“महाराज प्रणाम”!
पंडित जी:- “खुश रहो! और जजमान कहो कैसे आना हुआ?”
राहुल:- “जी, श्राद्ध करवाना है।”
पंडित जी:- “हो जाएगा, बिल्कुल करवा देंगे। तिथि बताइए और किसका करवाना है यह भी बताइए, मैं सामान की लिस्ट बनाकर दे देता हूं आपको।”
राहुल जी:- “महाराज!अ… मेरा करवाना है।”
पंडित जी चौंक गये और गुस्से से बोले, “क्या मजाक है? पूजा पाठ को भी मजाक बना रखा है तुम लोगों ने? आदर नहीं कर सकते तो इन रिवाजों का तो अनादर भी मत किया करो! जाओ यहां से।”
राहुल:- “नहीं महाराज! मैं मजाक नहीं कर रहा। मैं सच में खुद का श्राद्ध करवाने आया हूं। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरे जाने के बाद मुझे कोई याद नहीं रखेगा और यह सब कर्मकांड तो शायद कोई करे ही नहीं।”
पंडित जी:- “ऐसी बेतुकी बात आपके मन में क्यों आ रही है और वैसे भी जीवित व्यक्ति का श्राद्ध नहीं किया जाता है आप अपने दिमाग से फालतू बातें निकाल दें और घर जाइये।”
राहुल:- “महाराज मैं पिछले 15 दिनों से इसी ऊहापोह में हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए और इस समय की पीढ़ी के बच्चों की जो मानसिकता दिख रही है उससे मुझे यही लगता है कि हर व्यक्ति को चाहिए कि मरने से पहले उसे अपना श्रद्धा करवा लेना चाहिए।”
पंडित जी को अनुमान हो गया था कि यह महानुभाव जल्दी नहीं जाएंगे तो उन्होंने अपनी श्रीमती जी को चाय बनाने के लिए कहा और राहुल से बोले कि “बताओ समस्या क्या है? आखिर यह जिद क्यों पकड़ रखी है?”
राहुल:- “कुछ नहीं महाराज! मेरा बेटा जो मेरे बताने और समझाने के बाद भी इन बातों पर ध्यान नहीं देता है उसी की वजह से मन अशांत हो गया है।” और वह अपने बेटे के प्रति गुस्सा निकालने लगे। मैंने उन्हें शांत करवाया और पूरा मामला जानना चाहा।
राहुल:- “क्या बताऊं महराज यह आजकल के बच्चे भी न जाने कौन सी दुनिया में जीते हैं। समय बदल रहा है यह मुझे भी पता है लेकिन अपने रीति रिवाज से मुंह तो नहीं मोड़ लिया जाना चाहिए? बस यही क्रोध है मुझे।”
पंडित:- “ठीक है ! पूरी बात बतायें आप।”
राहुल:- “मैंने मेरे बेटे को समझाया था कि पितृपक्ष में कुछ दिन ऐसे होते हैं जो अपने पूर्वजों के होते हैं और हम उन्हें याद करते हैं फलस्वरुप पूजापाठ, दान वगैरह किया करते हैं साथ ही यह भी बताया कि इन दिनों मांसाहारी भोजन भी नहीं किया जाता है। हमारे बाद आखिर वही तो यह सब रीति रिवाज निभाएगा।”
पंडित जी:- “सही कह रहे हैं, तो दिक्कत क्या है?” राहुल:- “दिक्कत यह है महाराज कि पहली बात तो उसे तिथि ही याद नहीं रहती। चलो मान लिया कि काम की व्यस्तता रहती है और अभी हम लोग हैं याद दिलाने के लिए लेकिन थोड़ा सा खुद पर संयम भी तो रखना चाहिए इन दिनों। इन दिनों में भी वह मांसाहारी भोजन करता है और कहता है कि आप लोग तो हैं ही, नियम पाल ही रहे हैं तो फिर मुझे क्या जरूरत है? जब आप लोग सब रीति रिवाज निभा लेते हैं तो मुझे अभी ये सब करने की जरूरत नहीं है।”
पंडित जी:- “ओह!”
राहुल:- “मैंने भी सोच लिया की जबरदस्ती कोई भी बात नहीं मनवाई जा सकती है लेकिन बताना समझाना हमारा फर्ज है लेकिन फिर भी खाने के प्रति इतनी आसक्ति देखकर मन क्षुब्ध हो गया। बस तभी से मन में आ गया कि पता नहीं मेरे मरने के बाद यह लोग श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करेंगे भी या नहीं तो क्यों ना मैं जीते जी अपना श्राद्ध कर लूं ताकि उनके ऊपर कोई बोझ ना रहे और मुझे भी संतोष हो जाएगा कि अपने जीवन काल में ही मैंने यह कर्मकांड कर लिया।”
पंडित जी राहुल के मन का दुख समझ रहे थे फिर भी उन्होंने उसे समझाया।
पंडित जी:- “देखो मित्र ! यह सही है कि बच्चे आजकल अपनी नीतियों, संस्कृति, रीति रिवाज से भटक रहे हैं। आगे बढ़ने की होड़ में, फैशन, दिखावा और व्यस्तता बाधक हो रही है बच्चों को अपनी जड़ों से जुड़ने में लेकिन हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने बच्चों को समझाएं और सही राह पर लाने की कोशिश करें। जो कार्य आप करने की बात कर रहे हैं वह समस्या का समाधान नहीं है। बेहतर होगा कि आप अपने बेटे को प्यार से समझाने का प्रयास करें और उसे बताइए कि मेरे बाद तुम्हें ही इन बातों का ख्याल रखना होगा तो अभी से यह जिम्मेदारी संभालो ताकि आप निश्चिंत हो सके।”
राहुल का अशांत मन कुछ शांत हुआ और महाराज को प्रणाम करके घर वापसी के लिए चल देता है। घर पहुंच कर उसने अपने बेटे से बात की और उसे समझाया कि, “यदि तुम अभी से यह बातें नहीं सीखोगे – समझोगे तो हमारे बाद तुम्हें कौन यह सब बताएगा और तुम्हें कैसे मालूम होगा कि कब क्या करना है तो अभी से ही मेरे काम में मदद करो और सीखो।”
बेटा बोला, “ठीक है पापा ! आप बताना कि क्या करना है मैं कर दूंगा जैसा आप चाहते हैं वह हो जाएगा।”
राहुल के मन से बहुत बड़ा बोझ उतर चुका था और वह अपने पिता के श्राद्ध की तैयारी में जुट गए और बेटे को सामान की लिस्ट थमा दी।
-प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात