जब तक करोना के बचाव की वेक्सिन गाँव गाँव शहर शहर नहीं पहुँच जाती हैतब तक हर नागरिक को सरकार और विश्व स्वास्थ संघठन द्वारा बताये गए निर्देश का कड़ी से पालन करना हर नागरिक की व्यगती गत जिम्मेदारी होगी। करोना के भयानक संक्रमण कॉल और शीतलहर के बीच ठंड में कोरोना संक्रमण की दूसरी पारी फिर से यत्र तत्र सर्वत्र फैली हुई है। जिसने पहले ही संपूर्ण विश्व में मृत्यु और बीमारी का तांडव कर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। वर्ष 2020 को आने वाली कई सदी और उसके बाद कई पीढ़ियां एक त्रासदी वर्ष के रूप में याद करेगीद्ययह वर्ष निसंदेह आर्थिक सामाजिक एवं धार्मिक त्रासदी का रहा है। किसी वैज्ञानिक किसी अनुसंधान कर्ता या बड़ी.बड़ी दवाई की कंपनियों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि न दिखाई देने वाली यह बीमारी इतने बड़े शत्रु के रूप में मानवता का संहार करेगी। इस बीमारी कोविड.19 करोना की गिरफ्त में कई देशों के प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता, शासक, प्रशासक, डॉक्टर, नर्स, समाजसेवी या तो बीमार रहे या ईश्वर को प्यारे हो गए। ऐसी परिस्थितियों में विश्व के सारे राष्ट्र राग द्वेष भूलकर इसकी रोकथाम के लिए वैक्सीन के अनुसंधान में जुड़ गए, पर आज दिनांक तक कोई भी देश या दवाई की कंपनी और उसके वैज्ञानिक यह दावा करने में सक्षम नहीं है की वह सर्वाधिकार सुरक्षित वैक्सीन का इजाद कर चुके हैं। अभी भी पूर्ण सुरक्षित रेक्सीन आने में 1 से 2 माह लग सकते हैं या और भी ज्यादा, ऐसे में मानव को खुद की सुरक्षा का बीमा या जिम्मा स्वयं खुद को लेना होगा, अन्यथा करोना तो सामने खड़ा ही है, प्राण पखेरू उड़ाने के लिएए करोना से मृत्यु वैश्विक स्तर पर इतनी ज्यादा हो गई थी कि कब्रिस्तान और मरघट घाट भी लोगों के लिए कम पड़ चुके थे, अथक प्रयास करने से कुछ देशों में कोविड.19 की रफ्तार कुछ कम हुई थी,पर शीत काल के आते ही इसकी रफ्तार फिर तेज हो गई है। ऐसे में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की गाइडलाइंस का अनुपालन करने के अलावा कोई रास्ता ही शेष नहीं रह गया है।वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की गाइड लाइन निरंतर लोगों के बीच 2 गज दूरी मास्क लगाना जरूरी, लगातार हाथ धोने की आवश्यकता एवं अनावश्यक भीड़ में न जाकर एकांतवास रहने की सलाह देती रही है, भारतीय परिपेक्ष में स्थिति अत्यंत भयावह हो गई है। भारत के बड़े महानगरों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और मद्रास, हैदराबाद जैसे शहरों में कब्रिस्तान में जगह बाकी नहीं रह गई, हॉस्पिटल मैं बिस्तर, दवाई, पीपीइ किट का अभाव, सैनिटाइजर तथा मास्क का निरंतर अभाव बना हुआ था। उस पर डॉक्टर नर्स वर्ड बाय का अभाव चरम सीमा पर पहुंच चुका था। शीतकाल में कॉविड का खौफ इस कदर फैल चुका है कि करोना से मृतक लोगों के शव को छूने में उनकेपुत्र-पुत्री एवं नजदीकी रिश्तेदार भी हाथ लगाने से इनकार कर दिया और यहां तक की अंतिम संस्कार के बाद व्यक्ति की अस्थियों को भी ले जाने से इंकार कर दिया। इस तरह क्रिया कर्म से लेकर अस्थि संचय करने तक स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य तथा पुलिस प्रशासन ने मुस्तैदी से सभी कार्य संपादित किए। डॉक्टरों का कहना है की अस्थि से संक्रमण होने की कोई संभावना नहीं है, इसके बाद भी लोगों के मन में भय व्याप्त है कोविड की गाइड लाइंस के हिसाब से अंतिम संस्कार करने के लिए नगर निगमएस्वास्थ्य विभाग व पुलिस वाले आवश्यक किट पहनकर कर रहे हैं। 131 करोड़ की जनसंख्या वाले ईस देश में जहां प्रधानमंत्री ने भी टीवी उअर मिडिया में यह बता दिया है कि वैक्सीन कब तक आएगीए यह नहीं बताया जा सकता है। ऐसे में कोविड.19 गाइडलाइन के हिसाब से ही नागरिकों को अपनी सुरक्षा स्वयं करनी होगी क्योंकि जान है तो जहान है अन्यथा सहारा रुपया पैसा जमीन जाय जात, घोड़ा गाड़ी सब निरर्थक पड़े रह जाएंगे।आदमी को संयम और विवेक शील होकर सदैव मास्क लगाकर दो गज की दूरी रखकरए अपने आप को घर में ही रखकर घर को स्वर्ग बनाना है। क्योंकि एक संक्रमित व्यक्ति लगभग 5 लोगों को संक्रमण का तोहफा बांटता है। उस हिसाब से एक व्यक्ति सारे परिवार को संक्रमित करने का जिम्मेदार हो सकता है। इसलिए जिम्मेदार नागरिक बने है और लोगों को समझाइए, जान है तो जहान है। वरना आगे मौत का आह्वान है।
संजीव ठाकुर (लेखक कथाकार) रायपुर छत्तीसगढ़