राजीव रंजन नागः नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली शराब नीति मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दे दी। शीर्ष अदालत ने केजरीवाल को प्रचार के लिए अंतरिम रिहाई की अनुमति दी लेकिन कहा कि उन्हें 2 जून को आत्मसमर्पण करना होगा। सातवां और लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण का मतदान 1 जून को होगा।
इस बीच समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सुप्रीम कोर्ट क फैसले के तुरत बाद एक ट्वीट पर कहा कि, ‘‘दिल्ली के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी की जमानत सत्य की एक और जीत है। ‘इंडिया गठबंधन’ की शक्ति और एकजुटता भाजपा के दुख-दर्द देनेवाले राज से भारत की जनता को मुक्ति दिलवाने जा रही है।’’
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने केजरीवाल द्वारा दायर अंतरिम जमानत याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। केजरीवाल द्वारा दायर याचिका में दिल्ली शराब नीति मामले में उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद चल रहे लोकसभा चुनावों के प्रचार में उनकी भागीदारी को सक्षम करने के लिए अंतरिम जमानत के अनुरोध को चुनौती दी गई थी। अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब नीति मामले में न्यायिक हिरासत में हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील एएसजी एसवी राजू को सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मौजूदा लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार के उद्देश्य से केजरीवाल को रिहा करने की अनुमति दी।
9 मई को जमा किए गए शपथ पत्र में ईडी ने केजरीवाल को जमानत दिए जाने का जमकर विरोध किया था। एजेंसी ने कहा था कि अगर चुनाव के चलते नेताओं को जमानत दी जाने लगी, तो किसी नेता की गिरफ्तारी ही नहीं हो पाएगी। ईडी ने कहा था, ‘चुनाव में कैंपेन करने का अधिकार ना तो मौलिक अधिकार है और ना ही ये कानूनी अधिकार है.अब तक किसी भी राजनीतिक नेता को कैंपेन करने के लिए अंतरिम बेल नहीं दी गई है, जबकि यहां तो केजरीवाल चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं।’
विपक्षी विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की। दिल्ली में आप की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस ने शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप का स्वागत करते हुए कहा कि फैसले से लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बढ़ेगा।
एआईसीसी मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने कहा कि वह हस्तक्षेप का स्वागत करते हैं और आशा व्यक्त की कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी उचित न्याय मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट में कई दलीलों में से, सबसे प्रमुख कारक जो स्पष्ट रूप से केजरीवाल के पक्ष में गया, वह प्रवर्तन निदेशालय द्वारा ष्गिरफ्तारी का समयष् था। केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की डेढ साल की जांच के बाद ईडी द्वारा गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया था। केजरीवाल ने तर्क दिया था कि उनकी गिरफ्तारी आम आदमी पार्टी (आप) को खत्म करने का एक प्रयास था। केजरीवाल ने ईडी द्वारा अपनी गिरफ्तारी को भी अवैध बताया है और अदालत में कहा था कि आम चुनाव की अधिसूचना जारी होने और आदर्श आचार संहिता लागू होने के पांच दिन बाद ईडी ने एक मौजूदा मुख्यमंत्री को अवैध रूप से उठाया। केजरीवाल ने कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले में अपनी गिरफ्तारी को अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं को दबाने के लिए ईडी जैसी एजेंसियों के केंद्र के दुरुपयोग का एक प्रमुख उदाहरण बताया है। कोर्ट ने ईडी से गिरफ्तारी का समय बताते हुए जवाब दाखिल करने को कहा था।
मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय ने सुप्रीम कोर्ट में पेश एक नोट में कहा कि घोटाले की जांच शुरू की तो उसकी जांच सीधे तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नहीं थी। जांच के दौरान उनकी भूमिका सामने आई थी। जांच एजेंसी ने पहले अदालत को बताया था कि केजरीवाल ने 9 समन छोड़े और उनके आचरण से जांच अधिकारी को संतुष्टि हुई कि वह कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के दोषी हैं। जांच एजेंसी ने आगे कहा कि केजरीवाल को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम राहत देने से इनकार करने के बाद ही गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति खन्ना ने हालांकि सवाल किया कि जब अगस्त 2023 में सीबीआई ने पहला मामला दर्ज किया तो ईडी ने शुरुआत में ही उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं शुरू की। ईडी ने कहा कि उस समय उनके पास कोई कारण नहीं था क्योंकि उन्हें इसकी जांच करनी थी कि पैसा कहां गया और जांच बढ़ानी थी। ईडी की दलीलें सुनने पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने ईडी को याद दिलाया कि वर्तमान में, अदालत के समक्ष मुद्दा पीएमएलए की धारा 19 के अनुपालन पर है और अदालत इस पर ईडी से जवाब चाहती है।
पीएमएलए की धारा 19 ईडी अधिकारियों को व्यक्तियों को उनके पास मौजूद सामग्री के आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार देती है, जिससे यह संदेह करने का उचित आधार मिलता है कि किसी व्यक्ति ने कानून के तहत दंडनीय अपराध किया है। अदालत ने कहा कि उसे दो प्राथमिक प्रश्नों की जांच करनी है – क्या गिरफ्तारी धारा 19 के अनुपालन में की गई थी और एजेंसी को केजरीवाल को गिरफ्तार करने में दो साल क्यों लगे। जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘‘किसी भी जांच एजेंसी के लिए यह कहना अच्छा नहीं है कि भूमिका का पता लगाने में 2 साल लग जाते हैं।’’
संक्षिप्त आदेश सुनाते हुए जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘‘21 दिन में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हमें किसी अन्य मामले से समानता नहीं निकालनी चाहिए। 21 दिन इधर-उधर से कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए।’’ ईडी द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी की वैधता पर अदालत को अभी सुनवाई पूरी करनी है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अरविंद केजरीवाल एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं न कि आदतन अपराधी। कोर्ट ने इसे असाधारण के साथ-साथ असाधारण मामला भी बताया।