Saturday, June 29, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » पहला वैलेंटाइन डे

पहला वैलेंटाइन डे

कमल से मेरी मुलाकात मेरी सहेली निशी के घर पर हुई थी। कमल निशी का कजिन था और वह उसके घर कुछ दिन घूमने के लिए आया हुआ था। आज हमे मिले हुए एक साल होने को आया लेकिन लगता है कि जैसे कल की ही बात है। मैं हमेशा की तरह निशी निशी चिल्लाते हुए उसके कमरे में घुसी ही थी कि निशी के कमरे में एक अनजान व्यक्ति को देखकर मैं एकदम चुप हो गई। अब वो व्यक्ति और मैं एक दूसरे को देख रहे थे कि तभी निशी आ गई। “अरे नंदिता तुम कब आई?” मैं कुछ बोली नहीं बस आंखों से उस अनजान व्यक्ति की ओर इशारा कर दिया। निशी बोली, “अरे, इनसे मिलो यह मेरे कजिन कमल हैं।” हम दोनों का परिचय हुआ। कमल ने मुस्कुराते हुए मुझे “हेलो” कहा और कमरे के बाहर चला गया।
निशी के घर से जब वापस लौटी तब कमल के बारे में सोचने लगी। बहुत आकर्षक नहीं मगर दिल को पसंद आये ऐसा व्यक्तित्व था उसका। उसकी हंसी लुभाने वाली थी।उसकी मुस्कुराहट में कोई जादू था। मैं उस मुस्कुराहट को भूल नहीं पा रही थी। वह मुस्कुराहट मेरे दिलो-दिमाग पर हावी हो गई थी। मैं अगले दिन जानबूझकर निशी के घर गई। कमल हॉल में ही बैठा हुआ था। वह मुझे देख कर मुस्कुराया और “हेलो” कहा। मैंने भी जवाब में सिर हिला दिया और वहीं खड़ी रही। मेरी आंखें निशी को ढूंढ रही थी। तब कमल ने कहा कि वह अपने रूम में है और मैं मुस्कुराते हुए निशी के रूम की ओर बढ़ गई जबकि मुझे पता रहता था कि निशी अपने रूम में होती है फिर भी जानबूझकर मैं निशी को ढूंढने के बहाने हॉल में ही खड़ी रही ताकि कुछ बातचीत का सिलसिला शुरू हो। थोड़ी देर तक मैं निशी के पास बैठकर कॉलेज की और इधर उधर की बातें करके घर वापस आ गयी। मैं समझ नहीं पा रही थी कि कमल क्यों मेरे दिलो दिमाग पर इतना हावी हो रहा था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था तो फिर अब क्यों हो रहा है? अगले दो दिनों तक मैं व्यस्त रही। रिश्तेदारी में शादी थी तो उसी में व्यस्त रही। दो दिन बाद जब निशी के घर गई तो कमल नहीं दिखा। मैंने निशी से पूछा, “क्या बात है घर में सन्नाटा क्यों है?”
निशी:- क्या मतलब?
मैं:- “मतलब तेरा कजिन गया क्या?”
निशी:- “हां, वह तो परसों ही चला गया। क्यों कुछ काम था क्या उससे?”
मैं:- “नहीं…. नहीं… मुझे क्या काम होगा उससे। वह तो बस ऐसे ही पूछ रही थी।”
निशी:- “हां कमल भी तेरे लिए पूछ रहा था कि तुम आई क्यों नहीं? तब मैंने उसे बताया कि तुम बाहर गई हो और दो दिन बाद आने वाली हो।”
मुझे निशी के ऊपर गुस्सा आ रहा था कि उसके जाने के बारे में उसने मुझे बताया क्यों नहीं। फिर खुद से ही कह बैठी कि निशी को क्या मालूम था मेरे मन का जो वह मुझे कुछ बताती और कमल से भी इतनी बातचीत कहां हुई थी कि वो मुझे अपने आने जाने के बारे में कुछ बताता लेकिन इस तरह अचानक चला गया कि कुछ मालूम ही नहीं पड़ा। खैर… मैं अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गई और फिर मेरी एग्जाम भी करीब आ रही थी।
मैं कुछ नोट्स लेने निशी के घर पहुंच गई। हमेशा की तरह मैं आवाज लगाते हुए उसके कमरे की ओर जाने लगी कि मैं कुछ देर तक पलके झुकाना भूल गई। मुझे यकीन नहीं हुआ अपनी आंखों पर कि सामने कमल खड़ा है। उसने मुस्कुराकर मुझे “हेलो” कहा और निशी के कमरे की ओर इशारा किया। मैं मुस्कुराते हुए ऊपर चली गई। कुछ देर में कमल भी वहीं आ गया। बातचीत शुरू करने के लिए लिहाज से उसने पूछा कि, “आप लोगों की पढ़ाई कैसी चल रही है? एग्जाम की क्या तैयारी है?” हम दोनों हंस पड़े और कहने लगे , “राम भरोसे चल रही है, बहुत पढ़ाई बाकी है, कोर्स पूरा ही नहीं हो पा रहा और समय भी कम है।” बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए मैंने कमल से पूछा कि, “आप क्या करते हैं?”
