Thursday, November 21, 2024
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महिला जगत

करवा चौथ व्रत, संकष्टी /करक गणेश चतुर्थी व्रत, पूजन एवं विधान

रायबरेली। गोकर्ण ऋषि की तपस्थली पर मां गंगा के पावन गोेकना घाट के वरिष्ठ पुरोहित पंडित जितेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में संकष्टी गणेश चतुर्थी, करवा चौथ का व्रत 01 नवम्बर 2023 दिन, बुद्धवार को है। यह महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण निर्जला व्रत है। इस दिन महिलाओं को निर्जला व्रत रखना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत ,अखंड ,सौभाग्य के लिए रखा जाता है ।माना जाता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक रहने से पति की आयु लम्बी होती है। इस व्रत को निर्जला रखा जाता है, यही कारण है कि करवा चौथ का व्रत अन्य व्रतों की अपेक्षा कठिन होता है ,करवा चौथ व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं ,सोलह श्रृंगार करके व्रत रखती हैं , करवा चौथ व्रत के एक दिन पूर्व सुहागिन महिलाएं मेहंदी आदि लगाकर श्रंगार करती हैं और शाम के समय शिव परिवार अर्थात भगवान शिव जी, माता पार्वती जी, भगवान गणेश जी, भगवान कार्तिकेय जी और नंदीश्वर की प्रतिमा चौकी पर रखकर विधि विधान से पूजा के बाद चंद्रोदय पर चंद्रदेव को अर्घ्य देती हैं, अर्घ्य देने के बाद पति द्वारा लोटा से जल पिलाकर व्रत का परायण होता है।

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सुहागिनों का सबसे बड़ा त्यौहार है करवा चौथ

करवा चौथ पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है क्योंकि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। भारतीय समाज में वैसे तो महिलाएं विभिन्न अवसरों पर अनेक व्रत रखती हैं लेकिन पति को परमेश्वर मानने वाली नारी के लिए इन सभी व्रतों में सबसे अहम स्थान रखता है ‘करवा चौथ’ व्रत, जो इस वर्ष 1 नवम्बर को मनाया जा रहा है। पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य तथा सौभाग्य के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में उसकी सफलता की कामना से सुहागिन महिलाओं द्वारा कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला यह व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जाता है, जो सुहागिनों का सबसे बड़ा व्रत एवं त्यौहार है। महिलाएं अन्न-जल ग्रहण किए बिना अपार श्रद्धा के साथ यह व्रत रखती हैं तथा रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन करके अर्ध्य देने के बाद ही व्रत खोलती हैं। यही वजह है कि अखण्ड सुहाग का प्रतीक यह व्रत अन्य सभी व्रतों के मुकाबले काफी कठिन माना जाता है।
कहा जाता है कि इस व्रत के समान सौभाग्यदायक अन्य कोई व्रत नहीं है और सुहागिनें यह व्रत 12-16 वर्ष तक हर साल निरन्तर करती हैं, उसके बाद वे चाहें तो इसका उद्यापन कर सकती हैं अन्यथा आजीवन भी यह व्रत कर सकती हैं। आजकल तो कुछ पुरूष भी पूरे दिन का उपवास रखकर पत्नी के इस कठिन तप में उनके सहभागी बनते हैं। दिनभर उपवास करने के बाद शाम को सुहागिनें करवा की कथा सुनती व कहती हैं तथा चन्द्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर अपने सुहाग की दीर्घायु की कामना कर प्रण करती हैं कि वे जीवन पर्यन्त अपने पति के प्रति तन, मन, वचन एवं कर्म से समर्पित रहेंगी।

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सजना है मुझे सजना के लिए …

भारत में सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है ‘करवा चौथ’, जो दाम्पत्य जीवन में एक-दूसरे के प्रति समर्पण का अनूठा पर्व माना जाता है। इस विशेष त्यौहार का सुहागिन महिलाएं सालभर इंतजार करती हैं। हालांकि यह व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन माना जाता है, फिर भी देशभर में हर जाति, हर सम्प्रदाय की महिलाएं अपने पति की दीर्घायु तथा अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए खुशी-खुशी यह व्रत रखती हैं और रात को चांद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। हालांकि समय के साथ इस व्रत को मनाए जाने की परम्पराओं में थोड़ा बदलाव आया है और अब बहुत सी अविवाहित युवतियां भी अच्छे वर की प्राप्ति की कामना से यह व्रत करने लगी हैं।
करवा चौथ के शुभ दिन महिलाओं के चेहरे पर एक अलग ही तेज नजर आता है। इस पर्व का नाम सुनते ही मन में सोलह श्रृंगार किए खूबसूरत नारी की छवि उभर आती है। दरअसल मेंहदी लगे हाथों में रंग-बिरंगी खनकती चूड़ियां, माथे पर आकर्षक बिंदिया, मांग में सिंदूर, सुंदर परिधान और तरह-तरह के आकर्षक गहने पहने अर्थात् सोलह श्रृंगार किए सुहागिन महिलाएं इस दिन नववधू से कम नहीं लगती। दुल्हन के लाल जोड़े की भांति इस दिन भी लाल रंग के परिधान पहनने का चलन बहुत ज्यादा है। वास्तव में करवा चौथ सुहागिन महिलाओं के सजने-संवरने का एक विशेष अवसर है।

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बारिश की एक बूंद ने….

