» नहीं रहे मशहूर शायर मुनव्वर राना, रह गईं सिर्फ़ यादें
लखनऊ/रायबरेलीः पवन कुमार गुप्ता। उर्दू भाषा के बड़े साहित्यकार मुनव्वर राना की लोकप्रियता का अंदाजा कुछ इस तरह भी लगाया जा सकता है कि उनकी अनेक रचनाओं का उर्दू भाषा के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। इस मशहूर शायर का बीती रविवार को इंतकाल हो गया। उनकी अनगिनत रचनाओं में से उन्हीं की एक रचना कि अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा, मैं जब भी घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है। आज लोग फिर से दोहरा रहे हैं। देश ही नहीं उन्होंने विदेशों में भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई है।
उत्तर प्रदेश में रायबरेली जिले के किला बाजार में जन्में मशहूर शायर मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952 को हुआ था। उनके पिता का नाम अनवर राना और मां आयशा खातून थी। उनके द्वारा रचनाओं के लिए उन्हें वर्ष 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। वर्तमान समय में वह राजधानी लखनऊ में ही रहा करते थे। मशहूर शायर मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई थी। मुनव्वर राना की लगभग एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी रचनाओं में हमेंशा मातृ प्रेम झलकता रहा है और मां पर रचित उनकी रचनाएं काफी सुनीं और पढ़ी गई।
जानकारी के अनुसार रायबरेली में मुनव्वर राना का काफी समय से उनके भाईयों से संपत्ति को लेकर विवाद भी चल रहा था और इसी के चलते उनके बेटे तरबेज ने अपने चाचा को फंसाने की साजिश भी रची,पुलिस केस भी हुआ। इस मामले में पुलिस की कार्यवाई भी हुई जिसको लेकर वह काफी निराश हुए और शायद यही कारण रहा कि धीरे-धीरे उनकी जन्मभूमि रायबरेली से मुनव्वर राना की दूरी बनने लगी। खबरों के मुताबिक लंबी बीमारी के चलते मुनव्वर राना लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती थे।
आज जब उर्दू के मशहूर शायर मुनव्वर राना के निधन की सूचना मिली तो उनके चाहने वालों के दिलों को इस खबर ने झकझोर कर रख दिया। हर कोई उस बेहतरीन शायर ,साहित्यकार को याद कर रहा है। उन्हें लखनऊ में ही सुपुर्दे खाक किया गया।उन्होंने 71 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। देश में नेता और अभिनेता उन्हें अंतिम विदाई दे रहे हैं और उनके प्रति अपनी संवेदनाएं भी प्रकट कर रहे हैं।
»आख़िर में उनकी एक रचना याद दिलाते हैं कि
’हमको दुनिया ने बसा रखा है दिल में अपने, हम किसी हाल में बे-घर नहीं होने वाले।
ये जो सूरज लिए कांधो पे फिरा करते हैं, मर भी जाएं तो ’मुनव्वर’ नहीं होने वाले।।’
वाकई ऐसे लाजवाब शायर, साहित्यकार जिनकी रचनाएं पढ़कर देश की एक पीढ़ी बड़ी हुई है। वह उन्हें कैसे भुला सकती है। शायद ही फिर कोई ऐसा शायर इस अपूर्णीय क्षति को पूरा कर पाए।