– डाॅ0 लक्ष्मी शंकर यादव
म्यामांर के रखाइन में 25 अगस्त को प्रातः 24 पुलिस पोस्ट और आर्मी बेस पर रोहिंग्या उग्रवादियों के हमले में एक दर्जन सुरक्षा कर्मियों सहित लगभग 89 लागों की मौत हो गई। स्टेट काउंसलर के कार्यालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक तकरीबन 150 रोहिंग्या उग्रवादियों ने दो दर्जन से ज्यादा पुलिस चैकियों एवं एक सैन्य अड्डे पर तेज हमला किया। इस हमले में देशी बारूदी सुरंगों का भी प्रयोग किया गया। रखाइन के साथ-साथ बुथिदाउंग शहर भी भीषण हिंसा का शिकार हुआ। धार्मिक घृणा के चलते बंटे तटीय देश में पिछले साल अक्टूबर से चल रही हिंसा में यह सबसे बड़ा भीषण हमला था। रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश से आए हुए बताए जाते हैं। अवैध प्रवासी बताकर म्यांमार ने इन्हें नागरिकता देने से इंकार कर दिया है। रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ पिछले वर्ष सेना ने बड़ी कार्रवाई की थी जिसके परिणामस्वरूप लगभग 87 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश चले गए थे।
म्यांमार के अशान्त रखाइन प्रान्त की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। 24 अगस्त के हमले के बाद सेना ने रोहिंग्या विद्रोहियों और उनके अड्डों को खत्म करने का अभियान छेड़ दिया है। एक सितम्बर तक इस खूनी टकराव में लगभग 400 लोग मारे जा चुके हैं। म्यांमार सेना के द्वारा बताई गई जानकारी के मुताबिक मरने वालों में 370 रोहिंग्या विद्रोही, 13 सेना के जवान, दो सरकारी अधिकारी और 14 आम नागरिक हैं। इसके अलावा कुछ विद्रोहियों को पकड़ा भी गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस सैन्य अभियान के बाद 38 हजार रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश कर गए हैं और तकरीबन बीस हजार से ज्यादा शरणार्थी सीमावर्ती इलाकों में फंसे हुए हैं। इस दौरान शरणार्थियों से लदी एक नौका म्यामांर तथा बांग्लादेश को बांटने वाली नफ नदी में डूब गई थी जिसमें तकरीबन 40 लागों की मौत हो गई। बांग्लादेश के सीमाई इलाके काॅक्स बाजार में हजारों की तादाद में भूखे-प्यासे रोहिंग्या शरणार्थी पहुंच रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने हिंसा में आम लोगों मारे जाने की रिपोर्ट पर गहरी चिन्ता जताई है। गुतेरस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिका की ओर से जारी बयान में बांग्लादेश से शरणार्थियों का सहयोग करने आग्रह किया गया है।
म्यामांर में रोहिंग्या मुसलमानों के इतिहास को लेकर विवाद है। रोहिंग्या मुसलमान मुख्य रूप से म्यामांर के अराकान प्रान्त में बसने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिम हैं। इसी इलाके को रखाइन के नाम से भी जाना जाता है। यहां इनकी आबादी आठ लाख के आसपास है। रोहिंग्या मुसलमान दावा करते हैं कि वे यहां सदियों से रह रहे हैं जबकि सरकार और दूसरे जातीय समूह उन्हें विदेशी प्रवासी मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायोग के अनुसार सन् 1982 के नागरिकता कानून ने रोहिंग्या मुसलमानों को म्यामांर की नागरिकता से वंचित रखा है। यह कानून अन्तरराष्ट्रीय कानून के कई मौलिक सिद्धान्तों का उल्लंघन करता है। रोहिंग्या मुसलमानों के लिए म्यामांर सरकार ने पहचान पत्र जारी कर रखे हैं। इस पहचान पत्र को उन्हें हर समय अपने साथ रखना होता है। यह पहचान पत्र नौकरी के लिए आवेदन करने, किसी दूसरे स्थान पर ठहरने, बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने, टिकट खरीदने, जमीन खरीदने व बेचने जैसे सभी कामों के लिए जरूरी है।
