हाथरस। जनपद के गांव की 73 बर्षीय वृद्ध महिला 32 साल से अलग-अलग न्यायालय की ठोकरें खाने को मजबूर है, लेकिन उसे न्याय नहीं मिल रहा। यह वृद्धा किसी और के साथ नहीं अपनी ननद के अधिकारियों को धोखा देकर फैलाए जाल का शिकार बन कर रह गई । इस व्रद्ध महिला ने न्याय की गुहार लगाते हुए अपने पति को खो दिया। लेकिन उसे न्याय नही मिला, वृद्धा की माने तो मरने से पहले बस यह चाहती है कि, उसे न्याय मिले और जालसाजी करने वाली उसकी ननद को गलत करने का पश्चाताप हो।आप को बता दें कि हाथरस की सासनी तहसील के गांव टिकारी निवासी 73 वर्षीय माया देवी, 32 साल से न्याय की तलाश में न्यायालय की ठोकरे खाने को मजबूर है। मायादेवी को किसी और से नही अपने ही परिवार धोका मिला है, 1986 में फर्जी वसीयत के आधार पर उनकी ननद ने उनके हिस्से की जमीन को हड़प लिया। बतादें की मायादेवी के ससुर गणपति की मृत्यु 1972 में हो गई थी, एक साल बाद उनके तीनों पुत्रों के नाम खतौनी में अंकित हो गए। लेकिन उनकी ननद ने 1986 में फर्जी वसीयत के दम पर उस खतौनी स्व मायादेवी के पति लाखन सिंह का नाम हटा कर अपना नाम दर्ज करा दिया। मायादेवी ने बताया कि जमीन के मामले में दफ्तरों के चक्कर काटते- काटने उनके पति लाखन सिंह थक गए थे। ये परेशान रहने लगे थे। इसी सदमे में वर्ष 2004 में उनकी मौत हो गई। तब गई तब से मायादेवी पैरवी कर ही है।चेहरे पर मायूसी, आंखों में आंसू लिए 72 वर्षीय मायादेवो की जमीन के मामले में बंदोबस्त अधिकारी, चकबंदी न्यायालय, हाथरस, अलीगढ़, लखनऊ,इलाहाबाद आदि के चक्कर लगाने को मजबूर है। मायादेवी के लिये न्याय की गुहार लगा यह अधिवक्ता संदीप ने बातया कि 1973 में उनके ससुर गनपति सिंह की मौत हो गई थी। मौत के साल बाद उनके तीन बेटे लाखन सिंह, चंद्रपाल सिंह और महावीर सिंह के नाम खतौनी में दर्ज हो गए। 1989 में उनकी ननद पुष्पा देवी ने फर्जी वसीयत तैयार कराकर उनके पति लाखन सिंह के हिस्से की 48 बीघा जमीन हड़प ली। उस समय उनका गांव अलीगढ़ जनपद की हाथरस तहसील में था। 1997 में हाथरस जिला बनने के बाद इनका गांव टिकारी सासनी तहसील में आ गया, अब जिलाधिकारी ने चकबन्दी अधिकारी को दिन प्रतिदिन सुनवाई कर सही साथियों के आधार पर इसी माह 22 तारीख तक न्याय करने के आदेश दिए है।