कानपुर। कोविड से लड़ने में हमारी क्षुद्राताएं सामने आ गयी हैं।आस पड़ोस में कोई बुजुर्ग मरता है तो पड़ोसी अपनी खिड़की दरवाजे बंद कर लेते हैं। ऐसा जताते हैं कि उन्हें पता ही नहीं। घर वाले किसी तरह शव को एम्बुलेंस तक पहुंचाते हैं।कोरोना सिर्फ़ इंसान को ही नहीं हमारे रिश्तों को भी संक्रमित कर रहा है।इस महामारी में आदमी के साथ ही रिश्तों की भी मौत हो रही है।संक्रमित होते ही अपने पराए होते जा रहे है। सामाजिक रिश्तो की परिभाषा ही बदल गयी है।इस भयानक संकट के दौर ने समाज की सारी विद्रूपताए चौतरफ़ा उग आयी है। जीवन के मायने बदल गए है।मौत सिर्फ़ अंकगणित हो गयी है।हमारी संवेदनाएँ मर गयी है। लोगों का असमय जाना भी अब पथराए मन को परेशान नहीं करता। इस संकट में हम एक दूसरे से शारीरिक रूप से नहीं मानसिक रूप से भी दूर हो गए है।लगता है कोरोना के बाद की दुनिया और भयावह होगी। इसका उदाहरण कानपुर में 78 वर्षीय बृज श्रीवास्तव के रूप में मिला, जिसकी सुध ना तो उनके परिवार ने ली और ना पड़ोसियों ने।इस शताब्दी की शुरुआत से हम पानी के लिए लड़ रहे थे।अब हवा के लिए जंग हो रही है।हवा की भी कालाबाज़ारी हो रही है।कफ़न चोर तो पकड़े ही गए है।दवाएं ब्लैक में मिल रही है।बूढे मॉं बाप अगर इस महामारी से बच भी गए तो बच्चे उन्हे घर ले जाने को तैयार नहीं है।मरने वालों के परिजन उसका शव लेने नहीं आ रहे है।भरापूरा परिवार होने के वावजूद व्यक्ति का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह हो रहा है।अस्पताल की जगह श्मशान का विस्तार हो रहा है।एक आत्मीय के जाने के आंसू रूकते नही।तब तक दूसरे की खबर आती है।लग रहा है हम एक बड़े श्मशान में बैठे है।जो इसके बाद हवा पानी के लिए युद्ध भूमि में तब्दील होगा। सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते है।तस्वीर भयावह है।हैदराबाद के एक अस्पताल के कोरोना वार्ड के पैंतीस मरीज़ ठीक हो गए। पर उनके परिजन रिश्तेदार उन्हें लेने नहीं आए, क्योंकि घर में छोटे बच्चे हैं परिवार जोखिम नहीं लेना चाहता। मथुरा के गोवर्धन में एक बेटी बुखार के चलते मृत अपने पिता की अर्थी को कंधा देने के लिए गुहार करती रहीए बिलखती रहीए मगर पड़ोसियो ने दरवाजे बंद कर लिए। उन्हे पहचानने से इंकार कर दिया। अंततरू पुलिस आईए शव का अंतिम संस्कार कराया। लखनऊ में यही संकट पत्रकार बिरादरी को देखना पड़ा। देश के नामचीन पत्रकार रहे एसपी सिंह के भतीजे चंदन प्रताप सिंह की लखनऊ में कोरोना से मौत हुई। गोमतीनगर के उनके घर में उनकी कोरोना से मृत देह बैकुंठ धाम जाने के लिए चार कंधों का इंतजार करती रही, मगर कोई नही आया। न परिवार। न रिश्तेदार।