुशमिजाज चेहरे बहुत उदास चेहरों में बदल गये। किसी ने कुछ नहीं कहा और वो सज्जन व्यक्ति सड़क के तरफ चल पड़े हम भी उनके पीछे पीछे चल पड़े।
आखिर मुझसे रहा न गया तो मैंने उनसे फिर पूछा कि रचना कौन है तब उन्होंने बताया कि रचना उनकी इकलौती और बहुत दुलारी बहन थी जो मेरी बिटिया से सिर्फ चार साल बड़ी थी और मैं उसे अपने बिटिया की तरह ही प्यार दुलार करता था पर अब वो इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि बेटा तुम बिल्कुल मेरी उस बहन की ही तरह हो मैं जब भी तुम्हे कहीं देखता हूं तो देखता ही रह जाता हूं और इतना कहते कहते उस अजीब और डरावने से दिखने वाले आदमी का चेहरा आंसुओं से भीग चुका था कि तब तक हमारे सामने सुबह की पहली बस आ चुकी थी। अब मैं उस अजीब पर सज्जन आदमी से ढेर सारी बातें करना और सांत्वना देना चाह रही थी पर वो हमें जल्दी जल्दी बस में बैठाकर अपना पिता तुल्य आशिर्वादित हाथ मेरे सिर पर रखकर ये समझाने लगे कि बेटा तुम घर से कहीं बाहर निकलते वक्त इतना सारा सोना पहन कर मत निकला करो उनकी बातें अभी पूरी नहीं हुई थी कि बस चल पड़ी और वो भीगी पलकों के साथ बस से नीचे उतर गये।
मैं जल्दी किसी भी बात पर न रोने वाली उस अजीब आदमी के लिए भावविभोर होकर फफक कर रो रही थी। अब वो अजीब आदमी इस दुनिया में नहीं है पर उसकी सुंदर स्मृतियों ने मेरे मन मस्तिष्क में घर बना लिया है जिसमें इस निश्चय विचार का निवास रहता है कि मैं अब किसी के शक्ल. सूरतए पहनावे या चाल ढाल को देख इतने शिघ्रता से उसे अजीब आदमी का दर्जा नहीं दूंगी और लोगों केअच्छाई बुराई को परखने में इतना जल्दबाजी भी नहीं करूंगी।