Sunday, November 24, 2024
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आखिर लगा ही दी नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर हैट्रिक

जैसा कि पूर्वानुमान था, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने हैट्रिक लगाते हुए 9 जून को तीसरी बार भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली। यद्यपि विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन इण्डिया ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन को कड़ी टक्कर दी है। जिससे भाजपा का 400 पार का स्वप्न साकार नहीं हो सका। इसके कारणों पर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को गहन विचार करना पड़ेगा। क्योंकि पार्टी के चाणक्यों ने 400 से अधिक सीटें प्राप्त करने हेतु जो रणनीति बनायी थी, वह कहीं न कहीं विफल साबित हुई। जिसके चलते भाजपा को बहुमत से बहुत कम 240 सीटें ही प्राप्त हुईं। परन्तु उसके नेतृत्व वाले गठबन्धन राजग ने 292 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। जनवरी 2023 से फरवरी 2024 के बीच विभिन्न एजेंसियों द्वारा कराये गये चुनावी सर्वेक्षणों में भी नरेन्द्र दामोदर दास मोदी हैट्रिक लगाते हुए दिखाई दे रहे थे। जो एकदम सही साबित हुआ। लेकिन सीटों को लेकर सर्वेक्षणों का आकलन गलत सिद्ध हुआ। देश की 13 अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कराये गये सर्वेक्षणों के आधार पर भाजपा गठबन्धन को 44.30 प्रतिशत वोट के साथ 341 के आसपास सीटें मिलने की सम्भावना थी। लेकिन भाजपा को मात्र 36.56 प्रतिशत मतों के साथ 240 सीटें ही प्राप्त हुईं और उसके गठबन्धन राजग को 41.56 प्रतिशत मतों के साथ 292 सीटों से सन्तोष करना पड़ा। सर्वेक्षण में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 36.52 प्रतिशत मतों के साथ 146 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इण्डिया गठबन्धन को 39.21 प्रतिशत मतों के साथ 234 सीटें प्राप्त हुईं। सर्वेक्षण के आधार पर अन्य दलों को 56 सीटें मिलनी चाहिए थीं। परन्तु वास्तविक परिणाम मात्र 17 सीटों का ही रहा। यहाँ विचार करने योग्य बात यह है कि इण्डिया गठ्बन्धन को 234 सीटें तब प्राप्त हुई हैं जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की आधारभूत इकाइयाँ संगठनात्मक रूप से भाजपा की तरह मजबूत नहीं हैं।
अयोध्या के बहुचर्चित श्रीराम मन्दिर के निर्माण से भाजपा की बांछे खिली हुई थीं और उसे पूर्ण विश्वास था कि आस्था का शैलाव ऐसा उमड़ेगा कि भाजपा अकेले दम पर 400 से अधिक सीटें प्राप्त करने में सफल होगी। परन्तु परिणाम पूरी तरह उल्टा निकला। पूरे देश में जो हुआ सो हुआ ही अयोध्या से सम्बन्धित फैजाबाद सीट ही भाजपा के हाँथ से निकल गयी। जिसके कारण अयोध्यावासी कट्टर भाजपाइयों द्वारा सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हो रहे हैं। श्रीराम के प्रति उनकी आस्था पर ही सवाल खड़े किये जा रहे हैं। संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को स्वतन्त्र रूप से मतदान करने का अधिकार दिया है। इसके लिए कोई किसी पर न तो दबाव डाल सकता है और न ही अपनी मर्जी थोप सकता है। अब यदि किसी दल को उसकी अपेक्षा के अनुरूप मत नहीं प्राप्त हुए हैं तो उस दल को मतदाताओं के प्रति दुर्भावना व्यक्त करने की अपेक्षा अपनी कार्यशैली की समीक्षा करनी चाहिए। जनतन्त्र में जनता ही सर्वोपरि है। सरकारों के काम-काज की समीक्षा करते हुए उसके समर्थन या