हाथरस | कवि काका हाथरसी की एक कविता आज अचानक ही याद आ गई जो कि आज के हालातो पर फिट बैठती है| पार्टी बंदी हों जहाँ , घुसे अखाड़ेबाज़,मक्खी, मच्छर, गंदगी का रहता हो राज,का रहता हो राज, सड़क हों टूटी – फूटी,नगरपिता मदमस्त, छानते रहते बूटी,कहँ ‘ काका ‘ कविराय, नहीं वह नगरपालिका,बोर्ड लगा दो उसके ऊपर ‘ नरकपालिका | जी हां हम बात कर रहे है हाथरस की नगर पालिका की | जहाँ लगने थे वाटर एटीएम लेकिन वाटर एटीएम ना लगा कर नगर पालिका ने एक प्राइवेट संस्था से पानी खरीदा जब इस मामले की शिकायत तत्कालीन सांसद राजेश दिवाकर द्वारा जिलाधिकारी से की गई तो जांच के नाम पर आज तक उस पत्रावली को दबाए रखा गया है, आज भी वह जांच विचाराधीन है जबकि उक्त मामले में शासन अपने स्तर से कार्रवाई के लिए लगातार जिलाधिकारी महोदय हाथरस को आदेशित कर रहा है लेकिन पता नहीं किन कारणों से जिलाधिकारी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की ? यहां यह भी अवगत कराना है की इस मामले की पूर्व में जिला अधिकारी हाथरस द्वारा एक जांच कमेटी भी बना चुके थे जिस पर अपर जिलाधिकारी श्रीमती रेखा एस चौहान जांच भी कर चुकी है और वह अपनी जांच रिपोर्ट जिला अधिकारी हाथरस को प्रेषित भी करके जा चुकी थी जिस जांच रिपोर्ट में स्पष्ट अनियमितताएं और व्यवस्थाएं गलत पाई गई थी लेकिन उन्होंने भी अपनी स्पष्ट जांच रिपोर्ट नहीं दी थी? जिस कारण यह आज तक विचाराधीन है सांसद राजेश दिवाकर लगातार लिखते रहे शासन को लेकिन हुआ कुछ नहीं इसी दौरान उक्त मामले की पत्रावली की छाया प्रति बाजार में आ गई जब वे छायाप्रति हमारे संवाददाता के हाथ में आई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं जिस फर्म के नाम यह टेंडर हुआ था उस फर्म ने जमानत राशि तक जमा नहीं की और तो और चेयरमैन हाथरस उस पर लगातार मेहरबान रहे ? सुनने में आया है कि वह अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार भी हैं? हिंदुस्तान में पहली बार देखने को मिला है कि हाथरस नगर पालिका ने पानी पर भी टैक्स लगा दिया जबकि बहते हुए और लूज वाटर पर टैक्स नहीं है? हिंदुस्तान ही नहीं विश्व में प्रकाश, लूज वाटर, और हवा पर कोई भी टैक्स नहीं होता। जबकि नगर पालिका हाथरस ठेकेदार की मांग पर लगातार टैक्स दे रही थी? पत्रावली से देखकर स्पष्ट हुआ है कि उक्त ठेकेदार का इसी कार्य का दो बार अनुबंध हुआ? दोनों अनुबंधों में नगर पालिका के अधिकारी और चेयरमैन के साथ-साथ फर्म के प्रोपराइटर के भी हस्ताक्षर मौजूद है? अब यह सोचने वाली बात हे कि एक फर्म के एक ही काम के दो अनुबंध क्यों हुए? टेंडर आया कितने का? और हुआ भुगतान कितने का? अगर इस मामले की गहनता से जांच हो जाए तो बहुत बड़ा घोटाला उजागर होगा? इस घोटाले में गबन तो हुआ ही हुआ है? सरकार के साथ धोखाधड़ी भी की गई है? यह भी संज्ञान में आया है की तत्कालीन जांच अधिकारी जेपी सिंह अपर जिला अधिकारी हाथरस नगर पालिका हाथरस के अधिशासी अधिकारी को लगभग एक दर्जन पत्र फाइल मंगाने के लिए भेजते रहे लेकिन नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी जांच अधिकारी के समक्ष एक बार भी पत्रावली को लेकर नहीं पहुंचे? अब इस मामले की जांच जिला स्तर पर निष्पक्ष होना कैसे संभव है? जब जिलाधिकारी और जांच अधिकारी नगर पालिका हाथरस से उक्त भ्रष्टाचार की शिकायत संबंधी पत्रावली को तलब कर रहे हैं? लेकिन नगरपालिका उस पत्रावली को किसी को दिखाने के लिए तैयार ही नहीं है? अगर निष्पक्ष जांच हो तो इस मामले में कई लोग जाँच में दोषी पाए जायेंगे ? अब देखते हैं आखिर इस मामले में कोई कार्यवाही होती है या नहीं ?