म्यामांर में रोहिंग्या मुसलमानों से जबरदस्ती काम लिया जाता है। आरोप यह भी है कि उन्हें सरकार के लिए कार्य करना आवश्यक है और कार्य करने के बदले में कुछ मिलता भी नहीं है। इन लोगों को अन्य शहरों काम तलाशने की भी अनुमति नहीं है। इनमें से अधिकांश लोग अकुशल श्रमिक हैं। सन् 1978 में बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश चले गए थे। इसके बाद दिसम्बर 1991 से मार्च 1992 तक की अवधि में तकरीबन दो लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भाग गए थे। रोहिंग्या मुसलमानों के जब कब थाईलैण्ड व मलेशिया भागने की खबरे आती रहती हैं। सन् 2014 के बाद से अब तक एक लाख अड़सठ हजार रोहिंग्या मुसलमानों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है। वर्तमान में म्यांमार में लगभग 11 लाख, बांग्लादेश में तीन लाख, मलेशिया में एक लाख, भारत में 40 हजार तथा इण्डोनेशिया में दो हजार रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं।
सन् 2012 से म्यामांर के रखाइन प्रान्त में वहां के बौद्ध और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच संघर्ष जारी है जिसमें हजारों लोगों के घर जलाये जा चुके हैं और हजारों की संख्या में लोग विस्थापित हो गए हैं। हाल के संघर्ष के बाद एक बार फिर पलायन तेज हो गया है। ऐसे में बांग्लादेश व भारत की चिन्ताएं बढ़ना स्वाभाविक है। इसीलिए बांग्लादेश ने म्यांमार के समक्ष संयुक्त कार्रवाई का प्रस्ताव रखा है। म्यांमार ने फिलहाल बांग्लादेश के इस प्रस्ताव पर अपना रूख स्पष्ट नहीं किया है। संयुक्त राष्ट्र ने तीन हजार से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों के बांग्लादेश में पहुंचने की पुष्टि की है। इंटरनेशनल आॅर्गेनाइजेशन फाॅर माइग्रेशन संस्था के मुताबिक अब तक 18445 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में अपना पंजीकरण करा चुके हैं। म्यांमार में सेना की जवाबी कार्रवाई शुरू होने से हालात बेहद खराब हो गए हैं। हजारों की तादाद में बांग्लादेश पहुंच रहे रोहिंग्या शरणार्थियों में ज्यादातर महिलाएं व बच्चे हैं। इनमें कई गोली से घायल हैं तो कई बीमार हैं। म्यांमार की सीमा से लगते बांग्लादेश के काॅक्स बाजार के अस्पतालों में इन शरणार्थियों का इलाज चल रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों के आने से बांग्लादेश की समस्याएं बढने लग गई है।
बांग्लादेश की तरह भारत में भी रोहिंग्या शरणार्थी पहले से मौजूद हैं। अब नए शरणार्थियों के आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। भारत में रोहिंग्या शरणार्थी जम्मू, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, हैदराबाद व राजस्थान में रह रहे हैं। भारत सरकार इनको बांग्लादेश भेजने की तैयारी में है। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के.एस.धातवालिया ने पिछले महीने जानकारी दी थी कि भारत में रह रहे 14 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने पंजीकृत किया है। इससे भारत में दशकों से रह रहे बाकी रोहिंग्या शरणार्थी अवैध माने जाएंगे। इसलिए उन सभी अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों को अब बाहर भेजा जाएगा। दरअसल भारत ने संयुक्त राष्ट्र कंवेंशन में शरणार्थियों को लेकर कोई दस्तखत नहीं किए हैं। इसलिए देश में शरणार्थियों पर कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। फिलहाल इस मामले में कूटनीतिक स्तर पर बांग्लादेश व म्यांमार से बातचीत जारी है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में क्या होगा?
(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं)