Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

जनता तो भगवान बनाती है साहब लेकिन शैतान आप

13 मई 2002 को एक हताश और मजबूर लड़की, डरी सहमी सी देश के प्रधानमंत्री को एक गुमनाम खत लिखती है। आखिर देश का आम आदमी उन्हीं की तरफ तो आस से देखता है जब वह हर जगह से हार जाता है। निसंदेह इस पत्र की जानकारी उनके कार्यालय में तैनात तमाम वरिष्ठ नौकरशाहों को भी निश्चित ही होगी।
साध्वी ने इस खत की कापी पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों और प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों को भी भेजी थी।
खैर मामले का संज्ञान लिया पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जिसने 24 सितंबर 2002 को इस खत की सच्चाई जानने के लिए सीबीआई को डेरा सच्चा सौदा की जांच के आदेश दिए।
जांच 15 साल चली, चिठ्ठी में लगे तमाम इलजामात सही पाए गए और राम रहीम को दोषी करार दिया गया। इसमें जांच करने वाले अधिकारी और फैसला सुनाने वाले जज बधाई के पात्र हैं जिन्होंने दबावों को नजरअंदाज करते हुए सत्य का साथ दिया।
देश भर में आज राम रहीम और उसके भक्तों पर बात हो रही है लेकिन हमारी उस व्यवस्था पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा जिसमें राम रहीम जैसों का ये कद बन जाता है कि सरकार भी उनके आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर हो जाती है।

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35 ए जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए ?

भारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है कि आज तक हम कश्मीर के नहीं हैं?
भारत सरकार कश्मीर को सुरक्षा सहायता संरक्षण और विशेष अधिकार तक देती है लेकिन फिर भी भारत के नागरिक के कश्मीर में कोई मौलिक अधिकार भी नहीं है?
2017 में कश्मीर की ही एक बेटी चारु वलि खन्ना एवं 2014 में एक गैर सरकारी संगठन वी द सिटिजंस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35ए के खिलाफ याचिका दायर की गई है जिसका फैसला दीवाली के बाद अपेक्षित है।
आज पूरे देश में 35ए पर जब बात हो रही हो और मामला कोर्ट में विचाराधीन हो तो कुछ बातें देश के आम आदमी के जहन में अतीत के साए से निकल कर आने लगती हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के यह शब्द भी याद आते हैं कि, ‘कश्मीरियत जम्हूरियत और इंसानियत से ही कश्मीर समस्या का हल निकलेगा’।
किन्तु बेहद निराशाजनक तथ्य यह है कि यह तीनों ही चीजें आज कश्मीर में कहीं दिखाई नहीं देती।
कश्मीरियत, आज आतंकित और लहूलुहान है।
इंसानियत की कब्र आतंकवाद बहुत पहले ही खोद चुका है
और जम्हूरियत पर अलगवादियों का कब्जा है।

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खुशियों का फैसला

जो भावना मानवता के प्रति अपना फर्ज निभाने से रोकती हो क्या वो धार्मिक भावना हो सकती है?
जो सोच किसी औरत के संसार की बुनियाद ही हिला दे क्या वो किसी मजहब की सोच हो सकती है?
जब निकाह के लिए लड़की का कुबूलनामा जरूरी होता है तो तलाक में उसके कुबूलनामे को अहमियत क्यों नहीं दी जाती?
साहिर लुधियानवी ने क्या खूब कहा है,
‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन,उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा’
यहाँ लड़ाई ‘छोड़ने’ की नहीं है बल्कि ‘खूबसूरती के साथ छोड़ने’ की है। उस अधिकार की है जो एक औरत का पत्नी के रूप में होता तो है लेकिन उसे मिलता नहीं है।
गौर करने लायक बात यह भी है कि जो फैसला इजिप्ट ने 1929 में पाकिस्तान ने 1956 में बांग्लादेश ने 1971 में (पाक से अलग होते ही), ईराक ने 1959 में श्रीलंका ने 1951 में सीरिया ने 1953 में ट्यूनीशिया ने 1956 में और विश्व के 22 मुसलिम देशों ने आज से बहुत पहले ही ले लिया था वो फैसला 21 वीं सदी के आजाद भारत में 22 अगस्त 2017 को आया वो भी 3-2 के बहुमत से।

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आपकी बातः भूमाफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं!

sanjay katiyarउत्तर प्रदेश में जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रथम दिन से ही ऐलान किया था कि अब प्रदेश में भूमाफियाओं की खैर नहीं होगी। इसी ऐलान के तहत प्रदेश की सरकारी मशीनरी जैसे विकास प्राधिकरण, नगरनिगम, नगरपालिका और ग्राम पंचायतों आदि ने ज्यादातर जिलों में भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था। अभियान की सफलता और असफलता अथवा उसके औचित्य पर यदि ईमानदारी से आकलन किया जाये तो एक जो तस्वीर दिखाई देती है वह यह है कि असली भूमाफिया और उनसे जुड़े वो सरकारी कर्मचारी, अधिकारी जिनकी सरपरस्ती पर भूमि की अवैध बिक्री और अवैध कब्जे करके आमजनता के लोगों को धोखे से कूट रचित अभिलेख बनाकर बिक्री करके जनता की जीवनभर की गाढ़ी कमाई पर डाका डाला गया। उनपर कोई भी कार्यवाही नहीं होती दिखाई देती, जबकि भूमाफियों ने अधिकारियों से मिलकर जनता से करोड़ों रुपये लूटकर अपने घर तो भर लिये और अब जब सरकार भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान चलाने की बात कर रही है तब बेचारे वो निम्न मध्यम वर्ग की जनता, गरीब जनता परेशानी में आ रही है जिसने किसी प्रकार से मेहनत की गाढ़ी कमाई से भूमि का एक टुकड़ा खरीदकर अपने सपनों का एक छोटा सा घर बनाया था।

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सरकार डाल-डाल तो करचोर पात-पात डॉ. दीपकुमार शुक्ल

deep shuklaसन 1998 में अमिताब बच्चन और गोविंदा की एक फिल्म आयी थी बड़े मियां छोटे मियां। उसमें ट्रेन में टप्पेबाजी करके यात्रियों से लूटे गये सामान के बारे में जब टिकट चेकर पूंछता है तो बड़े और छोटे मियां बताते हैं कि इस बैग्वा के अन्दर में हमारे दाँयें पाँव का मोजा है और इसमें बाएं पाँव का मोजा है। उसके अन्दर हमारे दायें पांव का जूता है। इसमें बाएं पाँव का जूता है। उसके अन्दर हमारी धोती-धोती है और इसमें हमारा कुर्ता-कुर्ता है। ये डायलाग सुनकर दर्शक मुस्कराए बिना न रहे होंगे। कर चोरी की आदत से मजबूर कपड़े और जूता-चप्पल के कुछ कारोबारियों ने देश में जी.एस.टी.लागू होने के बाद से कुछ ऐसा ही तरीका अपनाया है। गौरतलब है कि वस्तु एवं सेवा कर नियमावली के अनुसार पांच सौ रुपये तक की कीमत के जूते-चप्पल और एक हजार रुपये तक की कीमत वाले कपड़ों पर पांच प्रतिशत टैक्स का प्राविधान है। 

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कृषकों के खून से प्यास बुझाती राजनीति

किसान और किसानी के विकास, सुरक्षा तथा बेहतरी के लिए न जाने कितनी सरकारी योजनाओं और घोषणाओं के अम्बार लगे हुए हैं पर इन अम्बारों की तह के नीचे अब भी अगर कुछ है तो वह है बैंक के ऋण, साहूकारों के कर्ज, दलालों और व्यापारियों की मनमानी, बीज खाद और कीटनाशकों की निष्ठुर कीमतें, बिचैलियों के मौज-मजे, बरसाती नदी के पानी की तरह लगातार बढ़ती लागत और बदले में मुनाफा-दर शून्य, मौसम के बदलते मिजाज का कहर तो है ही, सही कृषि-नीतियों के अकाल के साथ हीं और भी है बहुत कुछ … एवं इन सब की तहों के नीचे पड़े हुए हैं व्यवस्था की खामी से चोटिल, स्तब्ध और टूटे हुए किसानों के नरकंकाल, कपाल, लाशें स हाँ .. इन सब के नीचे है हताश, निराश और डरावने भविष्य के अन्धकार में लिपटा किसानों का सशंकित, संत्रासित और अशांत मन स दिन-रात अपने शारीरिक सामर्थ्य से बढ़कर मेहनत करनेवाले उस किसान को जब खाने के लिए दो निवाला सुकून और तसल्ली का नहीं मिल पाता तो लाचारी में हारकर वह सल्फास की गोली खा लेता है।

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मिसाइल डिफेन्स सिस्टम से मजबूत होगी सुरक्षा

