Monday, November 18, 2024
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आत्मसम्मान की रक्षा करें

गणित में बहुत कमजोर विद्यार्थी गणेश को एक दिन अध्यापक ने फिसड्डी कह दिया। बस, फिर क्या था? विद्यार्थी गणेश का अभिमान आहत हो गया। इस अपमान से, इस लज्जा से हमेशा के लिए बचने का एक उपाय ढूंढने लगा और पूरी लगन से गणित के अध्ययन में जुट गया। बहुत जल्द ही गणेश ने अपनी कमजोरी को दूर कर डाला और फिसड्डी कहलाने वाला वह विद्यार्थी एक दिन विश्वविख्यात गणितज्ञ बन गया। ऐसे कई महापुरुषों के जीवनवृत्त इतिहास के पृष्ठों पर हमें पढ़ने को मिल जाएंगे जो आत्मसम्मान के आहत होने पर ही अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रयत्नशील हुए थे।
जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं जब हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है, हमारा मानस आहत होता है, हम ग्लानि से भर जाते हैं और अपमान महसूस करते हैं। अगर हम अपने आत्मसम्मान की रक्षा नहीं कर पाते तो इसकी परिणति बहुत बुरी होती है। कई तो आत्मघाती कदम उठा बैठते हैं, आत्महत्या तक कर लेते हैं।
पत्नी द्वारा भत्र्सना किए जाने पर रामबोला का आत्मसम्मान अगर आहत न होता तो वह कभी भी गोस्वामी तुलसीदास बनकर प्रसिद्ध न होते। किंतु ध्यान देने योग्य तथ्य है कि उन्होंने आत्मसम्मान को खोया नहीं था, बल्कि उसकी रक्षा की थी। आज सम्मान के आहत होने पर उन्होंने इसे एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार किया था और अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रयत्नशील हुए। यह अलग बात है कि आज परिस्थितियों पहले से भिन्न हैं। दूसरों बात यह भी है कि आज पहले से लोग भी नहीं रहे, न वो एकनिष्ठा, सत्यता, धर्मपऱायणता एवं मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना ही रही है। फिर भी प्रयत्न से परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
स्वाभिमान के आहत होने पर हमको कुंठा अथवा हीनताग्रस्त नहीं होना चाहिए, अपितु आत्म प्रतिष्ठा प्राप्त करने की वृत्ति का अनुसरण करना चाहिए, अपने स्वाभिमान की स्थापना करनी चाहिए और आप यह भी जानते हैं कि स्वाभिमान तभी कायम रहता है जब आप आत्मनिर्भर हैं वरना इसके अभाव में आपका दृढ़ संकल्प लक्ष्य को भेदने में असमर्थ रह जाएगा। अतः पहले आत्मनिर्भर बनने का प्रयत्न करें क्योंकि आत्मसम्मान उसी का सुरक्षित है रहता है जो अपने पर निर्भर है, जिसे किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं, जो दूसरों का मुंह नहीं ताकता बल्कि अपने स्वाभिमान से जीता है। तभी तो माइकल रेनाल्ड्स कहते हैं कि- ‘आत्मनिर्भरता चरित्र का एक बड़ा मूल्यवान तत्व है।’
वह व्यक्ति सफल होता है जो कठिनाइयों, रुकावटें एवं गरीबी आदि की परवाह नहीं करता। अपने वातावरण एवं परिस्थितियों से हमें प्रेरणा प्राप्त होती है। यहीं से जीवन को सबल मिलता है। आत्मसम्मान के आहत होने पर सकीर्णता या नकारात्मक विचारधारा के पनपने का डर रहता है। जब व्यक्ति का आत्मसम्मान जाग उठता है तो वह व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा को गिराने वाला कोई काम नहीं करना चाहेगा। अगर ऐसा कोई अनुचित कार्य उससे हो भी जाए तो उसे बहुत पश्चाताप एवं दुख होता है। तभी तो बेकन ने कहा है कि- ‘आत्म सम्मान मनुष्य के दुर्गुणों को बस में रखने की पहली लगाम है।’
व्यक्ति को चाहिए कि वह अपमानित अथवा उपेक्षित होने पर आत्मघाती कदम न उठाएं, अपने को कुंठा का दास न बनाए, बल्कि ंउस हीनता को मिटाकर प्रतिष्ठित होने का, स्वयं अपने स्वामी बनने का प्रयोजन करें। कुंठा या हीनता हमें गर्त की ओर ले जाती है। इससे व्यक्ति का मानसिक पलायन होता है। अपने सम्मान की उपेक्षा होने के अवसर को हम अपनी प्रेरणा बनाएं और वह मार्ग अपनाएं जिसके द्वारा समाज में हम प्रतिष्ठित बन सके।
जीवन में हमें अनेक बार असफलता का मुंह भी देखना पड़ेगा और अब भी हम अक्सर असफलता से साक्षात्कार करते हैं। लेकिन आप कभी भी मन में ये भावनाएं न लाएं कि इस असफलता से हम मजाक का पात्र बनेंगे, लोग आपकी हंसी करेंगे और आप यह सोचकर निराश हो जाए। यह निराशा या कुंठा आपके लिए उचित नहीं है, अपितु आपको तो अधिकतम दृढ़ निश्चय के साथ सफलता प्राप्त करने की तैयारी करनी चाहिए। यह प्रतियोगिता प्रधान युग है। ऐसे में आप यह सोचकर निराश न हों कि ज्यादातर लोग आपसे अधिक संपन्न एवं शक्तिशाली हैं, वे साधन संपन्न और हर अवस्था में प्रतियोगिता जीतने वाले हैं, वे अधिक प्रतिभाशाली हैं। प्रतिभावान तो आप भी हैं, किंतु आपकी सोच नकारात्मक बन चुकी है जिससे आपका मनोबल डगमगा रहा है। आपको यह दृष्टिकोण अपनाना चाहिए कि किसी भी मुकाबले में मैं भी किसी से कम नहीं।’ बहुत से प्रतियोगी आप से कम प्रतिभावान होंगे, अतः आपकी सफलता निश्चित है। सफलता के अभाव में आत्मसम्मान की वृत्ति कुंठित ही रहती है। इसके चलते आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे क्योंकि आत्म्सम्मान की उपेक्षा करने वाला व्यक्ति उपेक्षित होकर रहना अपनी नियति समझ लेता है।
आपकी सफलता संदिग्ध नहीं। आवश्यकता है आत्मसम्मान अथवा आत्मप्रतिष्ठा के प्रति सचेत होने की। अपने जीवन को षून्य न बनने दें, अपितु अपनी ऊर्जा को आप सम्मान की रक्षा में लगाएं। जब आप आहट अभिमान से आत्मप्रतिष्ठा की ओर उन्मुख होंगे तो सफलता आपके और नजदीक आ जाएगी।
डाॅ. हनुमान प्रसाद उत्तम