Sunday, November 24, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » श्रीराम मंदिर कारसेवा में शामिल हुए ‘गरीब’ को नहीं मिला न्योता !

श्रीराम मंदिर कारसेवा में शामिल हुए ‘गरीब’ को नहीं मिला न्योता !

-कहा, ‘गरीब’ हूं इस लिये श्रीराम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का नहीं मिला न्योता!
श्याम सिंह पंवार : कानपुर। अयोध्या में श्रीराम मंदिर दिनोंदिन भव्य व मनमोहक रूप लेता जा रहा है और आगामी 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सुनिश्चित है। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रतिष्ठित लोगों को शामिल होने का न्योता दिया जा रहा है, किन्तु इसी बीच शहर निवासी एक ऐसे परिवार ने अपना दर्द ‘जन सामना’ को बयां किया, जिसका एक सदस्य, कारसेवा के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा चलाई गई गोली का शिकार हुआ, दूसरा सदस्य विवादित ढाँचा ढहाने वाले लोगों की भीड़ में शामिल होने आरोप में जेल की सलाखों के पीछे भेजा गया, लगभग डेढ़ माह बाद जमानत मिली, वर्षों तक मुकदमा का दंश झेला और तीसरे सदस्य ने विवादित ढाँचा ढहाने के सम्बन्ध में दर्ज मामलों में कई वर्षों तक जाँच एजेंसियों के सवालों का सामना किया। श्रीराम मंदिर ‘कारसेवक’ परिवार को दुःख इस बात है कि उसे श्रीराम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता इस लिये नहीं दिया गया, क्योंकि वो ‘गरीब’ है।
जी हाँ, शहर के किदवई नगर निवासी श्रीमती आदर्श नागर ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने की एक ओर जहाँ खुशी जताई तो दूसरी तरफ अश्रुपूरित होकर पुराने दिनों की याद करते हुये बताया कि 2 नवम्बर 1990 को जब अयोध्या में पुलिस ने कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाई थीं तो उनमें उनके पति का भाई अमित कुमार नागर भी गोली का शिकार बना था और उसकी लाश को सरयू में फेंक दिया था। इसके बाद जब 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढाँचा ढहाया गया था, तब वह अपने पति डॉ0 सतीश कुमार नागर के साथ कारसेवा में शामिल हुईं थीं, विवादित ढाँचा ढह जाने के बाद उनके पति डॉ0 नागर का नाम भी एफ0 आई0 आर0 में था और 8 दिसम्बर 1992 को उन्हें कानपुर से गिरफ्तार करके फतेहगढ़ जेल में बन्द किया गया था।


लगभग डेढ़ माह बाद उन्हें जमानत मिली थी। इसके बाद समय – समय पर जाँच एजेंसियों के सवालों का सामना अनेक बार किया। 12 सितम्बर 2007 को डॉ0 नागर की मौत हो गई थी। वहीं डॉ0 नागर के पुत्र सुधांशु नागर ने उप्र सरकार व केन्द्र सरकार पर गम्भीर आरोप लगाया कि बड़े बड़े लोगों को न्योता दिया गया है किन्तु वह ‘गरीब’ है, इस लिये श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उनके परिवार को न्योता नहीं दिया गया, जबकि मेरे परिवार ने श्रीराम मंदिर के लिये तरह तरह की यातना सहन की है।

श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में न्योता ना मिलने पर दुःख बयां करती डॉ0 सतीश कुमार नागर की पत्नी आदर्श नागर व पुत्र सुधांशु