प्रधानमंत्री मोदी की हाल की रूस यात्रा में यह साफ हो गया है कि रूस भारत को अत्यन्त खतरनाक हवाई मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 देगा। दोनों देशों के बीच इस पर बातचीत हो चुकी है। इसके अलावा दोनों देशों ने एक साथ मिलकर एयरक्राफ्ट और आॅटो मोबाइल्स बनाने पर भी सहमति जताई है। इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम को दुनिया का सबसे खतरनाक मिसाइल सिस्टम माना जाता है। रूस के उप प्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन ने कहा कि रूस भारत को एस-400 ट्रायम्फ विमान रोधी मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति करने की तैयारी कर रहा है और दोनों पक्ष बिक्री की शर्तों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले साल गोवा में ब्रिक्स समिट के दौरान भारत और रूस के मध्य लगभग 40000 करोड़ रुपये की इस डिफेंस डील पर चर्चा हुई थी। तब भारत ने 15 अक्टूबर को रूस के साथ ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणालियों पर पांच अरब डाॅलर के एक करार की घोषणा की थी। भारत ने उसी समय चार अत्याधुनिक फ्रिगेट के अलावा कामोव हेलीकाॅप्टरों के निर्माण के लिए एक संयुक्त उत्पादन सुविधा स्थापित करने की भी घोषण की थी।

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क्यों न फिर से निर्भर हो जाए

2017.06.29. 1 ssp DR NEELAM MAHENDRAआज की दुनिया में हर किसी के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक माना जाता है। स्त्रियाँ भी स्वावलंबी होना पसंद कर रही हैं और माता पिता के रूप में हम अपने बच्चों को भी आत्मनिर्भर होना सिखा रहे हैं।
इसी कड़ी में आज के इस बदलते परिवेश में हम लोग प्लैनिंग पर भी बहुत जोर देते हैं। हम लोगों के अधितर काम प्लैनड अर्थात पूर्व नियोजित होते हैं। अपने भविष्य के प्रति भी काफी सचेत रहते हैं इसलिए अपने बुढ़ापे की प्लैनिंग भी इस प्रकार करते हैं कि बुढ़ापे में हमें अपने बच्चों पर निर्भर नहीं रहना पड़े। यह आत्मनिर्भरता का भाव अगर केवल आर्थिक आवश्यकताओं तक सीमित हो तो ठीक है लेकिन क्या हम भावनात्मक रूप से भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं?

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अलगाववाद को प्रोत्साहन

Pankaj k singhनिश्चय ही कश्मीर मुद्दे पर अब भारत सरकार को निर्णायक कूटनीतिक कदमों की ओर आगे बढ़ना चाहिए। सरकार ने पर्यवेक्षकों के कामकाज की उच्चस्तरीय समीक्षा में पाया है कि पर्यवेक्षकों की अब कोई जरूरत नहीं है। उनकी मौजूदगी में भी ‘एलओसी’ (लाइन आॅफ कंट्रोल) पर लगातर पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी और खून-खराबा हो रहा है। जिस उम्मीद के साथ कभी ‘संयुक्त राष्ट्र’ के सैन्य पर्यवेक्षकों का कार्यालय भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम समझौते का पालन सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया था, उसमें वह खरा नहीं उतर सका है। कश्मीर मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र का रुख बेहद ढुलमुल रहा है। संयुक्त राष्ट्र कश्मीर मुद्दे को लेकर अमेरिकी नीतियों से प्रभावित रहता है। कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक प्रायः मूकदर्शक ही बने रहे हैं और आज तक उन्होंने कभी भी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद और भारतीय सीमाओं में घुसपैठ के मुद्दे को संपूर्ण शक्ति के साथ मजबूत ढंग से नहीं उठाया है। भारत को इस संदर्भ में एक कठोर रुख अपनाने की आवश्यकता है। 

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अन्नदाता आखिर कब तक केवल मतदाता बना रहेगा

dr. neelamअब किसान जागा है तो पूरा जागे
इस बात समझे कि भले ही अपनी फसल वो एक या दो रुपए में बेचने को विवश है लेकिन इस देश का आम आदमी उसके दाम एक दो रूपए नहीं कहीं ज्यादा चुकाता है तो यह सस्ता अनाज किसकी झोलियाँ भर रहा है?
किसान इस बात को समझे कि उसकी जरूरत कर्ज माफी की भीख नहीं अपनी मेहनत का पूरा हक है, वह सरकार की नीतियाँ अपने हक में माँगे बैंकों के लोन नहीं चाहे तमिलनाडु हो आन्ध्रप्रदेश हो महाराष्ट्र हो या फिर अब मध्यप्रदेश पूरे देश की पेट की भूख मिटाने वाला हमारे देश का किसान आज आजादी के 70 साल बाद भी खुद भूख से लाचार क्यों है?
इतना बेबस क्यों है कि आत्महत्या करने के लिए मजबूर है?

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