विरोध का निर्णय वह मतदान के माध्यम से ही सुनाती है। जो हुआ भी और आगे भी होगा। किसी एक मुद्दे के बल पर कोई भी दल लम्बे समय तक पूर्ण बहुमत की अपेक्षा नहीं कर सकता और न ही करना चाहिए। आशा है भाजपा के रणनीतिकार इस बात को गम्भीरता पूर्वक समझेंगे और पुनः उन्हें जो सुअवसर मिला है उसका भरपूर सदुपयोग करेंगे। गरीबी, मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, किसानो की दुर्दशा, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली तथा शिक्षा का गिरता स्तर जैसे ज्वलन्त मुद्दे चुनौती बनकर सामने खड़े हैं। इन मुद्दों को बहुत लम्बे समय तक हासिये पर नहीं डाला जा सकता। निश्चित ही नरेन्द्र मोदी अपने नये कार्यकाल में इन मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करेंगे और इनसे निबटने के लिए स्थाई योजना बनाते हुए उसे प्रभावी ढंग से लागू भी करेंगे। उन्हें विशेष रूप से याद रखना होगा कि उनकी सत्ता में वापसी का मार्ग विकल्पहीनता के कारण भी प्रशस्त हुआ है। लोगों ने इण्डिया गठबन्धन को गुस्से में वोट दिया है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को उनका आधारभूत संगठनात्मक ढांचा मजबूत न होने के बावजूद इतना वोट मिलना सिर्फ और सिर्फ लोगों के अन्दर भाजपा सरकार के प्रति व्याप्त गुस्से का परिणाम है। वहीं असन्तुष्टों के एक बड़े वर्ग ने इण्डिया और राजग के बीच तीसरा और मजबूत विकल्प न देखकर राजग को चुना है। इस बार मतदान का प्रतिशत भी कम रहा। इसके मूल में भी कहीं न कहीं लोगों में सरकार के प्रति उत्साह का अभाव रहा। देशवासी कांग्रेस और सपा के शासन की विफलताओं को अभी भूले नहीं हैं। जिनके विकल्प में उन्होंने भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर अपना विश्वास जताया था। परन्तु इन दस वर्षों में मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर सरकार कोई करिश्मा नहीं कर सकी। बल्कि विफलता ही उसके हिस्से में आयी। जिसको लेकर आम जन में रोष होना स्वाभाविक था। परन्तु भाजपा और कांग्रेस की जगह किसी तीसरे और मजबूत विकल्प के अभाव में यह रोष जनाक्रोश में परिवर्तित नहीं हो सका। जैसा 2014 में हुआ था। ईडी और सीबीआई की कार्रवाई के दायरे में आने वाले विपक्षी दलों के नेताओं का बड़ी संख्या में चुनाव पूर्व भाजपा में शामिल होना, उसके बाद उन पर ईडी और सीबीआई की कार्रवाई रूक जाना और पार्टी में तत्काल उन्हें विशेष स्थान मिल जाना भी भाजपा के लिए घातक बना। क्योंकि इससे न केवल भारतीय जनता पार्टी के रूढ़ नेता एवं समर्पित कार्यकर्ता अन्दरखाने नाराज हुए। बल्कि आम जन में भी इसका गलत सन्देश गया। जिसका सीधा असर भाजपा के वोट प्रतिशत पर पड़ा। अतः प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तथा उनके सहयोगियों को अपने नये कार्यकाल में पुरानी रणनीतियों का परित्याग करते हुए नई कार्यशैली अपनानी चाहिए। जो भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं, रूढ़ नेताओं तथा आम जन को सन्तुष्ट करने वाली हो। यद्यपि इस बार सरकार को गठबन्धन के दबाव में निर्णय लेने पड़ सकते हैं। परन्तु नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत छवि दृढ़ निश्चयी व्यक्ति वाली रही है। इसीलिए वह देश ही नहीं विदशों तक के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। अतएव गठबन्धन के दबाव की परवाह किये बिना उन्हें जनहित के निर्णय लेने में कतई संकोच नहीं करना चाहिए। -डॉ.दीपकुमार शुक्ल (स्वतन्त्र टिप्पणीकार)