बारिश की एक बूंद ने, तपती जमीन से पूछा।
क्यों बन गई हो आतिश, क्यों बन गई हो आतिश।
आवाज़ सुनकर उसकी, ये तपती ज़मीं है बोली।
बेटी- बहू को लेकर सब, कर रहे हैं साज़िश ।
तो होगी क्यों ना आतिश, तो होगी क्यों ना आतिश।
है हर घरों में माचिस तो, होगी क्यों ना आतिश।
अंग्रेजियत के फैशन अब, हो रहे हैं देखो काबिज़।
कम हर घरों में माजिद, तो होगी क्यों ना आतिश।
दिल के चिरागों की यहां, कम हो रही है ताबिश।

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बच्चों की प्रस्तुति ने मोहा शिक्षकों व अभिभावकों का मन

⇒जनपद में धूम-धाम से मनाया गया आजादी का जश्न, बच्चों ने प्रस्तुत किए मनमोहक कार्यक्रम
कानपुर देहात। प्राथमिक विद्यालय उसरी रसूलाबाद में मंगलवार को धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। ध्वजारोहण के बाद आजादी के जश्न में डूबे स्कूली बच्चों ने कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मनमोहक प्रस्तुति दी। हर कोई देशभक्ति के रंग में रंगा नजर आया। इस अवसर पर बच्चों के साथ साथ स्कूल के शिक्षकों ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत की। 15 अगस्त के अवसर पर बच्चों ने स्कूल के प्रांगण में सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। इसमें सबसे पहले छोटे बच्चों ने मां तुझे सलाम गाने पर परफॉर्म कर वहां मौजूद सभी लोगों का मन मोह लिया। इसके बाद ए वतन आबाद रहे तू, जय हो… और वंदे मातरम जैसे कई देश भक्ति गीतों पर बच्चों ने डांस किया। बच्चों के आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंचन में मौजूद सभी लोगों को उत्साहित कर दिया। मौजूद अभिभावकों ने भी तालियां बजाकर बच्चों का उत्साह बढ़ाया।

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प्यासी प्यासी भोर

एक नयनजल नभ पर अटका
एक नयन के कोर
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर
फूलों की रतजागी आँखें
टेर सुनाए बेकल
प्रीत तुम्हीं मनमीत तुम्हीं
तुम हीं सावन मैं मोर ।।
छुपा मेघ में चाँद दीवाना
रजनी रोई रोई
ये सब बादल सूखे सूखे
बरसे कोई कोई
जादूगर से उस बादल का
निरा अनूठा तौर।
रात गई न बरसा सावन
प्यासी प्यासी भोर ।।

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“महिलाओं को नई दिशा और बेटियों को सही समझ दे रहा है पिंकीश फ़ाउंडेशन”

कभी-कभी कुछ लोगों का काम उनकी शालिन शख़्सियत के पीछे छुप जाता है, क्योंकि वो लोग वाहवाही लूटने हेतु काम नहीं करते; बल्कि सच में समाज को आगे ले जाने के लिए और लोगों को उपयोगी होने के लिए काम करते है। किसी भी अपेक्षा के बिना unconditional and औरों को appreciate करने वाला काम अगर कोई करता है तो वो है “पिंकीश फ़ाउंडेशन”
फेसबुक पर “पिंकीश फ़ाउंडेशन” द्वारा फेसबुक ग्रुप और पेज पर चल रहे लाजवाब काम को देखकर आज मन की गहराई से कुछ भावनाएँ फूट रही है। ये लेख कोई किसीको मक्खन लगाने के लिए नहीं लिख रही हूँ, बल्कि आँखों देखी घटना का विवरण है। पिंकीश से जुड़े मुझे शायद पाँच साल तो हो ही गए। जब से जुड़ी हूँ तब से पिंकीश को उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर होते देखा है।
सोशल मीडिया का सही उपयोग ऐसे भी होता है यह में समाज को समझाना चाहती हूँ। आजकल लोगों ने सोशल मीडिया को ज़हर उगलने का ज़रिया बना रखा है; ऐसे में पिंकीश फ़ाउंडेशन अपने नेक कामों का ढ़िंढोरा पिटे बिना चुपचाप अपना बेनमून काम करते आगे बढ़ रहा है। जिसके लिए आदरणीय अरुण गुप्ता सर और गोर्जियस और pure heart शालिनी जी की जितनी तारीफ़ की जाए कम है।
महज़ फेसबुक पेज द्वारा संचालन करते देश के कोने-कोने में अपनी चेइन बनाकर लोगों को नेक काम के लिए जोड़ कर प्रोत्साहित करना और अपनी गरिमामयी पहचान खड़ी करना कोई छोटी बात नहीं। पिंकीश के साथ एक से बढ़कर एक प्रबुद्ध, पढ़े-लिखे और इंटेलिजेंट लोग स्वैच्छिक तौर पर जुड़े है, जो अपना कीमती समय देते नेक काम के लिए कड़ी से कड़ी की तरह जुड़कर चेइन को आगे बढ़ा रहे है।
गाँव-गाँव, शहर-शहर बेटियों को माहवारी और स्वच्छता का सही ज्ञान देते सेनेटरी पेड़ को नि:शुल्क बाँटने का काम इतनी बखूबी निभा रहे है कि कहना पड़ेगा hats off pinkish team साथ ही पिंकीश के फेसबुक ग्रुप में लगातार कोई न कोई प्रतियोगिता और डिबेट जैसी गतिविधियों से महिलाओं को प्रोत्साहित करते रहते है।

