Monday, April 28, 2025
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यह कैसा किसान आंदोलन?

भ्रष्ट होती राजनीति आज देश को पतन की ओर ढकेल रही है। जो पार्टियां चुनाव में जनता के द्वारा नकार दी जाती हैं, वह सत्तारूढ़ पार्टी के द्वारा बनाए गए हर कानून का विरोध करती नजर आती हैं। जब आर्टिकल 370 हटाया गया, सीएए बनाया गया और अब नया कृषि कानून बनने पर भी ये सभी विरोधी पार्टियां विरोध में ही खड़ी नजर आ रही हैं। लोकतंत्र की व्यवस्था में विरोधी पार्टियों का होना बहुत जरूरी है ताकि सत्तारूढ़ पार्टी निरंकुश होकर मनमानी न कर सके और उसके द्वारा उठाए गए गलत कदमों का संसद में विरोध हो सके। किंतु अब तो समस्या यह होती जा रही है कि ये विरोधी पार्टियां सरकार को कोई काम ही नहीं करने देना चाहतीं। ये नहीं चाहतीं कि सरकार की अच्छी छवि जनता के बीच बने और इसलिए उसके हर कदम की भरपूर निंदा और विरोध करने पर तुली रहती हैं। विरोधी पार्टियों के इस रवैये के कारण न तो देश का विकास संभव है और न ही देश की बड़ी.बड़ी समस्याओं का निराकरण। इसलिए अब तो लगता है कि शासन व्यवस्था का यह रूप देश के सर्वांगीण विकास के मार्ग को अवरुद्ध करता जा रहा है। आजकल देश में किसान आंदोलन जोरों पर है, किंतु इस आंदोलन का जो स्वरूप सामने आ रहा है उससे लगता है कि ये आंदोलन किसान आंदोलन न होकर एक राजनीतिक स्वार्थ से भरा आंदोलन बनकर रह गया है। आंदोलन के नाम पर आजकल दिल्ली और सरकार को घेरने का ट्रेंड चल गया है। किसानों को अन्नदाता कहकर उनसे झूठी हमदर्दी दिखाने वाले क्या सचमुच अन्नदाता का भला चाहते हैंघ् यदि ऐसा है तो उन्हें अधिक लाभ कमाने के अवसर देने के खिलाफ क्यों खड़े हैं| किसानों के मन में अनेकों भ्रम और शंकाएं पैदा की जा रही हैं, किंतु जो सच्चा किसान है वह वास्तविकता को समझता है और इसीलिए आज पंजाब और हरियाणा के अलावा देश के दूसरे हिस्से के किसान इस आंदोलन में शामिल नहीं हैं।
यह आंदोलन का कैसा विकृत रूप है जहां कुछ महिलाएं देश की जनता द्वारा चुने हुए प्रधानमंत्री की मृत्यु के गाने गा रही हैं। देश विरोधी लोगों के पोस्टर लगानाए खालिस्तान के पोस्टर लगाना यह दर्शाता है कि इस किसान आंदोलन को अब अल्ट्रा लेफ्ट संगठनों ने हाईजैक कर लिया है। स्वार्थी तत्व किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की फिराक में हैं और देश को हिंसा की आग में झुलसाने की चाल चली जा रही है।
आज जो नेता नये कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए पंजाब के किसानों के साथ खड़े दिखाई देते हैं उन्हीं में से कई नेता पहले इन्हीं कानूनों की प्रशंसा कर रहे थे। ये नेता केवल किसान आंदोलन का फायदा उठाकर चुनाव जीतना चाहते हैं। कांग्रेस खुद ही पूर्व में एम पी एम सी एक्ट में सुधार करने की बात करती रही है। अपने ही घोषणा पत्र में जनता से किए हुए वादों को भुलाकर वह विरोध कर रहे किसानों के पक्ष में खड़ी है। विरोध करने वाले कुछ राजनेता पहले कहते थे कि कांट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो किसान टेंशन फ्री हो जाएगा, किंतु अब कह रहे हैं कि कांट्रैक्ट फार्मिंग होगी तो पूंजीपति किसानों की जमीन पर कब्जा कर लेगा। ये पहले कहते थे कि प्राइवेट कंपनी आएंगी तो किसान मालामाल हो जाएंगेए अब कह रहे हैं कि किसान कंगाल हो जाएंगे। पहले कहते थे कि आढ़तिए किसानों को लूटते हैं, किंतु अब उन्हें किसानों का दोस्त बता रहे हैं। इन स्वार्थी नेताओं का ये दोहरा चरित्र केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण हैए उन्हें देश और देश की जनता के भले की कोई चिंता नहीं है। अपने शासनकाल में तो इन्होंने किसानों की समस्या का निदान करने के लिए कोई कारगर कदम उठाया नहीं और अब जब मोदी सरकार देश के किसानों को मजबूत बनाने का प्रयास कर रही है तो ये सरकार का विरोध कर सरकार की छवि जनता के बीच खराब करने का प्रयत्न कर रहे हैं और इन कानूनों को किसानों के लिए काला कानून बता रहे हैं।
सरकार बार.बार किसानों के साथ वार्ता कर रही है और उनकी शंकाओं तथा भ्रम को दूर करने का प्रयास व कानूनों में सुधार करने का आश्वासन भी दे रही है, किंतु पंजाब के किसान अपनी जिद पर अड़े हैं कि सभी कानून पूरी तरह निरस्त करने होंगे तभी वे आंदोलन वापस लेंगे। विदेशी ताकतें भी इस आंदोलन का फायदा उठाकर हमारे देश का अहित करना चाहती हैं और हमारे देश को बदनाम करना चाहती हैं। अभी तक देश के किसान परेशान होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे थे। अब सरकार उनकी स्थिति सुधारना चाहती है और उन्हें लाभ कमाने के ज्यादा अवसर देना चाहती है तो कुछ स्वार्थी तत्व ऐसा होने नहीं देंगे। यह कानून पूरे देश के किसानों के लिए है और देश के केवल एक हिस्से के किसानों की बात मानकर देश के बाकी हिस्सों के किसानों को उनके उज्जवल भविष्य से वंचित करना कहां तक सही होगा।

रंजना मिश्रा/ कानपुर, उत्तर प्रदेश