तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के आंकड़े एक बार फिर देश की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकते हैं। मुख्यमन्त्रियों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने देश में पुनः लॉकडाउन की सम्भावना को भले ही सिरे से खारिज कर दिया हो परन्तु कोरोना संक्रमितों की संख्या का आंकड़ा जिस गति से बढ़ रहा है वह बेहद चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा 9 अप्रैल की सुबह जारी आंकड़ों के अनुसार 24 घण्टे में 1,31,968 नये मामले सामने आये और 780 लोगों की मृत्यु हो गयी। इस तरह से देश में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या एक 1,30,60,542 हो गयी है। जो निरन्तर बढ़ रही है। वहीं कोविड-19 से अब तक मरने वालों का आंकड़ा 1,67,642 पर पहुँच गया है। यद्यपि इस बीमारी से लड़कर ठीक होने वालों की संख्या भी 1,19,13,292 हो गयी है। जो राहतकारी है परन्तु सन्तोषजनक नहीं है। शोध से पता चला है कि कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ज्यादा शक्तिशाली और जानलेवा है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को आसानी से पार कर सकता है। इसलिए अब नौजवानों के लिए भी कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। कोविड-19 की दूसरी लहर में कई नये लक्षण भी सामने आये हैं। जिनमें बुखार, शरीर में दर्द, गन्ध और स्वाद न मिलना, ठण्ड लगना, साँस फूलना, दस्त, उल्टी, पेट में ऐंठन और दर्द आदि हैं। इसके अलावा आँखों का गुलाबी होना या आंख आना भी कोरोना संक्रमण का लक्षण है। इसमें आँखें लाल हो जाती हैं, आखों में सूजन बढ़ने के साथ पानी भी आने लगता है। कोविड-19 का संक्रमण सुनने की क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है।
देश में कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र को पहले स्थान पर तथा छतीसगढ़ को दूसरे स्थान पर बताया जा रहा है। जबकि उत्तर प्रदेश और दिल्ली क्रमशः तीसरे और चैथे स्थान पर हैं। वहीं चुनाव वाले राज्य पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु तथा केन्द्र शासित प्रदेश पुदुच्चेरी में कोरोना संक्रमण की नियन्त्रित स्थिति आश्चर्यचकित करती है, जहाँ कोविड नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ रही हैं। बड़ी-बड़ी चुनावी सभाओं में उमड़ती लाखों की भीड़, हजारों लोगों के साथ नेताओं का रोड शो, न मास्क, न शारीरिक दूरी। फिर भी इन राज्यों में कोरोना के मामले महराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के मुकाबले बेहद कम आना स्वास्थ्य मन्त्रालय की नीति-रीति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। महाराष्ट्र में जहाँ 24 घण्टे में कोरोना संक्रमण के 56,286 नये मामले दर्ज हुए वहीँ चुनाव वाले राज्य केरल में 4,353, तमिलनाडु में 4,276, पश्चिम बंगाल में 2,783, पुदुच्चेरी में 293 तथा असम में मात्र 245 मामले सामने आये हैं। इससे तो यही सिद्ध होता है कि या तो मास्क और शारीरिक दूरी का कोरोना से कोई सम्बन्ध नहीं है या फिर इन राज्यों के सही आंकड़ों को जान बूझकर छुपाया जा रहा है। आम आदमी की भलाई और सुख-समृद्धि का डंका पीटते हुए सता की अन्धी दौड़ में भागते राजनीतिक दलों के द्वारा आम जन के स्वास्थ्य के साथ खुलमखुल्ला खिलवाड़ करना उनकी नीति और नियत की स्वतः पोल खोल देता है। ऐसे में यदि स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी किसी कोरोना संक्रमित मरीज के साथ लापरवाही बरतते हैं तो इसमें आश्चर्य कैसा? ताजा मामला मध्य प्रदेश के सतना जिले का है। जहाँ स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से किसी आम आदमी की नहीं बल्कि अपर सत्र न्यायाधीश की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गयी। कोविड वार्डों में कोरोना संक्रमितों के साथ स्वास्थ्य कर्मियों की असंवेदनशीलता तथा लापरवाही के आरोप बहुत पहले से लग रहे हैं। जिससे आम आदमी का इनसे भरोसा टूटना स्वाभाविक है। हालाकि सभी स्वास्थ्य कर्मी एक जैसे नहीं हैं। अपनी जान की परवाह किये बिना मरीजों की जान बचाने वालों की संख्या लापरवाहों की अपेक्षा बहुत अधिक है। अनेक स्वास्थ्यकर्मी तो दूसरों की जान बचाते हुए स्वयं कोरोना की चपेट में आकर जीवन से ही हाँथ धो बैठे। ऐसे जाबाज कर्मियों के कारण ही यह देश बिना किसी टीके और दवा के इस गम्भीर बीमारी से लड़ने में सफल रहा। मुख्यमन्त्रियों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमन्त्री ने कहा भी कि देश ने बगैर टीके के कोविड-19 से लड़ाई जीती है। अब तो हम ज्यादा संसाधनों से युक्त हैं तो दूसरी लहर को काबू करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। अपने सम्बोधन में उन्होंने कोविड-19 के प्रबन्धन पर जोर देने की बात कही है। अब प्रश्न उठता है कि इस प्रबन्धन का घटक कौन-कौन है? क्या केवल स्वास्थ्य महकमे के ऊपर ही सारा दारोमदार टिका हुआ है? क्या चुनावी सभाएं और रोड शो करने वाले नेताओं की इसमें कोई भूमिका नहीं है? क्या चुनाव के नाम पर आम आदमी के जीवन के साथ इस तरह से खिलवाड़ करना किसी भी दृष्टि से जायज कहा जा सकता है? क्या चुनाव प्रचार के अन्य विकल्पों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है? ऐसे अनेक सवाल कोविड-19 की प्रबन्धन शैली पर खड़े होना स्वाभाविक है। जिनका जवाब शायद ही किसी के पास हो। अन्ततोगत्वा यही कहा जा सकता है कि आम जन को अपनी सुरक्षा के प्रति स्वयं ही सजग होना पड़ेगा। मास्क और शारीरिक दूरी की अनिवार्यता का अनुपालन कानून के भय से नहीं बल्कि अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति जागरूक होकर करना चाहिए। साथ ही बिना किसी झिझक एवं किन्तु-परन्तु के शीघ्रातिशीघ्र कोरोना की वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए। देवताओं के लिए दुर्लभ मानव जीवन अनमोल है। इसलिए हमें स्वयं ही अपनी सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनना पड़ेगा।