Sunday, September 22, 2024
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जुल्म को लब्जों में बयां कर क्रांति लाने का नाम है जैनब सलामुल्लाह

ऊंचाहार/रायबरेली, पवन कुमार गुप्ता। हजारों साल पहले कर्बला में हुई जुल्म सितम की दास्तां सुनाकर जिस महिला ने यजीद की सल्तनत और उसकी हस्ती को हिला दिया था। उस महान महिला का नाम जैनब सलामुल्लाह अलैहा था । पैगम्बर इस्लाम की इस नातिन के लब्जों में वह ताकत थी कि जालिम यजीद की सेना में हलचल मच गई थी। बुधवार को ऊंचाहार कस्बा में जैनब के पुण्यतिथि पर बड़ा कार्यक्रम अयोजित किया गया। जिसमें पंद्रह रजब सन 63 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की एक महान महिला ने इस नश्वर संसार को विदा कहा। इस महिला ने इस्लामी इतिहास के उस संवेदनशील काल में एक अमिट भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब का नाम कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के साथ हमेशा के लिए जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपनी माता हज़रत फ़ातेमा और पिता हज़रत अली से अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का पाठ सीखा था और कर्बला की घटना के बाद उन्होंने अपने भाषणों से यज़ीद के अत्याचारों को स्पष्द कर दिया और सत्य के मार्ग में किसी भी प्रकार के त्याग व बलिदान से नहीं चूकीं।जब अली और फ़ातेमा की पहली बेटी ने इस संसार में आंखें खोलीं तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम यात्रा पर थे। माता-पिता ने प्रतीक्षा की कि पैग़म्बर वापस आ जाएं और वही उनकी बेटी का नाम रखें जिस तरह से उन्होंने ईश्वर की इच्छा से हसन और हुसैन का नाम रखा था। जब पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा से वापस लौटे तो अपनी प्राण प्रिय सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर गए। हज़रत अली ने अपनी बेटी को पैग़म्बर की गोद में दे दिया। उन्होंने बच्ची को चूमा और उसका नाम ज़ैनब रखा जिसका अर्थ होता है बाप का श्रृंगार। इसके बाद उन्होंने अपना गाल, ज़ैनब के गाल पर रखा और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उनसे पूछा गया कि हे पैग़म्बर! आपके रोने का कारण क्या है? उन्होंने कहा ये बच्ची मुसीबतों में मेरे हुसैन के साथ होगी।
हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपना जीवन, उस घराने में आरंभ किया जो कल्याण व परिपूर्णता का केंद्र था। पैग़म्बरे इस्लाम का प्रेम और उनका अंतरज्ञान हर दिन उनके अस्तित्व को नई शक्ति देता था। उन्होंने धाराप्रवाह भाषण और शब्दालंकार अपने पिता से, पवित्र अपनी माता से धैर्य व प्रतिरोध अपने भाइयों हसन और हुसैन से सीखा था। वे संयम और ईश्वर से प्रसन्नता के उच्च स्थान पर आसीन थीं। इस तरह के वातावरण में नैतिक गुणों और शिष्टाचारिक विशेषताओं से संपन्न होने का तथा ईश्वरीय ज्ञानों की प्राप्ति का उनके पास भरपूर अवसर था। उनके भतीजे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा था। हे फुफी! ईश्वर की कृपा से आप बिना गुरू की ज्ञानी हैं, आपके पास जो समझ-बूझ और ज्ञान है वह किसी से प्राप्त किया हुआ नहीं बल्कि आपका अपना है।