नई दिल्लीः राजीव रंजन नाग। राहुल गांधी की जिद्द को लेकर कांग्रेस में इन दिनों उत्साह के साथ एक निराशा का माहौल भी देखा जा सकता है। दरअसल, राहुल गांधी द्वारा लोकसभा में विपक्ष का नेता पद अस्वीकार करने कारण यह स्थिति पैदा हुई है। चुनाव में पार्टी को मिली बड़ी सफलता से पार्टी कार्यकर्ता खासे उत्साहित हैं। एक दशक के अंतराल के बाद पार्टी के लोग राहुल गांधी को संसद में एक आक्रामक नेता के तौर पर देखना चाहते हैं। लेकिन उनके अनिच्छा के कारण पार्टी के सांसद भी निराश हैं। 18वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन वह इस पद को लेने के इच्छुक नहीं हैं। पार्टी के सूत्रों ने कहा कि इस पद के लिए तीन वरिष्ठ नेताओं – कुमारी शैलजा, गौरव गोगोई और मनीष तिवारी के नामों पर विचार किया जा रहा है।
हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में अपने बेहतर प्रदर्शन के बाद एक दशक के बाद विपक्ष को लोकसभा में एक नेता मिलेगा। इसकी 232 सीटों में से 99 कांग्रेस से आई हैं, और विपक्षी बेंच में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। श्री गांधी, जिनकी भारत जोड़ो यात्रा को व्यापक रूप से कांग्रेस की बढ़त का कारण बताया गया था। पार्टी ने 2014 में 44 सीटें और 2019 में 52 सीटें जीती थीं। माना जा रहा था कि राहुल इस बड़ी जिम्मेवारी के लिए तैयार होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है।
इस बिंदु पर विभिन्न नेताओं की ओर से उन पर काफी दबाव बना हुआ है। इस पद से उन्हें कैबिनेट रैंक मिलती, भारत ब्लॉक में सहयोगियों के साथ बेहतर समन्वय करने में मदद मिलती और लोकसभा में भाजपा पर विपक्ष के हमले का नेतृत्व करके कांग्रेस को एक मजबूत चेहरा पेश करने में मदद मिलती। लेकिन सूत्रों ने कहा कि श्री गांधी, जिन्होंने 2019 में हार के बाद पार्टी प्रमुख के पद से इस्तीफा भी दे दिया था, इसके लिए उत्सुक नहीं हैं। पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा कि तब से उन्होंने कोई भी पद लेने से परहेज किया है। उनका कहना है कि श्री गांधी ने संसद में अपनी मां सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली का प्रतिनिधित्व करने का भी फैसला किया है। उन्होंने वायनाड से अपनी सदस्यता छोड़ देने का फैसला किया है। उनके इस्तीफे से खाली हुई वायनाड की सीट से उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
उत्तर प्रदेश में परिवार का दूसरा गढ़ अमेठी पहले ही कांग्रेस के हाथों में है, जहां लंबे समय से गांधी परिवार के सहयोगी केएल शर्मा ने भाजपा की पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हराया है। प्रियंका गांधी ने आम चुनाव नहीं लड़ा था, इसके बजाय उन्होंने पार्टी के प्रचार पर ध्यान केंद्रित करना चुना था। पार्टी सूत्रों ने बताया कि सोनिया गांधी तीनों गांधी परिवार के संसद में होने को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि इससे भाजपा को अपने “वंशवादी राजनीति” के आरोप को बल मिलेगा। सोनिया गांधी संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की सदस्य हैं।