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महिला सशक्तिकरण और भारत का विकास

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ‘जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा तब तक देश आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि पक्षी अपने एक पंख से आकाश में नहीं उड़ सकता।’
महिलाएं हमारे देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। इसलिए राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह से सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण को समझा जा सकता है।
प्रागैतिहासिक युग से नवजागरण युग तक महिलाओं की प्रगति यात्रा अनेक सफलताओं और विफलताओं से भरी है। निःसंदेह, घर से बाहर आने और कामकाजी बनने से महिलाओं को एक नई पहचान मिली है जिससे उनका हौसला भी बड़ा है। विशेष उपलब्धियों, क्षमताओं, विशिष्ट कार्यशैली और प्रतिभा के बल पर महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी स्वतंत्र पहचान बना चुकी हैं।
महिला साक्षरता की दर बढ़ी है। उन्हें गृहलक्ष्मी के साथ-साथ कार्यलक्ष्मी बनने के भी अवसर मिले हैं। घर की रानी अब हुक्मरानी बन चुकी है। 73वें संविधान संशोधन के जरिए पंचायती राज्य संस्थाओं में एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने का कदम भी बहुत कारगर सिद्ध हुआ है।
तुलसीदास ने जिस पराधीनता को नारी के सबसे बड़े दुःख के रूप में देखा उसे आज की नारी ने गांव, कस्बे, नगर और महानगर सब जगह उतार फेंका है। आजकल की युवतियां किसी की परिणीता बनने के सपने नहीं देख रही है। उच्च शिक्षा प्राप्त युवतियां शादी के मुकाबले कैरियर को चुन रही हैं। हालांकि छोटे शहरों में युवतियों को आत्मनिर्भरता के अवसर बहुत कम हैं लेकिन ये युवतियां जहां भी हैं, अपने हस्ताक्षर बना रही हैं।

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जस्टिस फॉर चिल्ड्रन एंड वूमेन सोसाइटी ने किया कामकाजी महिलाओं का सम्मान

⇒जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैः सतीश
मथुरा। जस्टिस फॉर चिल्ड्रन एंड वूमेन सोसाइटी ने 11 कामकाजी महिलाओं को सम्मानित किया। सामाजिक कार्यकर्ता सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण के लिए संचालित संस्था जस्टिस फॉर चिल्ड्रन एंड वूमेन सोसाइटी द्वारा कामकाजी महिलाओं को उनके कार्य स्थल पर जाकर सम्मानित किया गया। इस तरह के कार्यक्रम संस्था कामकाजी महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए करती है। जिससे समाज में उनकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो सके। संस्था अध्यक्ष सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है श्यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता अर्थात् जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।

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स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने लगाये स्टॉल

कानपुर देहात। शासन द्वारा संचालित उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन योजनान्तर्गत विकास भवन परिसर माती में मुख्य सौम्या पांडे के निर्देशन में विकास भवन में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा होली पर्व पर स्वयं के द्वारा तैयार किये गये सामग्री के स्टाल का मुख्य विकास अधिकारी ने शुभारम्भ किया।
इस मौके पर विकासखंड अकबरपुर के वन्दना व लक्ष्मी समूह, दुर्गा महिला स्वयं सहायता समूह ब्लॉक अमरौधा, तुलसी महिला स्वयं सहायता समूह सरवन खेड़ा, ग्राम सखी समूह मलासा, नारायण हरि, कमल महिला एवं वैष्णवी महिला स्वयं सहायता समूह द्वारा स्टॉल लगाए गए। इस अवसर पर जिलाधिकारी एवं मुख्य विकास अधिकारी द्वारा प्रत्येक स्टॉल का अवलोकन किया गया, अवलोकन के दौरान समूह की सदस्यों द्वारा लगाई गई स्टॉल की महिलाओं से उनके उत्पादों के बारे में जानकारी ली व मुख्य विकास अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों, कर्मचारियों ने गुलाल, बेसन, पापड आदि को भी खरीदा तथा उनका उत्साहवर्धन किया।

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