Monday, November 18, 2024
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स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित पंचायत चुनाव में आरक्षण के हकदार नहीं – हाईकोर्ट

भारतीय संविधान में हर मुद्दे की व्याख्या – कार्यपालिका व न्यायपालिका द्वारा सख्ती से पालन सराहनीय – एड किशन भावनानी
भारतीय नागरिकों के लिए भारतीय संविधान एक अनमोल रत्न स्वरूपी है। जिसके बल पर हर नागरिक को अनेक अधिकार मिले हुए हैं, जिनकी स्पष्ट व्याख्या भी संविधान के हर अनुच्छेद में दी है और साथ ही साथ अनेक कर्तव्य और जिम्मेदारियां भी सौंपी गई है। जिसे हर नागरिक को निभाना उसकी जवाबदारी है। भारत वर्ष के हर राज्य केंद्र व केंद्रशासित प्रदेशों की कार्यपालिकाएं संविधान को सख्ती के साथ पालन कर खूबसूरती के साथ शासन चलाने में पूरी तरह कामयाब होती हैं और अपने शासन क्षेत्र में हर व्यक्ति पर हर आदेश समानता के साथ लागू करने और कुछ वर्गों को संविधान द्वारा प्राप्त सुविधाएं और प्राथमिकताओं को सजगता के साथ लागू करने में सफल हैं। साथ ही साथ न्यायपालिका क्षेत्र भी अपना हर निर्णय संविधान में उल्लेखित नियमों विनियमों और व्याख्या के अनुसार ही देते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है। हालांकि इस क्षेत्र को अनेक मामलों में अनेक डिस्क्रीएशनरी अधिकार भी होते हैं फिर भी हम सभी निर्णयों में देखते हैं कि, वे संविधान के अनुसार अनुच्छेद में लिखित, व्याख्या के आधार पर ही होते हैं। यही इस क्षेत्र की खूबसूरती है। पूरा शासन तंत्र भी संविधान से बंधा हुआ है यदि नागरिकों को अपने अधिकारों व हकों में रुकावट फोर्स या कोई अन्य विघ्न पड़ता दिखाई पड़ता है तो उसके लिए संविधान द्वारा ही प्रदत्त अधिकार उपलब्ध हैं न्यायपालिका क्षेत्र में जाकर अपना अधिकार प्राप्त कर सकता है और यह क्षेत्र भी संविधान की व्याख्या अनुसार ही हर नागरिक को उसका हक प्रदान करने में मदद करते हैं यदि उसका हक गैरसंवैधानिक है, तो उसे बेदखल भी कर दिया जाता हैl… इसी विषय से जुड़ा एक मामला बुधवार दिनांक 27 जनवरी 2021 को माननीय इलाहाबाद हाई कोर्ट में,कोर्ट क्रमांक 5 में, माननीय 2 जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी व माननीय न्यायमूर्ति डा योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की बेंच के सम्मुख रिट पिटिशन (सिविल) क्रमांक 21887/2020 याचिकाकर्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व दो अन्य, के रूप में आया जिसमें माननीय बेंच ने अपने 13 पृष्ठों और 29 पॉइंटों के अपने आदेश में पॉइंट नंबर 28 में कहा कि पंचायत इंस्टिट्यूशन में सीटों व पदों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 243 डी पॉइंट नंबर 9 के प्रावधानों के अनुसार होता है और इस प्रोविजन के अधीन स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को ऐसा आरक्षण नहीं है, जैसा के वर्तमान रिट पिटिशन में याचित किया गया है। आदेश कॉपी के अनुसार, बेंच ने याचिका खारिज कर दी है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित पंचायत चुनाव में आरक्षण का दावा किया गया है। एक याचिकाकर्ता ने, जिला अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में पहले जिला पंचायत चुनाव क्षेत्र गांगिरी के चुनाव में स्वतंत्रता सेनानी पर निर्भर रहने के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने का भारत सरकार को निदेश देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर की। माननीय बेंच ने इस संबंध में कानूनी स्थिति का विश्लेषण करने के बाद रिट याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि पंचायतों के विषय-विषय पर संविधान के भाग 9 के अधीन चर्चा की गई है। संविधान संशोधन का उद्देश्य और भाग 9 को शामिल करने का उद्देश्य,ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के तेजी से कार्यान्वयन के लिए सुदृढ़, प्रभावी और लोकतांत्रिक स्थानीय प्रशासन स्थापित करके पंचायत प्रणाली को एक संवैधानिक आधार प्रदान करके मजबूत बनाना था। ताकि पंचायत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक की जीवंत इकाइयां बन सके। इसके अलावा, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश क्षेत्र्, क्षेत्र् पंचायत और जिला पंचायत अधिनियम 1961 के प्रावधानों पर भी विचार किया और निर्णय दिया कि वह अधिनियाम, 1961 में वर्णित सांविधिक प्रावधानों और अनुच्छेद 243 डी के अधीन उपबंधों के संबंध में स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए आरक्षण या कार्यालयों के आरक्षण पर विचार नहीं करता। अदालत ने अनुसूचित जाति/जनजाति और महिला को पंचायत प्रणाली में आरक्षण देने के कारण और उद्देश्य का पता लगाया। पंचायत राज संस्थाएं बहुत समय से अस्तित्व में हैं, वे अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं जैसे कमजोर वर्गों के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के कारण कई कारणों से व्यवहार्य और उत्तरदायी लोगों के निकायों का दर्जा और सम्मान प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाए हैं। अनुच्छेद 243 डी के अधीन आरक्षण देने का विचार यह सुनिश्चित करना है कि समाज के कमजोर वर्गों द्वारा न्यूनतम सीटें प्रदान की जाएं और उन्हें भर दिया जाए ताकि वे पंचायत संस्थाओं के तीनों स्तरों पर स्थानीय स्वशासन में अपने हितों की रक्षा कर सकें। यह और भी कारण है कि लकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के कारण ही समाज के कमजोर वर्गों को सशक्तता प्रदान की जा सकती है। न्यायालय ने उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया कि याची पंचायत संस्थानों में स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को आरक्षण देने या आरक्षण देने में किसी तर्क या गठजोड़ को प्रदर्शित करने में विफल रहा है और यदि इस संबंध में संविधान या 1961 के अधिनियमों में कोई प्रावधान नहीं है तो रिट याचिका का कोई कानूनी आधार नहीं है।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ एड किशन भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र