फिरोजाबाद: जन सामना संवाददाता। महात्मा गाँधी बालिका विद्यालय पीजी कॉलेज के सेठ कुंदन लाल उमराव लाल सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन वक्ताओं ने गुरमति साहित्य में गुरु की महिमा पर प्रकाश डाला। साथ ही समापन सत्र में वक्ताओं ने अपने शोध प्रस्तुत किये।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ रंजना कुलश्रेष्ठ ने कहा कि विश्व में वर्तमान समय में सामाजिक समरसता को सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि गुरु और धर्म ही है, जो मनुष्य में सवेदनशीलता का भाव जागृत कर मनुष्य जाति में बंधुत्व, समानता जैसी भावना सुनुश्चित कर सकते है। स्वामी विवेकानंद के बारे में बताते हुए कहा कि सभी धर्मों के सार को एक मानते हुए इन्होंने उपदेश दिया कि सर्वधर्म सार एक ही है। अतः धर्म का मार्ग ही वर्तमान पीढ़ी को पथभ्रमित होने से तथा सामाजिक समरसता को सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक तत्व है। गुरुचरण गौतम ने कहा कि उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक गुरु कवि प्राप्त होने का श्रेय है। हिंदी साहित्य को वैश्विक साहित्य कहा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर हिंदी का तीसरा स्थान है। नानक जी ने स्त्री और पुरुष को बराबर बताया है। रैदास के गुरुग्रन्थ साहिब में अनेक पद है। मीराबाई भी रैदास कि शिष्या बताई जाती है। रैदास और मीराबाई के पदों में समता का भाव निहित है। डॉ श्याम सनेही लाल शर्मा ने कहा कि समता विषमता का प्रतिलोम है। विषमता है तो संसार है। विषमता नहीं होंगी तब जाकर समरसता होंगी और तब संसार नहीं होगा। इसका गुरमति साहित्य के सम्बन्ध में जिक्र नहीं है। आज तक विश्व में ऐसा कोइ अंधकार नहीं है जो प्रकाश का सामना कर सके जिसकी विश्व को आज नितांत आवश्यकता है गुरमति साहित्य वही अलोक है। गुरमति साहित्य शाश्वत है। विषमता में निहित राग विराग, दुख सुख, सत्य असत्य ये ऐसे तत्व है, जो पृथ्वी के अस्तित्व तक रहेंगे। आज विश्व का प्रत्येक व्यक्ति संशय, भ्रम, दुविधा आदि के मार्ग पर खड़ा है और मनुष्यता के ऊपर प्रहार है। ईश्वर ने कोई धर्म, कोई जाति बनाकर नहीं भेजा ये मनुष्य निर्मित हैं। युद्ध जैसी समस्यायें तभी समाप्त होंगी जब सौहार्दता कि बात कि जाएगी। आगरा कॉलेज के डॉ शितिकंठ दुबे ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। समापन सत्र में आर बी एस कॉलेज के प्रो सुधीर सिंह ने अपने वक्तव्य में निर्गुण भक्ति की उपासना से प्रारम्भ करते हुए कहा की गुरमति साहित्य में गुरु के महत्व को सर्वाेपरि रखा गया है। उन्होंने कहा कि गुरु हमें सामाजिक मार्गदर्शन के साथ ईश्वरीय व आध्यात्मिक जानकारी भी प्रदान करता है। प्रो. युवराज सिंह ने अपने उद्बोधन में गुरु को ब्रह्म के स्थान पर बैठाया गया। अतः गुरु की वाणी निश्चित रूप से अनुकरणीय हो जाती है। अतः गुरमति साहित्य को पढ़ना मात्र ही नहीं बल्कि उनका पालन करना विद्यार्थी जीवन के लिए नितांत आवश्यक है। कबीर, रैदास, रामानंद आदि गुरुओं ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए समाज के मार्गदर्शन हेतु बानियों का सृजन किया। जिनको आज की पीढ़ी में पुनः प्रवाहित करना नितांत आवश्यक है। सामाजिक समरसता सही ज्ञान के प्रचार के माध्यम से ही संभव है। इसके पश्चात महाविद्यालय के मण्डल सचिव अनूप चंद्र जैन ने आशीर्वाचन प्रस्तुत किया। समापन सत्र का संचालन डॉ एकता चौहान ने किया। मंचसीन मुख्य अतिथियों में उपसचिव मंजरी गुप्ता व प्रबंध समिति के अन्य सदस्यगण रहे। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी की सहसंयोजका डॉ प्रिया सिंह एवं आभार प्रदर्शन संयोजका डॉ संध्या द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम में डॉ दर्शना, डॉ पल्लवी, डॉ सितीकंठ दुबे, डॉ पारुल बरनवाल, आकांक्षा यादव, कीर्ति आदि उपस्थित रहे।