♦ कहानी अतीत की…
लखनऊ की कुर्सी पर कौन बैठा था? वह ऐसे आदेश क्यों दे रहा था? कट्टरपंथियों का मसीहा बनने के लिए उसकी होड़ किससे लगी थी? इन सबसे पहले यह जानते हैं कि अयोध्या में 1990 की 2 नवम्बर को क्या हुआ था?
सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर कारसेवा के लिये साधु और रामभक्त / कारसेवक, श्रीराम जन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। इस दौरान सुरक्षा बलों ने घेरा बनाकर उन्हें रोक दिया था। इस पर वो (साधु और रामभक्त / कारसेवक) जहाँ थे, वहीं रामधुनी जयकारों के उद्घोष के सत्याग्रह पर बैठ गए।
फिर ऑर्डर दिया गया, आर्डर पाते ही सुरक्षा बल एक्शन में आ गए और आँसू गैस के गोले दागे गए। निहत्थे रामभक्तों / कारसेवकों पर जमकर लाठियाँ बरसाई गईं। लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न डरे और न घबराए। किन्तु इसी बीच अचानक ही बिना चेतावनी के कारसेवकों पर अन्धाधुन्ध फायरिंग शुरू कर दी गई। इतना ही नहीं अयोध्या की गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर मारापीटा गया।
इस दौरान पुलिस और सुरक्षा बल, न खुद ही घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे। ऐसा बतााया जाता है कि कारसेवकों पर फायरिंग का लिखित आदेश नहीं था, बल्कि फायरिंग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया। खास बात यह भी थी किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। जो भी गोलियाँ चलीं थीं वह सबके सिर और सीने में लगीं थीं। परिणामतः तुलसी चौराहा खून से रंग गया था। फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।
गौर तलब हो कि 2 नवंबर 1990 को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगम्बर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनपर सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो इस दौरान हुये बलिदानियों की संख्या तीन दर्जन से अधिक बताई गई थी और 5 दर्जन से अधिक गम्भीर रूप से जख्मी बताये गये थे। साथ ही घायलों का कोई हिसाब नहीं था। तत्कालीन प्रकाशित समाचार पत्रों के मुताबिक, मृतकों व घायलों की संख्या कहीं अधिक रही थी।
दिलचस्प यह है कि घटना के फौरन बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आँकड़े तो नहीं दिए थे, लेकिन मीडिया के आँकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। यहाँ तक कि फैजाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिंग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई थी। इतना ही नहीं उनके पास मृतकों और जख्मी लोगों का आँकड़ा भी नहीं था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘‘निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियां वाले से भी जघन्य कांड किया था।’’
♦ क्यों घटित हुआ था यह सब?
25 सितंबर 1990 को एक रथ यात्रा शुरू हुई थी। जिसकी सोमनाथ से शुरुआत हुई थी और 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुँच यात्रा खत्म होनी थी। यात्रा का उद्देश्य था, ‘रामजन्मभूमि को वापस पाने के संघर्ष को जन-जन का संघर्ष बनाना। हिन्दुओं को अपने गौरव को वापस लौटाना!’
राजनीतिक दृष्टि से बात करें तो उस समय के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल चल रहा था। यात्रा शुरू होते ही मुलायम ने इसे खुद को खास मजहब का सबसे बड़ा मसीहा साबित करने के मौके के तौर पर देखा और उनकी दयादृष्टि पर हिंदुओं को धमकाना शुरू कर दिया गया था। मुलायम ने यह ऐलान कर रखा था कि लाल कृष्ण आडवाणी, अयोध्या में घुस कर दिखाएँ, फिर वे बताएँगे कानून क्या होता है ! उनकी इस बयानबाजी का एक उद्देश्य यह था उत्तेजना पैदा करना।
इधर विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं चाहते थे कि मुलायम अकेले मुस्लिम समुदाय के मसीहा बने। सो उनके इशारे पर तब के बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को समस्तीपुर में 23 अक्टूबर की सुबह गिरफ्तार करवा लिया था। ठीक एक दिन पहले वीपी सिंह की सरकार ने 20 अक्टूबर की रात लागू किया गया अध्यादेश वापस लिया था। इस अध्यादेश में विवादित ढाँचे और उसके चारों तरफ 30 फीट जमीन छोड़कर अधिग्रहीत जमीन रामजन्मभूमि न्यास को सौंपने की बात कही थी, हालाँकि इसके लिए भी मुस्लिम समुदाय के नुमाइंदे राजी नहीं थे। उनका हीरो बनने के लिए मुलायम सिंह यादव ने भी अध्यादेश को लागू नहीं करने की धमकी दी थी।
लेकिन, लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने मुलायम सिंह यादव का खेल का बिगाड़ कर रख दिया। अब मुलायम सिंह यादव के पास एक ही विकल्प बचा था, ‘कुछ ऐसा करना, जिससे मुस्लिम समुदाय में उनकी हनक बने।’ इसी सनक में 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर को अयोध्या की जमीन को रामभक्तों के खून से रंग दिया गया। लखनऊ से वह अघोषित ऑर्डर दिया गया जिसकी वजह से ही मुलायम सिंह यादव को ‘मौलाना मुलायम’ की उपाधि नसीब हुई।
समय गुजरा और उप्र में व केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी, माननीय न्यायालय फैसला आया। अयोध्या में उप्र के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ व देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में अयोध्या में श्रीराम मंदिर बहुत भी भव्य रूप से तैयार किया जा रहा है। 22 जनवरी को प्राणप्रतिष्ठा का भव्य आयोजन किया जायेगा। खासबात यह है कि प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम भले ही 22 जनवरी को सुनिश्चित हो किन्तु अभी से ही अयोध्या राममय है और दूर-दराज क्षेत्रों से रामभक्त अयोध्या आकर पुण्यलाभ कमा रहे हैं।