असत्य को मात देकर, सत्य जिस दिन विजयी बना। हमारे पूर्वज उस दिन को सदियों से एक हिन्दू पर्व के रूप में बडे़ हर्षोल्लास के साथ, होली के रूप में मनाते आ रहे हैं। होली के इतिहास में कई मत प्रचलित हैं, पर होली केवल सत्य का असत्य पर जीत को उल्लेखनीय नहीं बनाता, अपितु उन सभी जनमानस को सत्य की ओर उन्मुख करता है। जिनकी सत्य के प्रति गहरी आस्था है। वे लोग जो अधर्मी हैं| पापी हैं, भ्रष्टाचारी हैं आदि इस संदर्भ में आने वाले हर उस व्यक्ति के लिए होली एक सबक का त्योहार है। पर सोचनीय आज का किशोर, वयस्क, प्रौढ़ सभी लोग होली को एक नये नजरिये से देख रहे हैं। किशोर होलिका दहन में किसी का समान बिना अनुमति के उठाकर डाल देता। किसी के ऊपर गन्दा पानी फेंक देता, दूसरों की कपडो़ को फाड़ देता आदि कार्य कर होली के दिन को वह अनुचित बना देता है। चार . पांच वर्ष पहले इन सभी कार्यों को घटित होने पर लोग नजरंदाज कर देते थे। परन्तु अब मारपीट तक हो जा रहे हैं। बच्चों की कार्यों को यदि हम सामान्य समझकर छोड़ देते हैं। तो इसमें कोई दिक्कत मुझे नजर नहीं आता। वयस्क होली के दिन मदिरा का सेवन करता है, सेवन के पश्चात औरों को हानि पहुंचाता है और घर का मुखिया होली के दिन खीर पकवान न बनवाकर पशु पक्षियों की मांस को पसन्द करता है। इस दो अवस्थाओं का कार्य अस्पष्ट रूप से निन्दनीय है। यदि पहले और आज की होली में एक पंक्ति में अन्तर स्पष्ट करें। तो पहले की होली धार्मिक और अनाज की होली अधार्मिक हो गई है। एक सामान्य दिन की अपेक्षा होली के दिन अब अधिक अधर्म हो रहा है।