रविवार को नोएडा स्थित ट्विन टावर माननीस सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त कर दिये गए। अब इन बहुमंजिला इमारतों की जगह मलबा ही बचा है। लेकिन इसी बीच एक सवाल अवश्य उठता है कि क्या भ्रष्टाचार अब रुक जायेगा ? देश की जड़ तक में समा चुका भ्रष्टाचार क्या अब नहीं किया जायेगा? सवाल यह भी उठता है कि जिस देश में संसाधनों की कमी है, क्या ऐसे में इन टावरों का अधिगृहण कर मूलभूत सुविधाओं के लिए नहीं किया जा सकता था?
इन टावरों को एपेक्स और सेयेन नामक सुपरटेक बिल्डर ने बनाया था। इस दौरान आरोप लगे कि टावरों को बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया। बताते चलें कि ये देश में गिराई जाने वाली सबसे बड़ी बहुमंजिला इमारतें थीं और भारतीय राजधानी में स्थित सबसे ऊंचे कुतुब मीनार से भी ऊंचीं थीं। हालांकि ये टावर यूं ही नहीं ध्वस्त कर दिये गये इनको गिराने का फ़ैसला क़ानूनी लड़ाई जो कई वर्षों तक चली, उसके बाद लिया गया था। यह लड़़ाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय से शुरू हुई थी और माननीय सुप्रीम कोर्ट में खत्म हुई।
अतीत पर अगर नजर डालें तो इन टावरों के निर्माण की कहानी वर्ष 2004 से शुरू होती है। न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत एक आवासीय क्षेत्र बनाने के लिए सुपरटेक नामक कंपनी को यह जगह आवंटित की थी। वर्ष 2005 में, नोएडा बिल्डिंग कोड, दिशा निर्देश 1986 के अनुसार सुपरटेक ने प्रत्येक 10 मंजिल वाले 14 फ्लैटों की योजना तैयार की। न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 10 मंजिलों वाले 14 अपार्टमेंट भवनों के निर्माण की अनुमति दी, साथ ही यह भी प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंचाई 37 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और इस साइट पर 14 अपार्टमेंट और एक वाणिज्यिक परिसर के साथ एक गार्डन विकसित किया जाना था। वर्ष 2006 में कंपनी को निर्माण के लिए पुरानी शर्तों पर अतिरिक्त ज़मीन दी गई। सुपरटेक ने नई योजना बनाई। इसमें बिना गार्डन के दो और 10 मंजिल भवन बनाए जाने थे। अंत में वर्ष 2009 में 40 मंजिलों के साथ दो अपार्टमेंट टावर बनाने के लिए अंतिम योजना तैयार की गई। इस दौरान वर्ष 2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में आरोप लगाया गया कि इन टावरों के निर्माण के दौरान उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है। इसके मुताबिक केवल 16 मीटर की दूरी पर स्थित दो टावरों ने कानून का उल्लंघन किया था। साथ ही कहा गया कि इन टावरों को बगीचे के लिए आवंटित भूमि पर अवैध रूप से खड़ा किया गया।वर्ष 2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए मामला आने से पहले, नोएडा प्रशासन ने वर्ष 2009 में दायर योजना ;40 मंजिलों वाले दो अपार्टमेंट टावरद्ध को मंजूरी दे दी। दायर किये गये मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अप्रैल 2014 में फ़ैसला आया। उसने इन टावरों को गिराने का आदेश भी जारी किया। यह भी आदेश दिया कि टावर बनाने वाले सुपरटेक को टावर गिराने का ख़र्च भी अदा करना पड़ेगा और पहले से ही फ्लैट खरीदने वालों को 14 फ़ीसदी ब्याज़ के साथ पैसा वापस करना होगा। इसके बाद मई में 2014 में सुपरटेक ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले को चुनौती देते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि निर्माण कार्य उचित मानदंडों के मुताबिक ही किया गया है। किन्तु अगस्त 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले को बरकरार रखते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि टावर निर्माण में नियमों का उल्लंघन किया गया था। परिणाम यह हुआ कि रविवार 28 अगस्त, 2022 को ट्विन टावरों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया। अब टावरों के स्थान पर मलवा पड़ा है जिसे हटाने की प्रक्रिया जारी है और इस कार्य में महीनों का समय लग जायेगा।
उधर सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश पर प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि इन टावर के दूसरे जनहित में प्रयोग करने पर विचार किया जा सकता था। इतनी बड़ी बिल्डिंग को ध्वस्त करने के बजाय उसमें अस्पताल, हॉस्टल, बुजुर्गों का निवास, निराश्रित महिलाओं का आश्रय बनवाया जा सकता था। साथ ही कहा जा रहा है कि माननीय न्यायालय प्रकाशपर्व पर दीवाली पर पटाखे चलाने से रोकती है और पटाखे नहीं फोड़ने देती है क्योंकि इससे प्रदूषण होता है। अब न्यायालय द्वारा खुद ही ट्विन टावर ब्लास्ट से प्रदूषण करने वाला ऑर्डर दिया गया है जो कि विचारणीय है। वहीं अगर टावर ध्वस्त करना अनिवार्य ही था तो दूसरा तरीका भी अपनाया जा सकता था, जिससे प्रदूषण ना होता। साथ ही यह विवश करने पर मजबूर करती है कि क्या ऐसे नजारों से भ्रष्टाचार रुक जायेगा?
-S. S. Panwar