Saturday, June 29, 2024
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बिहार मा चुनाव बा……….

 बिहार चुनाव का दंगल शुरू हो गया है। सियासी गलियारों में दलित वोट हांकने की कवायद शुरू हो गई है। ये जुदा बात है कि बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा ये मुद्दे पहले भी ज्वलंत थे और आज भी उतने ही ज्वलंत मुद्दे हैं, लेकिन इस बार नाराज युवा वर्ग ने बेरोजगारी के मुद्दे को अहम बनाया है और रोजगार की मांग की है। बिहार की हालत अब भी बुरी है। सड़कें गड्ढों से पटी पड़ी है बहुत से घर पानी में डूबे हुए हैं। बदबू और सड़ांध से लोगों का दम घुट रहा है और प्रशासन व्यवस्था निष्क्रिय है। चुनावी उम्मीदवार सीएम बनने का सपना तो देख रहे लेकिन वो अपने क्षेत्र की समस्याओं को नजरअंदाज किए हुए हैं। किसानों की बदहाली कोई आज की बात नहीं है और इनकी बदहाली खत्म होने का नाम नहीं ले रही आए दिन आत्महत्या और उस पर राजनीति। कुछ अच्छा होने की उम्मीद में किसान वोट का मोहरा बनते जा रहा है। बिहार में 96.5% किसान छोटे और मध्यम जोत वाले हैं इसके साथ ही काफी संख्या में बटाईदार और कृषि आधारित श्रमिक हैं। बहुत से किसान ऐसे भी हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली फसल उगा नहीं पाते और जो उगाते भी हैं उन्हें उसका समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता है। बाढ़ और सूखा यह आपदाएं किसान के ऊपर हमेशा से हावी रही है। यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार यह आम इंसान की मूलभूत जरूरतें है और एक अरसे से इसी बात को मुद्दा बनाकर वोटों की फसल काटी जा रही है और भी एक चलन आजकल कि जाति के आधार पर वोट बिक रहे हैं। दलितों, अल्पसंख्यकों को चुनावों के समय पर लुभाना और साथ ही उम्मीदवार भी जाति के आधार पर खड़ा करना राजनीति में पेशा बनता जा रहा है। किस नेता का कितना प्रभाव है और वह कितने वोट बटोर सकता है यह बात ज्यादा मायने रखती है।एक सर्वे के अनुसार लोगों से पूछा गया कि आपके लिए महत्वपूर्ण मुद्दा क्या है 49% लोगों ने रोजगार को मुद्दा बताया, 12.9% लोगों ने बिजली पानी सड़क को मुद्दा बताया, भ्रष्टाचार को 8.7% लोगों ने, 7.1% लोगों ने महिला सुरक्षा और 6.7 % लोगों ने शिक्षा को मुद्दा बताया। बिहार शीर्ष 8 राज्यों में शामिल है। जहां बेरोजगारी दर 10 से भी अधिक है, सिर्फ 12 नौकरी करते हैं और 56 स्वरोजगार पर निर्भर हैं। भारत में बेरोजगारी दर 3.8 %है, जबकि बिहार में यह 8.3% है। यही बात स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी है। नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में बिहार की खराब रैंकिंग नीति आयोग द्वारा पिछले वर्ष जारी रिपोर्ट में बिहार की सेहत की रैंकिंग 19 वीं थी। जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित की गई थी। का कारण
(1)   कुल प्रजनन दर
(2)  जन्म के समय नवजात का कम वजन।
( 3) खराब लैंगिक अनुपात
(4)  राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से मिले पैसों के स्थानांतरण में लिया गया समय
(5)  सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों के मानकीकरण में कोताही है।
इस रैंकिंग में बिहार को 33.69% अंक मिले थे। मगर अगले वर्ष यह 32.115% अंक रह गए। जीत किसी की भी हो लेकिन जनता के हालात सुधरेंगे क्याघ् उनकी मूलभूत जरूरतें पूरी होंगी। क्या यह सिर्फ वादों पर वोट की राजनीति होगी आये दिन कोई राजनेता मिलता है तो वह केवल समस्याओं पर चर्चा करता है। कोई युग अपनी समस्याओं के कारण नहीं प्रस्तुत किये गए समाधानों से महान होता है। ये लाइनें कवियत्री महादेवी वर्मा जी की हैं।