कमल:- “मैं यहां की यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के लिए सिलेक्ट हुआ हूं और ट्रेनिंग के सिलसिले में आया हूं।” मैंने तुरंत ही पूछ लिया “कितने दिन चलेगी आपकी ट्रेनिंग?”
कमल:- “अभी एक हफ्ते तक तो यहां ही रहूंगा।” तभी निशी बोली कि चलो शाम को बाहर चलते हैं। ऐसे ही घूम कर आएंगे हम लोग। हम दोनों ने हामी भर दी।
हम लोग मार्केट में विंडो शॉपिंग करते हुए एक रेस्तरां में पहुंचे। निशी ने कोल्ड ड्रिंक, मैंने और कमल ने कॉफी आर्डर की। मैंने नोटिस किया कि कमल कनखियों से मुझे देखता रहता था। मैं मन ही मन मुस्कुरा दी। मुझे अच्छा लग रहा था यह सब। मगर मैं अपने मन की बात उससे कैसे कहूं और कह भी दिया तो पता नहीं कमल क्या सोचेगा मेरे बारे में? क्या पता मेरे लिए वैसे भाव उसके मन में ना हो जैसे मेरे मन में हैं? मैं किस तरह उसके सामने अपनी बात रखूं? कहीं उसने मना कर दिया तो? यही उथलपुथल मेरे दिमाग में चल रही थी कि निशी जोर से बोली, ” अरी ओ अम्मा कहां गुम हो गई? तेरी कॉफी ठंडी हो गई है। घर नहीं चलना है क्या? आठ बजने वाले हैं।” मैं हड़बड़ा कर उठ गई और उन दोनों के साथ हो ली।
कमल मुस्कुरा रहे थे और मैं झेंप गई थी। घर आकर किसी काम में मन नहीं लग रहा था। दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी कि कमल को कैसे दिल की बात बताऊं। कुछ दिन बाद वैलेंटाइन डे था हालांकि अब तक मेरे लिए वैलेंटाइन डे का कोई मतलब नहीं था लेकिन यह मौका ऐसा था कि मैं मेरे प्यार का इजहार कर सकती थी लेकिन कमल के मना कर देने का डर भी था। वैलेंटाइन डे वाले दिन मैं निशी के घर गई। गुलाब का फूल मैंने बैग में छिपाकर रख दिया था कि कहीं निशी ने देख लिया तो वह दस सवाल करेगी लेकिन जब मैं उसके घर पहुंची तो वह नहीं थी। कमल ने बताया कि वह मार्केट कुछ सामान लेने गई थी और उसे आने में आधा घंटा लग जाएगा। अंधे को क्या चाहिए दो आंखें और मैं खुश हो गई। मैं कुछ देर तक वहीं बैठी रही फिर जब घर वापस आने के लिए चलने लगी तो कमल ने पीछे से मेरा हाथ थाम लिया और एक गुलदस्ता देते हुए उसने मुझे “आई लव यू” कहा और पूछा कि, “क्या तुम मेरा साथ पसंद करोगी?” मैं शरमा गई और गुलदस्ता लेकर जाने को हुई लेकिन कमल ने हाथ नहीं छोड़ा।
कमल:- “जवाब देकर जाओ।”
मैंने बैग में से अपना गुलाब निकाल कर उसे दिया। कमल ने गुलाब के फूल के साथ ही मेरा हाथ थाम कर अपने प्यार की मुहर लगाई। मैं हाथ छुड़ाकर बाहर की ओर दौड़ पड़ी। आज सब कुछ लाल लाल सा लग रहा था। सब तरफ रंग बिखरे हुए थे। यह मेरा पहला वेलेंटाइन डे था जो इतना प्यार से भरा भरा था।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी गुजरात