प्रकृति ने फलों एवं सब्जियों को कई स्वादों में बांटा है। हर फल-सब्जी का अपना महत्व, गुण है। बहुत से लोग करेला खाने से हिचकते हैं, क्योंकि यह कड़वा होता है। लेकिन इस कड़वे करेले में कुदरत ने ऐसे गुणों को पिरोया है, जो मानव जिस्म के लिए हर दृष्टि से लाभप्रद हैं।
कनाडा के चिकित्सकों के अनुसार करेले के विषेष गुण इसके तीखेपन तथा कडुएपन में होता है। कडुएपन के कारण यह रोग में श्रेष्ठ औषध है। इसमें नैसर्गिक इंसुलिन की मात्रा भी मिलती है जो मधुमेह के रोगियों को नवजीवन प्रदान करती है।
विगत दिनों की जानकारी के मुताबिक इसमें गंधयुक्त उड़नषील तेल, कैरोटिन, मोमारिडिस, सपोनिन नामक क्षार भी होता है। इसके बीज में 36 प्रतिषत विरेचक वसा होती है।
आयुर्वेद की दृष्टि से यह सौ गुणों से भरपूर है। चरक के अनुसार यह षीतल होता है। जापान में करेले को ‘क्रोकरा’ नाम से जाना जाता है। वहां आम की तरह इसके रस को चूसा जाता है। दरअसल वहां करेले की नस्ल आम की भांति ही होती है।
इसमें लोहा, तांबा, फास्फोरस तथा कैल्षियम पर्याप्त मात्रा में होने से यह अस्थि विकास एवं रक्त-निर्माण के लिए आवष्यक औषध है।
करेले में कितने गुण छिपे हैं, षायद आप भली भांति नहीं जानते। इसके देष-विदेष में परखे चुनिंदा गुण इस प्रकार हैं-
-इसका रस बच्चों के पेट के कीड़े भी निकलता है।
-हैजा एवं कब्ज में इसकी सब्जी लाभप्रद है।
-इसके रस से आंखों की मालिष करने से नेत्र रोग ठीक होते हैं।
-इसका रस बवासीर के रोगियों को भी लाभ पहुंचाता है।
-जल जाने पर घाव हो जाता है, उस पर करेले को पीसकर उसकी पुल्टिस बाधें।
-इसके पत्ते का रस गंजे सिर पर मलने से गंजापन दूर होता है।
-गठिया की स्थिति में इसके रस को षूल एवं सूजन पर लेप करें तथा इसकी सब्जी, भुर्ता तथा सूप लें। प्रतिदिन इसकी सब्जी खाने से खून का रंग साफ होता है।
-इसकी जड़ को पीसकर योनि में लगाने से गर्भाषय अपने स्थान पर आ जाता है।
-इसके फूल तथा अदरक का रस सम मात्रा में नाक में डालें, हिस्टीरिया की बेहोषी दूर होती है।
-बुखार के बाद इसके भुर्ते में सेंधानमक तथा कालीमिर्च डालकर खाने से अरुचि मिटती है तथा भूख खुलकर लगती है।
-इसमें पोटैषियम की प्रचुरता होने से यह गुर्दे संबंधी समस्त रोगों , उच्च रक्तचाप, हृदय रोग में लाभप्रद है।
-इसका भूर्ता खाने से गले की खिच-खिच एवं खांसी में लाभ होता है। -डाॅ. हनुमान प्रसाद उत्तम