हाथरस, जन सामना ब्यूरो। यूनाइटेड फोरम आॅफ बैंक यूनियन्स के राष्ट्रीय नेतृत्त्व के आह्वान पर जनविरोधी बैंकिंग सुधारों को रोकने एवं काॅर्पोरेट खराब ऋणों को वसूल करने एवं काॅर्पोरेट अनार्जक आस्तियों का भार बैंकों के ग्राहकों पर सेवा शुल्क बढ़ाकर न डालने आदि मांगों को लेकर आन्दोलन का आह्वान किया है, जिसके तहत आज कैनरा बैंक मुख्य शाखा से एक जुलूस निकाला गया जो सभा के रूप में यूनियन बैंक आॅफ इण्डिया पर सभा के रूप में परिवर्तित हुआ।
यू.पी. बैंक यूनियन के प्रान्तीय सहायक महामंत्री एवं फोरम के जिला संयोजक बी.एस. जैन ने कहा कि केन्द्र सरकार जनविरोधी बैंकिंग सुधारों को बेशर्मी के साथ बढ़ा रही है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने पर आमादा है, बैंकों के विलय की योजनाओं को तैयार किया जा रहा है। एक तरफ केद्र सरकार बड़े बैंक चाहती है। सरकार को भ्रम है कि बड़े बैंक स्वतः ही मजबूत बैंक होते हैं। बड़े बैंकों का मतलब बड़ा जोखिम उठाना होगा, जो हमारा देश मुश्किल से बर्दाश्त कर सकता है। दूसरी तरफ कार्पोरेट घरानों को खुले हाथों से निजी बैंक, छोटे बैंक, भुगतान बैंक आदि खोलने के लाइसेंस दे रही है, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कमजोर हों। यह सरकार की दोगली नीति का परिचायक हैं।
ग्रामीण बैंक आॅफ आर्यावर्त अधिकारी एसोशिएसन के अध्यक्ष श्री पदम सिंह वर्मा ने कहा कि बैंकों के समक्ष मुख्य चुनौती खराब ऋण है। खराब ऋण आज हमारी बैंकिग प्रणाली की साख और ख्याति को खराब कर रहे हैं। इन खराब ऋणों को वसूल करने के लिये कठोर कानूनों की आवश्यकता है। जान बूझकर ऋण न चुकाने वालों के विरूद्ध फौजदारी कार्यवाही करने लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। कार्पोरेट अनार्जक आस्तियों का भार बैंकों के ग्राहकों पर सेवा शुल्क बढ़ाकर नहीं डालना चहिए।
आयबाॅक के अधिकारी साथी रातुल कौच ने कहा कि केन्द्र सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को विखण्डित करने और निजी क्षेत्र की बैंकिग को प्रोत्साहन करने की नीति की कटु शब्दों में निन्दा की और कहा कि सरकार को बड़े बैंक बनाने की योजना नहीं बनानी चाहिए क्योंकि सयुंक्त राज्य अमेरिका सहित दुनियांभर में कई निजी बड़े बैंक विफल हो चुके हैं।
यू.पी.बी.ई.यू. के जिला अध्यक्ष वी.के. शर्मा ने कहा कि मजबूत राजनैतिक गठजोड़ के कारण सरकार खराब ऋणों की वसूली के लिए कठोर कदम नहीं उठा रही है। सरकार के इशारे पर बैंकों के बड़े अधिकारी कार्पोरेट घरानों को ब्याज में छूट, एक मुश्त निपटान, समझौता, बट्टे खाते एवं अन्य प्रावधानों के नाम पर रियायतें बांट रहे हैं, जो उचित नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निजी कार्पोरेट चूककर्ताओं के पापों का वनज उठाने के लिए बाध्य किये जा रहे हैं। इस जुलूस में सभी बैंकों के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा भागीदारी की गयी।