Sunday, November 24, 2024
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लोकसभा चुनाव: इस VVIP सीट पर स्थानीय चेहरों के साथ जानी मानी हस्तियों को भी हार का सामना करना पड़ा

रायबरेली। वीआईपी सीट में सुमार रायबरेली को प्रधानमंत्री चुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। परंपरागत रूप से यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। क्योंकि पहले आमचुनाव से लेकर अब तक यहां अधिकांश कांग्रेस का ही प्रत्याशी जीतता रहा है। केवल तीन बार 1977, 1996 व 1998 के चुनाव में अल्प समय के लिए गैर कांग्रेसी सांसद को सफलता मिली है। हालांकि यहां के वोटरों ने एक दो अपवाद को छोड़कर किसी भी स्थानीय नेता पर भरोसा नहीं जताया है। यहां से 1967 में पहली बार चुनी गई इंदिरा गांधी को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री होने गौरव प्राप्त हुआ है। इसके पहले भी उनके पति फिरोज गांधी पहले व दूसरे आम चुनाव में यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। यहां शुरू से लेकर अब तक तीन टर्म को छोड़कर कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। केवल तीन बार गैर कांग्रेसी नुमाइंदे को यहां से संसद पहुंचने का सौभाग्य मिला है। 1977 में जनता पार्टी के राजनारायण व वर्ष 1996 व 1998 में भाजपा के अशोक कुमार सिंह ही सांसद बन सके हैं। वरना यहां से सांसद गांधी-नेहरू परिवार या उनके करीबियों को यहां से सांसद बनने का मौका मिला है। खास बात यह है कि कांग्रेस के बैजनाथ कुरील, राजेन्द्र प्रताप सिंह व भाजपा से अशोक कुमार सिंह के अलावा यहां से से किसी अन्य स्थानीय व्यक्ति पर लोगों ने भरोसा नहीं जताया है। जबकि रायबरेली लोकसभा से स्थानीय कई स्थानीय लोगों ने सांसद बनने की चाहत में भाग्य आजमाया लेकिन अशोक कुमार सिंह को छोड़कर यहां के वोटरों की परीक्षा में पास नहीं हो सके। स्थानीय प्रत्याशियों में सुरेंद्र बहादुर सिंह(सपा), गजाधर सिंह(सपा), अशोक कुमार सिंह(सपा), अशोक कुमार सिंह(जनता दल), राजकुमार(सपा), गिरीश नारायण पांडेय, रमेश कुमार मौर्य(बसपा), बाबूलाल लोधी(बसपा), राजेश यादव(बसपा), आनन्द लोधी (बसपा), दिनेश प्रताप सिंह (भाजपा) प्रमुख रूप से शामिल रहे। लेकिन मतदाताओं ने किसी भी स्थानीय चेहरे पर भरोसा नहीं जताया है।
ऐसा भी नहीं है कि इस वीवीआईपी सीट से स्थानीय चेहरों को ही जनता ने नकारा है, बल्कि बाहर से यहां चुनाव में उतरे तमाम जानी मानी हस्तियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा है। इकलौते राजनारायण ऐसे अपवाद हैं। जिनको जनता पार्टी की लहर के दौरान वर्ष 1977 में यहां की जनता ने सर आंखों बिठाया था। जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री और यहां से सांसद इंदिरा गांधी को परास्त करने में सफलता पाई थी। हालांकि वर्ष 1971 में उन्हें भी यहां से इंदिरा गांधी के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा यहां से हारने वाले अन्य दिग्गजों में नेताओं में विजयाराजे सिंधिया (भाजपा1980), जनेश्वर मिश्र(सपा उपचुनाव 1980), अरूण नेहरू(भाजपा 1999), विनय कटियार (भाजपा, उपचुनाव 2006) व उमा भारती (भाजपा) प्रमुख रूप से शामिल हैं। अब देखना है कि इस चुनाव में जनता किस पार्टी और नेता पर विश्वास जताती है। इसका फैसला 20 मई को हो जाएगा। लेकिन परिणाम के लिए 4 जून का इंतजार करना होगा.?