Thursday, November 28, 2024
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विश्व के लिए एक और खतरा

पिछले साल इजराइल और फिलिस्तान का युद्ध भी विश्व युद्ध का खतरे जैसी परिस्थितियों को पैदा कर चुका था लेकिन विश्व युद्ध से बच ही गया विश्व।
लेकिन अब क्या होगा जब रूस और यूक्रेन के बीच जो तनातनी चल रही हैं ये और भी ज्यादा खतरनाक हैं। यूक्रेन जो १९३९ के दौरान विश्व युद्ध में रशिया ने अपना बचाव यूक्रेन की और से ही किया था।पहले तक रशियन साम्राज्य था तब १९१७ में ये साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन स्वतंत्र हो गया लेकिन ३ साल बाद १९२० में वापस रशिया में शामिल हो गया।फिर १९९१ में विघटन हो रशिया १५ देशों में बंट गया। सोवियत यूनियन ऑफ रशिया में से अलग हुए देशों में से एक हैं।युद्ध के हालात का कारण क्या हैं? यूक्रेन को नेटो देशों में यानि कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन ,में सम्मिलित होना चाहता हैं। नाटो के सभ्य देशों में यू एस ए,कनाडा,ब्रिटन और दूसरे यूरोपियन देश भी हैं। नाटो एक सैन्य संगठन हैं।नाटो देशों और रशिया के बीच कभी भी युद्ध हो सकता हैं,जबकि रशिया को चीन का पूरा समर्थन हैं।और फ्रांस के प्रेसिडेस्ट मैक्रो भी रशिया में हैं और वहां शांति के लिए शायद अनुरोध कर बातचीत कर रहे हैं जो अमेरिका को शायद पसंद नहीं आएगा।
यूक्रेन की सैन्य ताकत, रशिया की सैन्य ताकत के सामने कुछ भी नहीं हैं। यूक्रेन की सैन्य ताकत ११ लाख हैं जहां रशिया के पास उनसे कई गुना बड़ा सैन्य और सैन्य के आयुध हैं ।इतने सशक्त देश के साथ भिड़ने की हिम्मत यूक्रेन की अमेरिका के जोर पर ही शक्य हैं।उसमे अमेरिका का भी फायदा हैं,जीतने युद्ध होंगे उतने हथियारों की बिक्री होगी और गर्त में जा रही अर्थव्यवस्था संभालना आसान हो जायेगा।अभी भी रशिया के १ लाख २५ सैनिकों ने यूक्रेन की ४५० किलोमीटर की सरहद को घेर रखा हैं।
ब्लैक सी में भी युद्ध पोत न्यूक्लियर वेपंस के साथ तैनात कर दिया हैं। ड्रोन्स भी तैयार खड़े हैं कि मौका मिलते ही हमला कर सके।ऐसे पूरे यूक्रेन को चारों और से रशिया ने घेर रखा हैं।बीजिंग में विंटर ओलंपिक के ओपनिंग सेरेमनी में हिस्सा लेने रशिया के वाल्दमेर पुतिन चीन में थे जहां शी जिन पीन के साथ महत्वपूर्ण बैठक हो चुकी हैं।अब यूक्रेन की मदद के लिए नाटो देश मदद करने के लिए तैयार बैठे हैं। क्यों नहीं चाहता रशिया यूक्रेन को नाटो देशों में सम्मिलित होने देना?रशिया में से अलग हुए दूसरे देश जैसे कि एस्टोनिया और लातमिया जैसे देश दूसरे देशों की तरह नाटो में शामिल हो चुके हैं।अब अगर यूक्रेन भी नाटो में मिल जाता हैं तो रशिया की पश्चिमी सीमा पारदर्शक हो जायेगी।वैसे भी रशिया के आसपास के जितने भी देश नाटो में सम्मिलित हैं उतना ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के पांव रशिया की सरहदों के नजदीक आ सकते हैं।अमेरिका चाहता भी यहीं हैं की रशिया के आसपास के देश नाटो में सम्मिलित हो जाए तो कभी भी लड़ाई होगी तो नाटो देश भी उस युद्ध में सम्मिलित हो सके। और इन हालात में रशिया के लिए खतरा बढ़ जाता हैं।चारों और से रशिया नेटो देशों से घिर जायेगा।रशिया के अस्तित्व के लिए यूक्रेन का नेटो में जुड़ना एक खतरे की घंटी हैं।अब सुपर पावर बनने की होड़ में अमेरिका और रशिया के साथ साथ चीन भी दावेदारी कर रहा हैं।अपनी गलत नीतियों का प्रयोग कर ’येन केन प्रकारेण’ चीन को महासत्ता बनना हैं ये चीन की साइबर, डेट पॉलिसी और बायोलॉजिकल हथियारों के विकास से साबित हो रहा हैं।और आज के हालात में वह रशिया के साथ खड़ा हैं।
वैसे जब यू एस एस आर था तो यूक्रेन उसी में शामिल था लेकिन गर्बाचोव की ग्रासनोस्त की नीति के बाद जब यू एस एस आर टूटा तोअन्य १५ देशों के साथ साथ यूक्रेन भी आजाद हो गया था।
वैसे तीसरे विश्व युद्ध भी कह सकते हैं,क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोपियन देशों का सीधे ही कोई युद्ध में इन्वॉल्वमेंट नहीं हुई हैं। वैसे आज कल शीत युद्ध तो शुरू रहता ही हैं,जिसमे साइबर वार,सेंक्शंस वार ,ट्रेड वार और डिप्लोमेटिक वार शामिल हैं।
अगर युद्ध हुआ भी तो भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर होगा क्योंकि यूक्रेन से खाद्य तेल आदि का आयात करते हैं तो रूस से ६०% हथियारों की आयत होती हैं तो अमेरिका के साथ भी भारत के डिप्लोमेटिक रिश्ते अच्छे ही हैं।युद्ध का असर पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था पर असर होगा।अभी यूक्रेन में भारत के २०००० लोग रह रहे हैं जिस में १८००० तो मेडिकल छात्र ही हैं।उनको अगर बाहर निकलना हैं तो उनका डाटा तैयार करना आवश्यक बन जाता हैं।
वैसे भी भूमि के लालच में हुए युद्ध बर्बादी ही लाते हैं।

जयश्री बिरमी
अहमदाबाद